स्पेन के सुलतान खलीफा अब्दुल रहमान सालिस का लकब नासिर लिदीनिलाह था, ईन्हे लोगो ने अपना खलीफा व अमीरूल मोमिन क्यों कहा था?जाने पूरी स्टोरी
अफजल इलाहाबाद
ख़लीफ़ा अब्दुर्रहमान सालिस कोन थे۰
ख़लीफा अब्दुर्रहमान सालिस उंदलुस(आज का स्पेन) के सुल्तान थे इनका लकब नासिर लिदीनिल्लाह था और लोगों ने इनको खुले दिल के साथ अपना ख़लीफा तस्लीम करके इनको अमीरूल मौमिन कहा था।। इनका ज़माना उंदुलुस की हुकूमते इस्लामिया का निहायत शानदार ज़माना था ।
मुल्क में हर तरफ अमन का दौर दौरा था
तिजारत की बहुत बड़ी तरक्की थी । अहले उंदुलुस ने अफ्रीका और एशिया के दूर – दूर जगहों पर अपनी तिजारती कोठियां कायम कर ली थीं । बहरी(समुद्री) ताकत में कोई मुल्क और कोई कौम उंदुलुस का मुकाबला नहीं कर सकती थीं तमाम समुंदरों पर गोया उंदुलुसी हुकूमत मुसलमानों की थी । इस ख़लीफा ने अपने सरदारों और अहलकारों को शाही इख़्तियारात नहीं दिए बल्कि वह खुद हर एक अहम और ज़रूरी मुआमला की तरफ तवज्जोह करते और अहलकारों पर कामों को छोड़ कर बेफिक्र नहीं हो जाते थे ।
इन्होंने उन अरब सरदारों और फकीहों की ताकत को जो हुकूमत ओर सलतनत पर हावी थे , धीरे – धीरे कम करके उन लोगों को जो ख़लीफा के हमदर्द थे , बढ़ाया और अपने ज़ाती गुलामों का एक हिफाज़ती दस्ता फ़ौज बनाया । ख़लीफा की निगाह से सलतनत का कोई छोटे से छोटा हिस्सा पोशीदा नहीं रहता था । तमाम हिस्सों तक खलीफा की नज़र पहुंच जाती थी ।
इस ख़लीफा ने जो सब से बड़ा काम किया , वह यह था कि मुसलमानों की मुख़्तलिफ़ जमातों और गिरोहों में जो मुख़ालिफत और ख़ानाजंगी पैदा करती थी , उसको बिलकुल मिटा दिया । और यही वजह थी जिसके सबब से उंदुलुसी मुसलमानों की अज़मत तमाम दुनिया की निगाहों में पैदा हो गई थी । उस ख़लीफा के ज़माने में गैर मुस्लिम लोगों यानी ईसाइयों और यहूदियों वगैरा के साथ निहायत मुरव्वत और नर्मी का बरताव होता था । ख़लीफा अब्दुर्रहमान की हुदूदे हुकूमत में रहने वाले तमाम ईसाई, ख़लीफा अब्दुर्रहमान को इस कदर महबूब रखते थे कि इस मुआमले में वह मुसलमान से हर्गिज़ कम न थे ।
जिहाद करने और काफिरों से बजाते खुद लड़ने में येह ख़लीफ़ा किसी से कम न थे और उनकी फ़ौजी कारवाइयां बहुत ही अज़ीमुश्शान होती थीं । साथ ही जब ख़लीफा के रिआया की बुलंदी , इल्म की ख़िदमत , मुआशिरे की इसलाह , तरक़्क़ी ओ तमद्दुन शौके इमारत , माल ओ दौलत की तरक्की , खेती की तरक्की वगैरा कारनामों पर गौर किया जता है तो उनका मरतबा और ज़्यादा ही बुलंद होता है।
इस ख़लीफा के ज़माने में न सिर्फ कुर्तबा बल्कि तमाम मुल्क उंदुलुस दुनिया में बेहतरीन नमूना बन गया था कहीं चप्पा भर ज़मीन ऐसी न थी जिस में खेती न होती हो । ख़ूबसूरत बाग़ात की कसरत से तमाम मुल्क गुलज़ार नज़र आता था । कोई शहर कस्बा और गावं ऐसा न था जिस में ख़ूबसूरत और सरबा फुलक इमारत की कसरत न हो । वह उंदुलुस जो इस ख़लीफा की तख़्त नशीनी से पहले बद अमनी और फितनो का घर बना हुआ था उनके अहदे सलतनत में अमन ओ अमान का मसकन बन गया था।
कुर्तबा और दूसरे शहरों की इमारात और रौनक ओ सलीका शेआरी बग़दाद ओ दमिश्क वगैरा से ज़्यादा बढ़ चढ़ कर थी । उंदुलुस की आबादी के मुकाबले में तमाम बर्रे आज़म यूरोप एक बयाबान नज़र आता था जहां तहज़ीब का नाम ओ निशान न था । यूरोप के तमाम बादशाहों की आमदनी मिल कर भी तनहा ख़लीफा अब्दुर्रहमान सालिस की आमदनी के बराबर न थी। ख़लीफा अब्दुर्रहमान सालिस की बाकायदा फौज जिन के नाम रजिस्टरों में लिखे थे , डेढ़ लाख थी मगर बेकायदा फौज यानी ज़रूरत के वक़्त रज़ाकारों वगैरा की तादाद जो जमा हो सकती थी , उसकी कोई गिनती न थी । बारह हज़ार आदमियों की फौज जिन में आठ हज़ार सवार और चार हज़ार पैदल थे , ख़लीफा की मुहाफिज़ तन फौज थी।
तमाम जज़ीरा नुमाए उंदुलुस में सड़कों और गलियों का एक जाल बिछा हुआ था । मुसाफिरों की हिफाज़त के लिए थोड़े थोड़े फासले पर चौकियां कायम थीं और सिपाही गश्त करते और पहरा देते रहते थे। डाक का इंतिज़ाम बज़रिए कासिदों के था जो डाक लेकर घोड़ों को तेज़ी से दौड़ाते हुए जाते थे। एक जगह से दूसरी जगह ख़बर इतनी जल्दी पहुंच जाती थी कि दूसरे मुल्कों के लोग उसको जादू समझते थे। अनगिनत बुरूज पहरा चौकी के लिए बने हुए था यह बुरूज साहिले समुंदर पर भी बने हुए थे । उन बुर्जों की चोटियों पर से दारुल – ख़िलाफा में जहाजों की नकल व हरकत की ख़बर बहुत जल्द पहुंच जाती थी ।
बैतुल माल से एक बहुत बड़ी रकम ऐसी इमारतों के लिए हमेशा ली जाती थी जो अवाम की तरक्की के लिए बनवाई जाती थीं । उन इमारतों के बनवाने से यह भी मकसद था कि कारीगरों और मज़दूरों के लिए काम हमेशा मुहैया रहे। उसका असर यह है कि उस तमाम मुल्क में जो मुसलमानों के कब्ज़ा में रह चुका है। गैर मामूली तादाद किलों और पुलों की पाई जाती है। बीमार और मोहताज आदमियों के लिए सरकारी मकानात थे। वहां सरकारी खर्च से उनकी हर किस्म की ख़बरगीरी की जाती थीं तमाम मकबूज़ा मुल्कों में दारुल यतामा कायम थे। उन में यतीमों की परवरिश और तालीम का इंतजाम ख़लीफ़ा के ख़ास खर्च से होता था और तमाम मुल्क उंदलुस में भीक मांगने वाला कोई नजर नहीं आता था।
सुल्तान अब्दुर्रहमान सालिस अपनी हुकूमत के आखिरी दिनों में मदीनतुज्ज़ोहरा में चला गया था , जो कुर्तबा के करीब एक दूसरा छोटा सा शहर बन गया था और रौनक ओ ख़ूबसूरती में कुर्तबा से बहुत बढ़ – चढ़ कर था। उंदलुस में हर किस्म के मेवे ज्यादा मिकदार में पैदा होने लगे थे और बाज़ारों में बहुत सस्ते बेचे जाते थे। दारुल – ख़िलाफा कुर्तबा में बहुत ज्यादा मदारिस और दारुल उलूम जारी थे।
जगह – जगह इल्मी तहकीकात के जलसे कायम होते थें शहजादे , उमरा और खुद ख़लीफा उन जलसों की शिर्कत और निगरानी करते। उलमा को इनाम और वज़ीफे अता करते थे। हैअत , तिब , फलसफा , हदीस और तफ़सीर के बेनज़ीर आलिम कुर्तबा में मौजूद थे। तालिबे इल्मों के ख़र्च और रहने – सहने का इंतिज़ाम सब शाही ख़ज़ाने के जिम्मे था
आख़िर दिनों में ख़लीफा अब्दुर्रहमान सालिस ने अपने वली अहद हुकूमत का कारोबार सलतनत के बहुत कुछ सुपुर्द कर दिया था और खुद अपना वक्त इबादते इलाही में ज़्यादा बसर करने लगे थे । ख़लीफा अब्दुर्रहमान सालिस ख़िताब नासिर लिदीनिल्लाह ने मरते वक्त सलतनते उंदुलुस को इस हालत में छोड़ा कि दुश्मन बादशाहों जो उंदुलुस पर कब्जा करने के ख़्वाब देखकर सरहद पर मौजूद थे , अपनी सैंकड़ों साल की कोशिश के बाद मायूस और नाकाम हो कर सलतनते इस्लामिया उंदुलुस की गुलामी और फरमांबरदारी का इक़रार करने पर मजबूर होकर इताअत गुज़ारी पर हर वक्त तैयार नज़र आते थे और गुलामों की तरह दरबारे कुर्तबा में अर्ज़ियां भेजते और इलतिजा करते थे ।
जो ईसाई बादशाह दूर – दूर के मुल्कों पर काबिज़ और हुक्मरान थे , वह भी ख़लीफा उंदुलुस को रज़ामंद रखने की कोशिश में नज़र आते और दरबारे कुर्तबा के साथ दोस्ताना तअल्लुकात पैदा होने पर फक्र करते थे । मराकिश का मुल्क उंदुलुस की हुकूमत में शामिल था। तमाम बहरे रूम और दूसरे समुंदरों पर भी उंदुलुस के बेड़े की हुकूमत थी और समुंदरों में कोई ताकत उंदुलुस के जहाज़ को नहीं रोक टोक सकती थी और कोई अंदुरूनी ख़तरा भी बाकी न रहा था ।
अमीरुल मोमिनीन ख़लीफा अब्दुर्रहमान सालिस उर्फ नासिर लिदीनिल्लाह ने 2 रमज़ानुल मुबारक सन् 350 हिजरी को 72 साल और कुछ महीने की उम्र में मकामे कुसरुज़्ज़ोहरा में वफात पाई ।