गुलाम को गुलामी पसंद ना हो तो कोई आका पैदा हो नही सकता, लेकिन हमे क्या हम तो आजाद है
एमडी डिजिटल न्यूज चैनल और प्रिंट मीडिया
ब्यूरो
ग़ुलाम को ग़ुलामी पसंद ना हो तो कोई आक़ा पैदा नहीं हो सकता.
लेकिन हमें क्या हम तो आज़ाद है!
कंबोडिया के मुसलमान
किसी जमाने में एक ऐसा भी देश हुआ करता था जिस को चंपा नाम से जाना जाता था , यह कंबोडिया और वियतनाम के दक्षिण में स्थित था। दरअसल यह देश सन 192 ईस्वी में वियतनाम से अलग हो कर बना था और सन 1832 में इसे वियतनाम ने ताक़त के बल पर अपने में वापस मिला लिया।
चंपा में जो लोग रहते थे उन्हें चाम कहा जाता था। यह अपना संबंध भारत से जोड़ते थे और खुद को नागवंशी कहते थे। शुरू में यह लोग स्थानीय धर्मों को मानते थे लेकिन चौथी शताब्दी में कुछ ब्राह्मणों की कोशिश से हिंदू शैव धर्म को अपना लिया था।
उस वक्त समुद्र के तटीय इलाकों में कुछ अरब भी रहते थे। जो अरब और चीन के बीच व्यापार करते थे। इन अरबों ने हज़रत उस्मान के जमाने में इस्लाम क़बूल कर लिया था। लेकिन देश के असल निवासी यानी चाम लोग हिंदू धर्म को ही मानते थे।
ग्यारहवीं शताब्दी में एक हिंदू राजा ने इस्लाम कबूल कर लिया और उस के बाद इस्लाम बहुत तेज़ी से फैला। आज 70% से ज्यादा चाम लोग मुसलमान हैं।
1832 में जब चंपा देश पर वियतनाम ने कब्जा कर लिया उस के बाद चाम लोगों की परेशानी शुरू हुई। ज्यादा तर चाम कंबोडिया की तरफ़ पलायन कर गए। कुछ वियतनाम में भी रुके रहे,और कुछ पड़ोसी देशों थाइलैंड व मलेशिया चले गए और थोड़े बहुत फ्रांस जा कर आबाद हो गए। आज जो चाम वियतनाम में हैं उन में हिंदू धर्म के मानने वाले अक्सरियत में हैं। जबकि कंबोडिया में आबाद चाम लोग मुसलमान हैं जो लगभग पांच लाख से अधिक हैं।
इन चाम मुसलमानों के साथ कंबोडिया के लोगों का रवैया शुरू में बहुत अच्छा रहा। बाद में उन पर दबाव डालना शुरू किया कि वह बौद्ध धर्म अपना लें , जिस पर मुसलमान तैयार नहीं हुए और इन पर काफ़ी ज़ुल्म हुआ खास कर 1970 से 1980 तक चले कंबोडिया के गृहयुद्ध में लाखों चाम मुसलमानों को कम्युनिस्टों ने कत्ल कर दिया।
सन 1980 के बाद बनने वाली सरकार में चाम मुसलमानों को मुकम्मल आजादी मिली हुई है। लेकिन उन्हें गरीबी , तालीम की कमी और अपनी आइडेंटिटी को बाकी रखने के चैलेंजों का सामना करनाहै एक ऐसे देश में जहां वह सिर्फ ढाई फीसदी हैं और बाकी सब बौद्ध धर्म के मानने वाले हैं बहुत सी परेशानियां हैं।
लेकिन तालीम की कमी तेज़ी से दूर हो रही है। चाम मुस्लिम तालीम पर खास मेहनत कर रहे हैं। जिस की वजह से बड़े बड़े सरकारी ओहदों पर भी कुछ चाम नज़र आते हैं।
गल्फ देशों ने भी इनकी काफी मदद की है। कंबोडिया की राजधानी में यूएई सरकार ने एक शानदार मस्जिद और इस्लामी केंद्र बनाया है। इसी तरह हायर एजुकेशन के लिए राजधानी पहुंचने वाले चाम स्टूडेंट्स के लिए कुवैत ने एक हास्टल तामीर किया है। पाकिस्तान के एक व्यापारी ने भी मस्जिद तामीर की है। मलेशिया और ब्रुनेई ने भी काफी मदद की है।
धीरे धीरे चाम मुसलमानों की हालत में काफ़ी सुधार हो ता जा रहा हैM शिक्षा और व्यापार में आगे बढ़ रहे हैं ।
संवाद;
खुर्शीद अहमद