कितनी बार एक ही कहानी दोहराई जाएगी?

संवाददाता
सजाद नयानी

` कितनी बार एक ही कहानी दोहराई जाएगी?`

19 साल बाद कोई बेगुनाह कहकर रिहा होता है.

14 साल जेल में रहने के बाद कोर्ट कहती है – सबूत नहीं थे।

11 साल बाद समझ आता है – कोई जुर्म ही नहीं था।

23 साल की ज़िंदगी सलाखों के पीछे बीत जाती है, और फिर कहा जाता है – “माफ कीजिए, आप बेगुनाह थे।

9 साल बाद CBI खुद मानती है – “गलत पहचान थी।
और अब वही कहानी फिर से दोहराई जा रही है।

उमर ख़ालिद, ख़ालिद सैफ़ी, शरजील इमाम, गुलशिफ़ा, मीरान हैदर, अथर और ना जाने कितने ऐसे लोग, जिनका “गुनाह” सिर्फ़ इतना है कि इन्होंने संविधान पढ़ा, सवाल पूछे, और लोकतंत्र में अपनी आवाज़ उठाई।

क्या हम फिर से इंतज़ार करेंगे? 10-15 साल बाद ये लोग बाहर आएं, और फिर सिस्टम कहे – माफ़ कीजिए, गलती हो गई थी।
न्याय अगर वक्त पर ना मिले, तो वो न्याय नहीं, सीधा ज़ुल्म कहलाता होता है।

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