जानिएआज के कलमकार और उनकी घरगृहस्ती के बारे मै कि क्या हाल है कलमकारों का?
क्या है पत्रकार?
लोक तंत्र का चौथा स्तंभ पत्रकारिता,
जनता का आइना समझे जाने वाले
पत्रकारों सेआम जनता द्वारा उम्मीद की जाती है कि वो सच लिखें, अन्याय के खिलाफ़ लिखें, सत्ता से सवाल पूछें, गुंडे अपराधियों का काला चिट्ठा खोल के रख दे और लोकतंत्र ज़िंदाबाद रहे।
1. लेकिन पत्रकारों से कभी पूछिए उनकी सैलरी ?
2. कभी पूछिए पत्रकारों के घर का हाल?
3. कभी पूछिए उनके खर्चे कैसे चलते हैं ?
4. कभी पूछिए उनके बच्चों के स्कूल के बारे में?
5. कभी मिलिए उनके बच्चों से और पूछिए उनके कितने शौक पूरे कर पाते हैं उनके अभिभावक?
6. कभी पूछिए की अगर कोई खबर ज़रा सी भी इधर उधर लिख जाएं और कोई नेता, विभाग, सरकार या कोई रसूखदार व्यक्ति मांग लें स्पष्टीकरण तो कितने मीडिया हाउस अपने पत्रकारों का साथ दे पाते हैं?
7. कितने पत्रकारों के पास चार पहिया वाहन हैं ?
8. कितने पत्रकार दो पहिया वाहनों से चल रहे हैं ?
9. कितने पत्रकारों के पास बड़े बड़े घर हैं?
10. अपना और अपनों का इलाज़ कराने के लिए कितने पत्रकारों के पास जमा पूंजी है ?
11. प्रिंट मीडिया के पत्रकारों का रूटीन पूछिएगा कभी, दिन भर फील्ड और शाम को ऑफिस आकर खबर लिखते लिखते घर पहुंचते पहुंचते बजते हैं रात के 11, 12, 1… सोचिए कितना समय मिलता होगा उनके पास अपने बच्चों, परिवार , बीवी मां बाप के लिए समय|
12. आपको लगता होगा कि पत्रकारों के बहुत जलवे होते हैं–? ऐसा नहीं है.
13. कभी पूछिए की अगर पत्रकार को जान से मारने कि धमकी मिलती है तो प्रशासन उसे कितनी सुरक्षा दे पाता है?
14. कभी पूछिए की अगर कोई पत्रकार दुर्घटना का शिकार हो जाता है और नौकरी लायक नहीं बचता तो उसका मीडिया हाउस या वो लोग जो उससे सत्य खबरों की उम्मीद करते हैं वो कितने काम आते हैं|
15. और अगर किसी पत्रकार की हत्या हो जाती है तो कितना एक्टिव होता है शासन प्रशासन और कानून पुलिस.
16. दंगे हों, आग लग जाए, भूकंप आ जाएं, गोलीबारी हो रही हो, घटना दुर्घटना हो जाएं सब जगह उसे पहुंच कर न्यूज कवरेज करनी होती है|
17. कोविड जैसी महामारी में भी पत्रकार ख़ासकर फोटो जर्नलिस्ट अपनी जान पर खेल खेल कर न्यूज कवर कर रहे थे.. सोचिएगा|
18.गिने चुने पत्रकारों की ही मौज है बाकी ज़्यादातर अभी भी संघर्ष में ही जी रहे हैं।
अगर किसी पत्रकार के पास अच्छा फोन, घड़ी,कपड़े, गाड़ी दिख जाए तो उसके लिए लोग कहने लगते हैं कि दलालो की दलाली में डूबा हुआ होगा इस लिए उन से से बहुत पैसा कमा रहा है?
भई क्यों नहीं है हक उसे अच्छे कपडे, फोन घर गाड़ी इस्तेमाल करने का सोचिएगा फिर चर्चा करेंगे|
ऐसे में जो पत्रकार बेहतरीन काम कर रहे हैं रात दिन जूझ रहे हैं एक एक एक खबर के लिए वो न सिर्फ बधाई के पात्र हैं बल्कि उन्हें हाथ जोड़ कर प्रणाम कीजिएगा उनका दर्द भी समझिएगा।कलमकारों की मुश्किलों ,तकलीफें और उनके आख्रजात का भी राज्य प्रशासन ने समूचा खयाल रखना चाहिए। गौर तलब है कि अभी दो तीन महीने पहले अर्थात अक्टूबर दिनांक 18 ,2022की घटना सुनाता हु।
मुंबई वर्ली महाराष्ट्र स्थित से मशहूर मीडिया
डीटेक्शन सा.प्रिंट मीडिया के प्रबंधक एवं संपादक शेख साहब ने किसी मुंबई महाराष्ट्र के ठाणे के वर्तक नगर नाका पर स्थित असामाजिक तत्व के गुंडे तथा अजय विजय और लक्ष्मण नामी मटका जुआ माफिया के खिलाफ आवाज बुलंद की,
ठाणे पुलिस कंट्रोल और महाराष्ट्र के डीजीपी से शिकायत की तो उन्हें माफिया द्वारा जान से मार ने की धमकी दी गई। जिसकी शिकायत उन्हों ने महाराष्ट्र राज्य प्रशासन तक की है किंतु आज तक जान से मार देने की धमकी दिए जानेक्सवाले मटका जुए माफिया गुंडों के खिलाह कोई कार्रवाई हुई न तो जुए अड्डे के खिलाफ कोई कार्रवाई की। मामला अब भी ठंडे बक्से में पड़ा रह गया है। इस के जिम्मेदार ठाणे की स्थानीय वर्तक नगर पुलिस और उनके बड़े पुलिस अधिकारी है।
ऐसे में सवाल है कि जिस गुंडों ने पत्रकार शेख साहब को जान से मारने की खुलेआम धमकी दी है सुस्त और मस्त पुलिस प्रशासन ने अब तक और गुंडे मवाली माफिया के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नही की है उन्हे खुली तौर से पुलिस ने छूट देकर उनके गोरख धंधों को संरक्षण देने का घृणित कार्य क्यों किया जा रहा है। जबकि
असामाजिक तत्वों के लोगों का हौसला अफजाई को बढ़ावा मिलना तय हो चुका है।ऐसे में पीड़ित पत्रकार के साथ भविष्य में अगर कोई खतरनाक जानलेवा हमला या कोई अनहोनी हुई तो इस का जिम्मेदार कौन होगा?
ऐसे कई मामले पत्रकारों के साथ आए दिन घटित होते रहते है।जिसकी राज्य प्रशासन द्वारा संज्ञान लेकर ऐसे गुंडे मवालियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर उन्हे तड़ीपार कर देना चाहिए।ऐसा हमारा सुझाव है।