वाह री मध्यांचल विद्युत वितरण निगम, क्या बड़ का बाबू ने दिया निदेशक को रिश्वत खोरी का लाइसेंस?
बडका बाबू ने दिया निदेशक को भ्रष्टाचार का लाइसेंस
लखनऊ 21 अगस्त , वैसे तो कई दिनो से विभिन्न माध्यमों से एक खबर आ रही थी कि मध्यांचल विद्युत वितरण निगम मे निदेशक कार्मिक प्रशासन महोदय को ट्रान्सफर पोस्टिग मे भ्रष्टाचार करने का लाइसेंस मध्यांचल विद्युत वितरण निगम मे अवैध रूप से नियुक्त बडका बाबू ने प्रदान कर दिया है।
ऐसा इस लिए बोल रहा हूँ क्यो कि एक बडे सर्कुलेशन वाले राष्ट्रीय हिन्दी के दैनिक अखबार मे यह खबर छपी थी कि बडकऊ के सामने ही निदेशक कार्मिक प्रशासन व पूर्व मुख्य अभियन्ता सेस गोमती ट्रान्सफर पोस्टिग के जरिए लूटे गये चादी के जूते लेकर तु तू मै मै हुई और फिर बेबस बडकऊ ने दोनो को अपने कार्यालय से बाहर जा कर आपसी विवाद निपटानो को कहा।
ऐसा पढ और सुना जिसके बाद मेरे मन मे कौतहल जागा कि जब एक बडा सस्थान का पत्रकार जब ऐसा लिख रहा है तो जरूर दाल मे कुछ काल होगा । तो पहुंच गये अपनी खोजी नाक से सूधते हुए पहुंच गये मध्यांचल विद्युत वितरण निगम के मुख्यालय यहाँ।
आ कर पता लगा कि छोटी मोटी लूट नही हो रही अच्छी खासी खुलेआम चादी के जूते को ले कर जूतेबाजी नही चल रही है वरन निदेशक कार्मिक प्रशासन महोदय फुल फार्म मे अपनी लूट की आखरी बाजी खेल रहे है तो आइए सबसे पहले बताते है इन निदेशक कार्मिक प्रशासन महोदय का संक्षिप्त परिचय जिन्हे दबी जुबान मे सब जूनियर ए पी मिश्रा कहते है।
उन्हो ने कई प्रबन्धनिदेशक के चार्ज लिए थे और इन्होने ने कई निदेशको के चार्ज एक साथ सभाले दोनो ने ही मिसाल कायम की ।
पूर्व मे चर्चित प्रबन्ध निदेशक उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन ए पी मिश्रा के सबसे खासम खास व्यक्तियो मे पहले नम्बर पर आते थे। हमारे मध्यांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के निदेशक कार्मिक प्रशासन विभाग मे चर्चा है कि पूर्व प्रबन्ध निदेशक पावर कार्पोरेशन की सेवा मे जनाब ने तन मन घन के साथ साथ अपना सब कुछ सुख चैन भी अर्पित कर दिया और बन गये थे हमसाया प्रबन्ध निदेशक पावर कार्पोरेशन ए पी मिश्रा के ।
वैसे यह जनाब पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के इलाहाबाद वर्तमान मे प्रयागराज मे यह अधिशाषी अभियन्ता सेकंडरी वर्कर्स थे उसके पश्चात अधीक्षण अभियन्ता स्टोर फिर अधीक्षण अभियन्ता कार्यशाला पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के रहे। फिर इनका स्थानातरण मुख्य अभियन्ता पद पर लखनऊ हो गया। जहाँ यह लखनऊ ट्रास गोमती के मुख्य अभियन्ता का पद शोभायमान करते रहे।
लखनऊ आगमन के कुछ ही समय पश्चात इनके साथ एक बडा हादसा भी हो गया। जनाब की पत्नी ने एक लम्बी बीमारी के बाद इनका साथ छोड कर परलोकवासी हो गयी। उनकी मृत्यु के पश्चात मुख्य अभियन्ता रहते हुए इनका चयन निदेशक कार्मिक प्रशासन के रूप मे मध्यांचल विद्युत वितरण निगम मे हो गया और कुछ समय पश्चात ही बिल्ली के भाग्य से छीका टूटा।
लम्बे समय तक निदेशक निदेशको की चयन प्रक्रिया बाधित रही जिसके फल स्वरूप कार्मिक के पद के साथ साथ जनाब ने निदेशक वाणिज्य व निदेशक तकनीक का काम भी सम्भालना शुरू कर दिया यानि मिश्रा जी की तरह ही बन गये त्रिदेव ।
इसी बीच भ्रष्टाचार के जरिए अकूत घन अर्जित किया जिसको कमाने मे सहयोग करने के लिए अपने पुराने विश्वासपात्र घोटाले के मास्टर माइंड हमराज कार्यालय सहायक इरफान गनी को प्रयागराज से नियम विरुद्ध तरीके से लखनऊ मध्यांचल मे पद विस्तारित कर के ले आये। ताकि इनका भ्रष्टाचार का खेल भी चलता रहे और यह सफेदपोश भी बने रहे।
यानि कि चादी के जूते भी खाते रहे और किसी को पता भी ना चले परन्तु कहते है ना कि किसी भी काम की अति बुरी होती है और वही हुआ कार्यकाल पूरा होने से पहले इनके कारनामो की भनक लग गयी और इनको इस्तीफा देना पडा । लेकिन भाग्य का खेल तो देखिए नोटिस पीरियड मे ट्रान्सफर पोस्टिग का काम हाथ लग गया जो स्थानातरण के समय चादी का जूता चला तो पाप का घडा फूट गया और आ गयी सारी कहानी सामने। इनके जो भ्रष्टाचारी साहयक है उनकी एक लास्ट इस भ्रमण के दौरान हाथ लगी जिसमे *मध्यांचल विद्युत वितरण निगम के मुख्यालय मे ही सालों से ज्यादा जमे हुए खिलाडियो के बारे मे पता चला हैं शुरू करते है एमडी कैंप कार्यालय से जहाँ शिविर सहायक सुनील विश्वकर्मा लगभग 20 सालों से जमे हुए है ,
एमडी कैंप कार्यालय में ही शिविर सहायक रामराज भी लगभग 20 सालों से जमे हुए है । इनका दोनो ओर स्टाफ मे डर इतना है कि अगर आप को प्रबन्ध निदेशक से मिलना है तो जो आप अपना विजिटिंग कार्ड आप चपरासी को देगे तो वह प्रबन्ध निदेशक के पास ना जा कर आपका कार्ड ले कर इनके पास जाएगा अगर यह चाहेगे तो आप प्रबन्ध निदेशक से मिल सकते है अन्यथा नही ।
अब बारी आती है ड्राफ्ट मैन महात्मा की जो लगभग 15 सालों से जमे हुए ;मोहित राव ए ई( a e) लगभग 10 सालों से ज्यादा से जमे हुए ! फैजान बाबू के पद पर 10 सालों से काबिज ; अब यह लेखा अधिकारी नीरज चतुर्वेदी और आनन्द कुमार पोरवाल दोनो 18 -18 सालो से जमे हुए है।
इनकी कहानी भी अजीब है हर बार जब ट्रान्सफर पोस्टिग का समय आता है तो यह दोनो कभी स्वास्थ्य का बहाना ले कर परिवार परिस्थितयो की आड ले कर बचते रहे है वैसे कभी निर्देशक वित्त की आड ले कर लिखवा लेते है कि इनके बिना कार्यालय चलाना संम्भव नही है इनके जाने से कार्यालय चलाने मे परेशानी होगी आदि आदि पाठक समझ रहे है।
कौन सी परेशानी यानि चांदी का जूता कैसे चलेगा इस बार कोई बहाना ना मिला तो इन दोनो ने VRS यानि स्वैच्छिक सेवानिवृत्त का ही प्रार्थना पत्र दे ही दे दिया और जब सारी सेटिंग हो गयी तो प्रार्थना पत्र अस्वीकृत हो गया और ट्रान्सफर नही हुआ तो स्वैच्छिक सेवानिवृत्त का पत्र वापस भी ले लिया। यानि फिर चल गया चादी का जूता वो भी प्रबन्ध निदेशक की नाक के नीचे ।
मध्यांचल विद्युत वितरण निगम के मुख्यालय मे भ्रष्टाचार के बहुत से महारथी भ्रष्टाचारी है जो सालो साल से यहाँ जमे हुए है मजाल है जो कोई इनको आज तक हिला पाया हो! प्रमुख है सहायक लेखाधिकारी शैलब बनर्जी 10 वर्ष , सुशान्त दास लेखाकार 12 वर्ष, देवेश कुमार लेखाकार 12 वर्ष, विजय कुमार वर्मा 8 वर्ष, वैभव अस्थान 14 वर्ष, अनिल कुमार लेखक लिपिक सम्बध्द निदेशक वित्त यह पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम से है और निदेशक वित्त के पास जब पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम का चार्ज था तब पधारे थे फिर यही जम गये।
एक और रत्न है विजय कुमार जिनकी पोस्टिग तो मध्यांचल विद्युत वितरण निगम के मुख्यालय मे है लेकिन पाए जाते है अधिशाषी अभियन्ता ठाकुरगंज के कार्यालय मे दूसरे है दीपक त्रिपाठी पोस्टिग है। मध्यांचल मुख्यालय मे पाए जाते है। अतिरिक्त कार्यभार देखने के लिए शाहजहांपुर मे और लगभग सभी की जानकारी स्टाफ आफिसर और निदेशक कार्मिक प्रशासन को है।
परन्तु जहाँ इतना कमजोर प्रबन्ध निदेशक हो जिसके सामने उसके मातहत रिश्वत के पैसे के लिए उसी के सामने लडते हो तो जाहिर है जहाँ ट्रान्सफर पोस्टिग के किस्से सुनने के बाद अध्यक्ष पावर कार्पोरेशन को दखल देना पडा हो तो वहाँ किस हद तक भ्रष्टाचारी महारथियो ने अपने पैर जमाऐ है। इनको मध्यांचल मुख्यालय के भ्रष्टाचारी रत्न कहे तो अतिशोक्ति नही होगी और यहाँ भ्रष्टाचार कैसे सिर चढ कर बोल रहा होगा?
वैसे तो नियम कानून को निदेशक महोदय अपने जूते की नोक पर रखते है जो यह चाहते है या इनका चहेता इरफान गनी चाहता है उसी की ही सुनवाई होती है तो फिर चाहे मुख्यमंत्री का आदेश हो या सरकारी नियमावली सभी इनकी ठोकरो मे है बस चादी का जूता चलाओ और मनचाहा काम कराओ और जो नही चलाते चाँदी का जूता तो उनके काम भी नही होते उनके प्रार्थनापत्र कूडे के ढेर मे पडे रहते है। मध्यांचल विद्युत वितरण निगम मुख्यालय मे भ्रष्टाचार का आलम क्या होगा यह पाठक खुद ही समझ सकते है । खैर
युद्ध अभी शेष है।
संवाद
चन्द्र शेखर सिंह प्रबंध सम्पादक और मो मोनिस उप संपादक