मेरे कातिल को अब भी खबर हो जाए कि अभी मैं जिंदा है
अभी मैं जिंदा हूं मुश्तहर किजिए
मेरे क़ातिल को खबर किजिए
1988 में विश्व अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी 1.54 प्रतिशत और चीन की हिस्सेदारी 1.62 प्रतिशत थी यानी लगभग बराबर ।
उसी समय चीन ने संकल्प लिया कि अपनी अर्थव्यवस्था सुधारनी है उसके लिए उसने मेहनत शुरू किया और उसे कामयाबी मिली आज विश्व अर्थव्यवस्था में उस की हिस्सेदारी ज्यादा बेहतर यानी 15.86 प्रतिशत है।
उसी दौरान भारत ने भी ऐसे ठान लिया था कि बाबर और मुग़ल का बदला लेना है और वह भी आज के भारतीय मुसलमानों से रथ यात्रा निकाली गई। मुस्लिमों के विरुद्ध माहोल बनाया गया। लघु उद्योग में मुस्लिमों की बहुत बड़ी हिस्सेदारी थी इस लिए लघु उद्योग बर्बाद कर दिए गए। बाबरी मस्जिद शहीद कर दी गई! आतंकवाद के नाम पर मुस्लिम युवकों को उठा लेना और उनका इनकाउंटर कर देना आम बात हो गई। टाडा और पोटा जैसे कानून का इस्तेमाल किया गया। तरह तरह से मुस्लिमों को टार्चर किया गया।
भारत भी अपनी मेहनत में कामयाब रहा लेकिन अर्थव्यवस्था में पिछड़ गया और आज विश्व अर्थव्यवस्था में उसकी हिस्सेदारी मात्र 3.17 प्रतिशत है चीन से पांच गुना कम वह भी तब जब इसे मनमोहन सिंह जैसा अर्थशास्त्री मिला हुआ था वरना हालात और भी खराब होते ।
मुसलमानो को दीवार से लगाना था देश की अर्थव्यवस्था को दीवार से लगा दिया आज हमारी मजबूरी है कि हम चीन की ओर न देखें और सिर्फ पाकिस्तान श्रीलंका और नेपाल से मुकाबला करके खुश रहें !
उन
दिनों भारत अपने रेशमी कपड़ों और कीमती कालीनों के लिए मशहूर था। पीतल के बर्तनों में नक्काशी और लेदर डिजाइनिंग जैसी यहां होती थी कहीं और नहीं होती थी। जरदोजी का वह काम होता था कि एक मीटर कपड़े का मूल्य लाखों में होता था पाशमीना शाल सिर्फ यहां बनते थे। अलीगढ़ के ताले और सूरत के हीरे-जवाहरात पूरी दुनिया में मशहूर थे देश को गौरवान्वित करने वाली यह चीज़ें सिर्फ मुस्लिम कारीगर बनाते थे और हैं।
लेकिन मुसलमानों की दोनों आंखें फोड़ने के चक्कर में सब ने अपनी एक आंख फोड़ लीं!
संवाद
मो अफजल इलाहाबाद