मुस्लिम नुमाईदगी बीजेपी की राह पर लेकिन बीजेपी सरकारें मुस्लिम मुक्त हो चुकी है क्या संदेश देना चाहती है ये पार्टियां ?

वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की बीजेपी और प्रदेशों से मरकज तक की बीजेपी सरकारें मुस्लिम मुक्त हो चुकी है। पंडित अटल बिहारी वाजपेयी के दौर से बीजेपी और बीजेपी सरकारों में वजीर रहने वाले मुख्तार अब्बास नकवी और सय्यद शाहनवाज हुसैन भी अब किनारे लगाए जा चुके हैं।

नए लोगों को पार्टी या सरकार में लाया नहीं जा रहा है। वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी का दौर आने के बाद से कांग्रेस में भी एक बड़ी तब्दीली आई है। वह यह कि अब कांग्रेस कयादत ने भी अपनी पार्टी को मुस्लिम मुक्त बनाने का काम तकरीबन मुकम्मल कर लिया है। कांग्रेस आला कमान को चारों तरफ से घेरे रहने वाले आरएसएस जेहन के सलाहकार बार-बार अपने लीडरान को बताते हैं कि एलक्शन हो या आम दिन मुसलमानों को अहमियत देना ठीक नहीं है।

अगर हमने मुसलमानों को अहमियत दी तो हिन्दू वोटरों में उसका बैकलैश यानी जबरदस्त रद्देअमल होगा और हिन्दू हमसे नाराज होकर अलग हो जाएगा। एलक्शन-दर-एलक्शन शर्मनाक शिकस्त के बावजूद कांग्रेस लीडरशिप कभी अपने सलाहकारों से यह नहीं पूछती कि आपके मश्विरे पर पार्टी ने मुसलमानों को अहमियत देना तो बंद कर दिया फिर भी हिन्दुओं ने पार्टी को वोट क्यों नहीं दिया? कभी इस बात पर गौर नहीं किया जाता कि आखिर देश के आम हिन्दू वोटर कांग्रेस के मुकाबले वजीर-ए-आजम मोदी की बीजेपी और इलाकाई पार्टियों को तरजीह क्यों देते हैं। पार्टी आला कमान ने कभी इस हकीकत पर भी गौर नहीं किया कि मुसलमानों को किनारे लगाकर कांग्रेस ने अपने बुनियादी उसूलों और सेक्युलरिज्म के रास्ते से हटने की गलती करके ही अपनी हालत ऐसी बना ली है कि आज कहीं की नहीं रही।

कोविड के दौरान सीनियर कांग्रेस लीडर अहमद पटेल का इंतकाल हो गया। अब दूसरे सीनियर लीडर गुलाम नबी आजाद ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। इसका नतीजा यह हुआ है कि पार्टी में मरकजी सतह पर कोई बड़ा मुस्लिम लीडर बचा ही नहीं है। सीनियर लोगों में सलमान खुर्शीद और तारिक अनवर बचे भी हैं तो पार्टी में उन दोनों को कोई अहमियत नहीं मिलती। नए लोगों को पार्टी में घुसने नहीं दिया जाता। अहमद पटेल के बेटे फैसल की सेहत ठीक नहीं रहती वह अपने वालिद और अपनी बीवी के इंतकाल के सदमे से उबर नहीं पा रहा है।

बेटी मुमताज में लीडर बनने की सलाहियत है लेकिन उन्हें अभी तक कोई मौका नहीं दिया जा रहा है। मुसलमानों के लिए पार्टी के रवैय्ये का हाल यह है कि गुजरात में कांग्रेेस के दस-बारह मेम्बर असम्बली हुआ करते थे मोदी और बीजेपी के खौफ की वजह से अब पार्टी चार-पांच मुसलमानों को ही टिकट देती है तो तीन-चार जीत जाते हैं। अभी भी गुजरात में मुस्लिम उम्मीदवारों के जीतने का फीसद हिन्दू उम्मीदवारों के मुकाबले कहीं ज्यादा है। इसके बावजूद हिन्दुओं में रिएक्शन के बहाने मुसलमानों को ज्यादा टिकट नहीं दिए जाते।

पूरे मुल्क की अगर बात की जाए तो साउथ इंडिया की पांचों रियासतों यानी आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में कर्नाटक में रौशन बेग से बड़ा मुस्लिम लीडर कोेई नहीं है। वह असम्बली के मुसलसल आठ एलक्शन जीते, चार बार कैबिनेट वजीर और एक बार मिनिस्टर आफ स्टेट रहे। उन्हें एक झटके में पार्टी से निकाल दिया गया क्योंकि राहुल गांधी के नजदीकी के सी वेणुगोपाल को रौशन बेग का चेहरा पसंद नहीं था उन्हें पार्टी से निकाला गया तो राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी किसी ने यह पता करने की कोशिश नहीं की कि गलती उनकी थी या वेणुुगोपाल की। केरल की मकामी सियासत की वजह से ए के एंटोनी की तरह वेणुगोपाल को भी मुसलमानों से नफरत है।

तमिलनाडु में मोहम्मद हारून लोक सभा मेम्बर होते थे, पार्टी ने उनका टिकट काट दिया। जबकि मुसलसल दिल्ली में रहने वाले पी चिदम्बरम के बेटे कार्ति चिदम्बरम को टिकट दे दिया गया। तेलंगाना में शब्बीर अली कैबिनेट मिनिस्टर रहे हैं अब घर बैठे हैं। असम, मगरिबी बंगाल और उड़ीसा में भी पार्टी ने किसी मुसलमान को आगे नहीं आने दिया। बंगाल के मालदा से ए बी ए गनी खान चौधरी आखिरी सांस तक लोक सभा मेम्बर रहे, उनके इंतकाल के बाद मालदा में दो सीटें हो गईं तो एक पर उनके भतीजे और दूसरी पर उनके दूसरे भतीजे की बेटी मौसम नूर जीत कर लोक सभा पहुची, अगली बार कांग्रेस ने उन्हें भी टिकट नहीं दिया तो मौसम नूर ममता की टीएमसी में चली गई ममता ने उन्हें राज्य सभा पहुंचा दिया। बिहार में डाक्टर शकील अहमद लोक सभा मेम्बर थे। यूपीए की पहली सरकार में वजीर थे। वह बिहार कांग्रेस के सदर भी रहे, लेकिन राहुल के सलाहकारों ने उन्हें बड़ी चालाकी से किनारे लगा दिया। दूसरे शकील अहमद खां जेएनयू यूनियन के सदर रह चुके है। दो बार से मेम्बर असम्बली हैं।

आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सेक्रेटरियों में उनका नाम भी शामिल है लेकिन पार्टी के बड़े लीडर उन्हें मिलने का वक्त नहीं देते।
उत्तर प्रदेश में भी हिन्दू वोट नाराज न हो जाए इसलिए कांग्रेस में किसी मुसलमान को अहमियत नहीं दी जा रही है। चार सीनियर लीडर सलमान खुर्शीद, मुईद अहमद, जफर अली नकवी और सईद उज्जमां मरकज और प्रदेश में मिनिस्टर भी रहे हैं।

सलमान खुर्शीद, जफर अली नकवी और सईद उज्जमा लोक सभा मेम्बर भी रहे हैं। चारों बस नाम के लिए ही कांग्रेस के लीडर हैं। राजस्थान में दूरू मियां और अबरार अहमद वजीर भी रहे और कांग्रेस के लिए सरमाया भी, दोनों का इंतकाल हो गया, सचिन पायलेट की तरह उन दोनों के बच्चों को पार्टी में कोई मौका नहीं दिया गया।

पंजाब में मलेर कोटला का नवाब खानदान पुराना कांग्रेसी होता है। अब वहां से पार्टी में किसी की पूछ नहीं है। यही हाल हरियाणा का हुआ है। उधर जम्मू-कश्मीर में गुलाम नबी आजाद ही सबसे बड़े लीडर थे। उन्होने पार्टी छोड़ी तो एक जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के सदर के अलावा बाकी पूरी पार्टी उनके साथ चली गई। सैफ उद्दीन सोज के पढे-लिखे बेटे सलमान सोज को पार्टी में तर्जुमान भी बनाया गया था। वह बहुत अच्छा बोलते थे। सैफ उद्दीन सोज की उम्र बहुत हो गई है। फिर भी उनके बेटे सलमान को आगे नहीं बढने दिया जा रहा है।

महाराष्ट्र में किसी जमाने में डाक्टर रफीक जकरिया, अब्दुल रहमान अंतुले, डाक्टर इस्हाक जिमखाना वाला, सैयद अहमद और प्रोफेसर जावेद जैसे कद्दावर मुस्लिम लीडर हुआ करते थे। अंतुले चीफ मिनिस्टर भी रहे उनकी बेटियों को पार्टी में कोई जगह नहीं मिली, उनके भतीजे और सियासी जानशीन मुश्ताक अंतुले को पार्टी में घुसने नहीं दिया गया। नए लोगों में बाबा सिद्दीकी, और आरिफ नसीम खान पार्टी में हैं तो लेकिन सिर्फ नाम के लिए।

महाराष्ट्र के मुसलमानों की अक्सरियत एनसीपी होने के बावजूद कांग्रेस को वोट देती है। जवाब में कांग्रेस अंतुले के बाद किसी एक लोक सभा सीट पर भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारती। जबकि मुंबई शहर की कम से कम चार कोकण, में एक और एक औरंगाबाद सीटें ऐसी हैं जहां अगर कांग्रेस मुस्लिम उम्मीदवार उतारे तो वह आसानी से जीत सकते हैं।

लेकिन वहां भी वही खौफ कि अगर मुसलमान को टिकट देंगे तो हिन्दू नाराज हो जाएगा। लेकिन मुसलमानों को टिकट न देकर भी कांग्रेस महाराष्ट्र में कोई खास कामयाबी हासिल नहीं कर पा रही है। अगर इन हालात के बावजूद राहुल गांधी कहते हैं कि कांग्रेस सेक्युलर इकदार (मूल्यों) पर चलने वाली पार्टी है तो वह झूट बोलते हैं।

SHARE THIS

RELATED ARTICLES

LEAVE COMMENT