क्या राहुल गांधी की इस कदर बढ़ती लोकप्रियता के कारण हैरान है मोदी जी?
एमडी डिजिटल न्यूज चैनल और प्रिंट मीडिया
विशेष संवाददाता
पिनाकी मोरे
भेड़ों को अपने बाड़े में बंद रखना मजबूरी है।
राहुल गांधी की निरंतर बढ़ती लोकप्रियता और विपक्षी दलों के नवगठित संयुक्त मोर्चा ‘इंडिया’ की एकजुटता और इसकी आज मुंबई में शुरू हो रही बैठक में एनडीए घटक दलों में से कुछेक के अलग होकर इस नये गठबंधन में शामिल होने की चर्चा से भयभीत मोदी ने आनन-फानन में एनडीए की भी मुंबई में ही बैठक बुलाई है। वे ऐसी ही घबराहट में ‘इंडिया’ गठबंधन की 18 जुलाइ को बंगलुरु में हुई बैठक के दिन दिल्ली में 38 दलों की बैठक आयोजित कर चुके हैं।
गौर तलब हो कि
इस तरह अपने बाड़े में घेरकर रखने से क्या हासिल होगा जबकि इन 38 दलों का कोई वजूद ही नहीं है। इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिनका कोई नेता न विधायक है और न ही संसद सदस्य। वे धरातली सच से बहुत दूर सिर्फ बढ़ी हुई संख्या दिखाने के सजावटी प्लास्टिक के फूलों जैसे हैं। एनडीए में शामिल जिन दलों का थोड़ा-बहुत जनाधार है भी उनके नेताओं की राजनीतिक हैसियत कुछ भी नहीं है। यह एनडीए की दिल्ली बैठक में साफ देखा गया। जिसमें मोदी ही छाये रहे।
जिस आर.एस.एस ने मोदी को गढ़कर नेता बनाया जिसके नाम पर उन्होंने 35 साल भीख मांग कर खाई, जिसके बल पर वे प्रधानमंत्री बने; जब मोदी उसे ही कोई भाव और खासे कोई महत्व नहीं देते और यहां तक कि आर.एस.एस प्रमुख मोहन भागवत को उनके जन्मदिन पर शुभकामनाएं तक नहीं देते तो उनके लिए भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे इन नेताओं का कोई वजूद ही नहीं है। तभी तो वे अपनी हां में हां मिलाने की इनकी मजबूरी को देखते हुए अब तक इनका इस्तेमाल करते रहे हैं।
एनडीए में किसी की भी कोई हैसियत ही नहीं है। वे मोदी-मोदी का कोरस गाने वालों से बढ़कर नहीं हैं। वहां बैठक से पहले फूलों का हार सिर्फ मोदी को पहनाया जाता है और पोस्टर, बैनरों पर भी सिर्फ और सिर्फ मोदी की ही फोटो छापी जाती है।
इन कोरस गायकों के अलावा समस्त देश जानता है कि मोदी एक अलोकतांत्रिक, अराजकतावादी और तानाशाही प्रवृत्ति वाली शख्सियत हैं जो आत्ममुग्ध रहते हैं। उनकी दृष्टि में आमजन कीड़े-मकोड़े से ज्यादा नहीं है। इसीलिए वे लोगों के मर जाने की भी परवाह नहीं करते। अलबत्ता उनके शवों का इस्तेमाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। तभी तो वे गुजरात में हुए साम्प्रदायिक दंगों और मणिपुर की जातीय हिंसा को रोकने की बजाय उन्हें अपना मौन समर्थन देते हुए चुप रहते हैं।
कोविड संक्रमण के दौरान मची त्राहि-त्राहि में आवश्यक प्रबंध करने के बजाय लोगों को ताली-थाली बजाने और दीया-मोमबत्ती जलाने जैसी हृदयहीनता का नग्न प्रदर्शन करने में जरा भी संकोच नहीं करते। उन्हें गंगा में तैरती असंख्य लाशें और श्मशानों में लगी मुर्दों की लंबी-लंबी कतारें देखकर भी कर्तव्य बोध नहीं होता।
भारी कर्ज से दबे अनगिनत किसानों, धंधा चौपट होने से दुखी व्यापारियों या नौकरी गंवा चुके नौजवानों द्वारा खुदकुशी करने या बैंक के बाहर लगी कतारों में खड़े-खड़े मरने वालों की ओर से आंखें बंद करने वाले मोदी के मुंह से संवेदना का एक भी लफ्ज़ नहीं निकलता। न ही महंगाई से पीड़ित जनता को राहत देने का एक भी प्रयास किया।
राष्ट्रवाद के गीत गाने और एक भी भ्रष्टाचारी को नहीं छोड़ने की गारंटी देते हुए भी देश की सारी सम्पत्ति अंबानी को औने-पौने दामों में सौंपने के साथ ही देश में साम्प्रदायिक घृणा और हिंसा को बढ़ावा देने जैसे तमाम कारणों से लगातार अलोकप्रिय होते मोदी को चार राज्यों के विधानसभा चुनाव तथा आगामी लोकसभा चुनाव में अपनी करारी हार का डर सता रहा है। तभी एनडीए के घटक दलों को अपने बाड़े में घेरे रखना जरूरी हो गया है। यही एकमात्र वजह है जिसके चलते आज इंडिया गठबंधन के दिन और शहर में ही समानांतर बैठक बुलाई गई है।
तो कहा जा सकता है कि भेड़ों को अपने बाड़े में बंद रखना मजबूरी है।