कितने दिनों बाद भी पहलगाम हमले पर कोई कार्रवाई की आहट तक नहीं ?

विशेष
संवाददाता

पहलगाम हमले को 12 दिन होने को हैं, दो दिन में पहलगाम आतंकवादी हमले में शहीद हुए लोगों की तेरहवीं भी हो जाएगी , चौकीदार मोदी अपनी राजनीति चमकाने में व्यस्त हो गये , बिहार में हंसी ठिठोली तो केरल में चुटकुले बाजी कर रहे हैं।

सबकुछ सामान्य होता जा रहा नजर आ रहा है। अमेरिका ने तो आदेश दे भी
दिया कि युद्ध नहीं होना चाहिए, शांति से दोनों देश मामले सुलझाए जाएं।

मामला था क्या? 28 लोगों की मौत, उनके परिजनों के आंसू , वह कैसे सुलझेंगे? इतने दिनों बाद भी वह आतंकवादी नहीं मिले , ना उन्हें मारा गया, ना उन्हें गिरफ्तार किया गया यहां तक कि उन्हें ज़मीन खा गयी या आसमान खा गया पता नहीं चला।

इसके बावजूद कि दावा था कि काश्मीर में चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा है और कोई परिंदा वहां पर भी नहीं मार सकता है और वह आतंकवादी 28 को मारकर गायब हो गये?
पहलगाम में वह सब कुछ हुआ जो भाजपा राजनीति के लिए सोने पर सुहागा था , सिलसिलेवार देखें तो घटना मुस्लिम बहुल काश्मीर में हुई, जहां सभी सेवाकर्ता मुसलमान थे , जहां बचे चश्मदीदों के अनुसार मारने वाले आतंकवादी मुसलमान थे , इन आतंकवादियों ने सबसे उनका धर्म पूछ कर मारा , उनसे कलमें पढ़वाए और ना पढ़ने पर मार दिया, उनके पैंट उतरवाए और गोली मार दी , इसके बाद जो एक और केमिकल है वह है इसमें पाकिस्तान का शामिल होना।

यह सब पूरा दुर्घटनाक्रम और सारे पात्र इस देश में कहीं भी आग लगाने के लिए काफ़ी थे , मगर छिटपुट उदाहरण के अतिरिक्त कहीं से भी कोई ऐसी अप्रिय खबर नहीं आई।

जानते हैं कि क्यों? क्योंकि काश्मीर के लोकल लोगों ने आगे आकर इस संभावित सांप्रदायिक खेल को रोक दिया और रोका। शिवांगी और आरती जैसे पीड़ितों के बयानों ने कि काश्मीरियों ने उनके बच्चों, और उनकी जान बचाई। आरती कह रही है कि उसने अपने पिता को खोया मगर उसे पहलगाम में दो भाई मिले।
सारी चिढ़ उनके सांप्रदायिक खेल के ध्वस्त होने से है। ये एक सोची समझी साजिश या खेला तो नहीं जैसे पुलवामा में हो गुजरा था अबतक किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं? इसके पीछे आखिर सच क्या है पब्लिक को जरूर जान लेना चाहिए।
संवाद;पिनाकी मोरे

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