धनकड़ के इस्तीफे के पीछे का एक काला सच

कुमार अवस्थी

कल तो पूरी रंगबाजी के साथ ऐलान किया था कि मैं बहुत बीमार हूं, इसलिए इस्तीफा दे रहा हूं।
लेकिन अब पता चल रहा है कि उन्हें क्यों डंडे मार-मार कर रौंदा गया?

मकान खाली करने का हुक्म दिया गया और खाली करने से पहले ही सरकारी मकान पर ताला ठोंक दिया गया।

जिस आईटीसेल का स्टाफ था, उसको तत्काल मकान खाली कर कुर्सी जगह बिठा दिया गया।
बताते हैं कि भाजपा की जितनी भी रोटी धनकड ने भकोसी है, उसका पूरा हिसाब ब्याज सहित उगलवाने पर आमादा है मोदी।
मोदी की नजर में व्यक्ति नहीं, उसका बेईमान होना महत्वपूर्ण है। जैसे ही व्यक्ति ईमानदार बनता है, उसके पिछवाडे पर लातें रसीद कर उन्हें कुत्ते की तरह निकाल बाहर कर दिया जाता है।

लेकिन कुत्ता भी तो इसी लायक होता है। जब तक हडडी मिलती रहती है, कूं-कूं कर अपने मालिक के जूते चाटता रहता हैं। सौ-सौ जूते खा कर भी, गली के आसपास कुंकुंआता रहता है।
आज जगदीप धनकड को देख लीजिए। अपने मालिक को खुश करने के लिए क्या-क्या नहीं किया था जगदीप धनकड ने। आज टॉमी से मार-मार कर गंधैला कलुआ बना दिया गया।

मुझे धनकड जैसों की ऐसी दुर्दशा पर न तो कोई अचरज है, और नही सहानुभूति। हां, देश की इस हालत पर दुख जरूर है। बीजेपी की ऐसी राजनीति और इतनी ओछी हालत की निंदा हो रही है।

साभार;पिनाकी मोरे

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