दरअसल होनी चाहिए थी बहस चीनी हमले पर किंतु हो रही है पठान फिल्म की बिकनी पर ,किसने भड़काई ये बहस?
बहस होनी चाहिए थी चीनी हमले पर लेकिन हो रही है पठान फिल्मी चढ्ढी के रंग पर। यह बहस किसने भड़काई?
जाहिर है कि एक राज्य के गृहमंत्री का इस बहस को हवा देना महज संयोग नहीं है। फर्जी राष्ट्रवाद का चोला ओढ़े भाजपाई ओं ने देश पर लगातार हो रहे हमले के सवाल को चोली के रंग से ढंक दिया।
उन्हें जवाब देने से बचना है इसलिए उनका स्टंट समझ में आता है लेकिन इस देश को क्या हुआ है?
अभी अभी राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस में तो गजब हुआ। पूरी प्रेस कांफ्रेंस खत्म हो गई तो राहुल गांधी ने कहा कि मैं हैरान हूं कि किसी भी पत्रकार ने चीन पर एक भी सवाल नहीं पूछा। यात्रा, भीड़, अनुभव, गहलोत, सचिन सब पूछ लिया, चीन पर तो कुछ पूछा ही नहीं। फिर शरमाते हुए एक पत्रकार ने चीन पर सवाल किया।
मीडिया की यह हालत हो गई है कि वह विपक्ष से भी काम के मुद्दे पर सवाल पूछना भूल चुका है। वह सबसे ज्वलंत मुद्दे छोड़कर इधर उधर की बातें करना चाहता है मसलन आप आम चूस कर खाते हैं या चिचोर कर खाते हैं।
प्रेस की स्वतंत्रता एक अवधारणा है। प्रेस का मुंह बंद मतलब जनता की जबान पर ताला। मीडिया की मौत किसी पत्रकार का छोटा नुकसान है, असल में यह 140 करोड़ लोगों की नागरिक आजादी का छिन जाना है। इसे देश की आम जनता द्वारा संज्ञान में लेना चाहिए। और हकीकत में क्या और ऐसे क्यों चल रहा है। ये समझने की आवश्यकता है