में जुबा ए उर्दू हुं मैं तो अभी भी जिंदा हुं,मुझे चाहने वालों के जमीर का पता नहीं,ये अल्फाज सही है या फिर गलत मुझे हरगिज पता नही!
उर्दू को बचाने के लिए,
तहरीक ऐ उर्दू राजस्थान के प्रदेश संयोजक एवं कोटा वरिष्ठ शहर क़ाज़ी अनवार अहमद से उनके निवास पर उर्दू बचाओं संघर्ष समिति के पदाधिकारियों शौकत अंसारी अख्तर खान अकेला ,ने मिलकर , उर्दू को लेकर चल रही शिकवे शिकायत , उनके समाधान के प्रयासों की शुरुआत के बारे में चर्चा की
बैठक में अख्तर खान अकेला ने उर्दू बचाओ संघर्ष समिति के प्रदेश संयोजक ठाकुर शमशेर भाई से , भी कोटा वरिष्ठ शहर क़ाज़ी अनवार अहमद की टेलीफोनिक चर्चा करवाई। इस के पूर्व टोंक के उर्दू फिक्रमंद उर्दू के जंगजू सिपाही खुर्शीद खान साहब ने भी वरिष्ठ शहर क़ाज़ी अनवार अहमद से विस्तृत चर्चा की।
तहरीक ऐ उर्दू राजस्थान के सरपरस्त संयोजक उर्दू की नाफ़रमानी उर्दू की उपेक्षा और प्राइमरी स्टेज पर उर्दू की बदहाली पर काफी खफा नज़र आये और इस मामले में उन्होंने हर मुद्दे पर एक जुट होकर गाँधीवादी तरीके से जल्दी ही , निस्तारित करने को लेकर हालात भी जानें चर्चा में झालावाड़ के शौकत अंसारी
बारां के अख़लाक़ भाई झालवाड़ के शिक्षाविद रेहान भाई , साजिद नासिर, तबरेज़ पठान, ज़ाहिद खान भी शामिल थे।
में जुबां ऐ उर्दू हूँ ,
में तो अभी भी ज़िंदा हूँ ,
मुझे चाहने वालों के ज़मीर
का मुझे पता नहीं ,
यह अल्फ़ाज़ सही हैं या फिर गलत मुझे हरगिज़ पता नहीं। लेकिन कमोबेश उर्दू के साथ प्राइमरी स्टेज से लेकर कॉलेज स्तर तक की नाइंसाफी उर्दू तहज़ीब को फरोग देने वाले इदारे अकादमियां, नौकरियां , नौकर पेशा लोग सभी लोग तो उर्दू कोआई सी यू वेंटिलेटर की जुबां से बाहर निकाल कर कुछ बड़ा बहुत बड़ा नहीं कर पा रहे हैं ।
खुदा का शुक्र हैं कोटा के वरिष्ठ शहर क़ाज़ी अनवार अहमद की सरपरस्ती में मंज़ूर आलम साहब, में खुद अख्तर खान अकेला , ज़ाकिर भाई , खुर्शीद खान साहब सहित कोटा की सर ज़मीं पर रह रहे हर अमन पसंद नागरिक ने कंधे से कंधा मिलाया और, सड़कों पर ,लाखों की तादाद में निकल कर उर्दू को मटियामेट करने की साज़िश को नाकाम कर दिया ।
सरकार झुकी फैसले बदले। फिर कुछ दिन बाद पुरे राजस्थान में अलग अलग ज़िलों में रैलियां निकलीं और अब वही खामोशी, फिर ठाकुर शमशेर उर्दू के जंगजू सिपाही बने। भूख हड़ताल पर बैठे टीम बनाई यात्रा निकाली। मांगे उठाई कुछ मांगे लिखित में समझौते में आयीं। फिर जूज़ पिया जीत का जश्न नहीं हुआ जीत का ऐलान हुआ। अल्लाह का शुक्र है। कुछ मांगे पूरी हुई कुछ अभी भी अधर झूल में हैं।
उसके लिए ठाकुर शमशेर नई टीम बनाकर फिर से ऐलान ऐ जंग के साथ उर्दू के हक़ में मैदान ऐ जंग में हैं। अभी उर्दू को उसका हक़ दिलाने के लिए दिल्ली दूर नहीं है । चुनावी मौसम आ रहा है। अभी नहीं तो कभी नहीं। करो या फिर मरो ,के नारे के साथ उर्दू को ज़िंदा रखने के लिए खुलकर मैदान में आओ, यह मत सोचो कि उर्दू जुबां से सिर्फ एक क़ौम एक मज़हब का जुड़ाव है।
भला हो कांग्रेस विचारधारा का जो उर्दू को सभी मज़हब की जुबां बनाया है। यहां मदरसों में पैराटीचर्स की नियुक्तियों में क़ाबलियत और आरक्षण के आधार पर भर पूर गैर मुस्लिम समाज के प्रतिभावान शख्सियत मदरसों में पैराटीचर्स हैं। जबकि कॉलेज में उर्दू लेक्चरर हों स्कूलों में सेकेंडरी स्कूल , सीनियर सेकेंडरी स्कूल में टीचर्स हों ।
सभी में प्रतिशत के आधार पर आधे के लगभग दूसरे समाज के हैं तो फिर इन सभी समाजों को जोड़कर जब राजस्थान सरकार उर्दू एकेडमी बना सकती है तो हम प्राइमरी स्कूल स्तर से उर्दू को दफन करने की साज़िशों के खिलाफ एक जुट होकर ब्यूरोक्रेट्स का पर्दाफाश क्यों नहीं कर सकते? मदरसा पैराटीचर्स के साथ हो रही ना इंसाफ़ी उन्हें उनके ग्रह ज़िलों से कोसों दूर , काले पानी की सज़ा मुट्ठी भर वेतन के बदले देने के खिलाफ हम क्यों नहीं लड़ सकते, पैराटीचर्स को उनके ग्रह ज़िले में क्यों नहीं लगवा सकते उन्हें परमानेंट क्यों नहीं करवा सकते?
एक अमीन खान हैं जो कई सालों से हर साल , हर दिन, हर घंटे , हर पल उर्दू के लिए संघर्ष करने, लड़ने की कार्ययोजना बनाते हैं । वोह अलग बात है कि यह कार्ययोजना सफल नहीं हो पाती है। एक कोटा वरिष्ठ शहर क़ाज़ी अनवार अहमद हैं। उनकी तहरीक ऐ उर्दू राजस्थान की टीम है, जो उर्दू के साथ ना इंसाफ़ी के संघर्ष में गाँधीवादी तरीके से , लेकिन गाँधीवादी में भी अकेले नहीं हज़ारों नहीं लाखों लाख लोगों की भीड़ के साथ जंग के लिए तय्यार बैठे हैं।
हमारे अपने नो विधायक , हमारे अपने , उर्दू एकेडमी , मदरसा बोर्ड में नियुक्त चेयरमेन अधिकारी , वक़्फ़ बोर्ड से जुड़े लोग , अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमेन , वक़्फ़ विकास परिषद के चेयरमेन , हमसे चाहे कितने ही बेवफा हों, खौफ या फिर लालच के मारे वोह चाहे सरकार से वफादारी के बरख़िलाफ़ ना जा सकें। लेकिन उनका दिल उनके दिलों की धड़कन, उनका खामोश समर्थन हमारे साथ हैं।
अब तहरीक ऐ उर्दू राजस्थान हो उर्दू बचाओं संघर्ष समिति हो, हमारी उर्दू विकास समिति हो और भी पैराटीचर्स , शिक्षक संघ , शायर , कवियों की तंज़ीमें हों, क़व्वालों, मस्जिद ,मदरसों की समितियां हों , सब को मिलजुलकर एक साथ फिर से प्राइमरी स्कूल से ही उर्दू पढ़ाने का क़ानून शत प्रतिशत लागू हो । इसके लियें जद्दो जहद के साथ यलगार करना होगा। बच्चे पढ़ें ताकि यह जुबां रोज़गार की जुबां से हठ कर , फिर से तहज़ीब की जुबां बन सके। इंक़लाब ज़िंदाबाद का नारा फिर से बुलंद हो सके।
सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा , और हम बुलबुले हैं इसके जैसे तराने फिर से देश में गूंज सकें। लेकिन इसके लिए हमे खुद को हमारी सोच बदलना होगी , जो हमारे विधायक हैं, मंत्री हैं , मंत्री दर्जा हैं उन्हें कोसना बंद करना होगा। क्योंकि सत्ता में बने रहने के लिए उन्हें अभी बहुत पापड़ बेलना पढ़ रहे है। अपने ज़मीर से कई समझौते करना पड़ रहे हैं, वोह वहां हैं तो हैं तो हमारे ही भाई । आज नहीं तो कल हमारे साथ फिर लौटेंगे।
हो सकता हैं वोह वहां बैठकर कुछ हमारे हक़ में, नहीं भी कर रहे हों , तो अल्लाह से तो दुआ कर ही रहे होंगे, इसलिए इस उर्दू जुबां की जंग, उर्दू तहज़ीब के फरोग की जंग में हम खुद को हीरो ना समझे इसमें हर शख्स हीरो है। जो हमारे साथ है वोह भी , और जो हमारे खिलाफ है वोह भी। इसमें ना हिन्दू की बात करो, ना मुसलमान की बात करो।
क्योंकि उर्दू लेक्चरर , उर्दू टीचर्स , पैराटीचर्स , उर्दू एकेडमी में, सभी धर्म और समाज के लोग शामिल हैं। हमे अब उर्दू के लिए फ़िक्र करना छोड़कर उर्दू का सियासत की तरह ज़िक्र करना छोड़कर सीधे उर्दू के परचम को लहराने के लिए जंग ऐ मैदान में एक संघर्ष की बड़ी कार्ययोजना के साथ उतरना होगा और इसके लिए जो तंज़ीमें बनीं हैं उन्हें उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम तेरा , मेरा जो झगड़ा हैं उसे भुलाकर एक जुट होकर एक साथ , एक मांग पत्र के साथ, सरकार की चूलें हिला देने वाली ताक़त के साथ मैदान में आना होगा। फिर ना कोई जूज़ पीकर वायदों पे यक़ीन करके बिना मांगे पूरी हुए अनशन से उठना हैना ही ज्ञापन ज्ञापन खेलना है।
एक हुजूम , एक भीड़ , एक ताक़त , एक सड़कों पर , ज़लज़ला दिखाना है , और अगर फिर भी यह नहीं सुधरे तो इन्हे सियासत में इन्ही की जुबां में वोटों की जुबां से हराना है। क्या ऐसा कर सकोगे , क्या उर्दू को रोज़गार की ,जुबां उर्दू एकेडमी को , यात्राएं , गुलछर्रे उड़ाने की तहज़ीब से बाहर निकालकर , फिर से तहज़ीब की जुबां बना सकोगे क्या उर्दू निदेशालय खुलवा सकोगे, क्या प्राइमरी स्कूलों में , उर्दू जुबां हर हाल में शुरू हों , ऐसा आदेश करवा सकोगे। क्या उर्दू माध्यम स्कूल फिर से ज़िंदा कर सकोगे, क्या उर्दू के मुशायरों ,में फिर से उर्दू अदब उर्दू तहज़ीब को ज़िंदा कर सकोगे, क्या उर्दू जुबां के साथ पक्षपात करने वाले अधिकारीयों , नेताओं , मंत्रियों ,विधायकों के खिलाफ दंडात्मक क़ानून बनवा सकोगे ? क्या उर्दू के साथ बेईमानी करने वाली सियासी पार्टियों , सियासी नेताओं को चुनावों में कितने ही नज़दीकी लोगों का दबाव क्यों ना हो उन्हें हराकर ज़मीन पर लाने का संकल्प कर सकोगे? अगर ऐसा कर सकते हो इससे भी बढ़कर गांधीवादी संघर्ष कर सकते हो तो आओ आपका तहे दिल से स्वागत है इन्तिज़ार है।
संवाद
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान।