कारपोरेट चोरों का लोकतांत्रिक महाभोज जिम्मेदार कौन?

विशेष संवाददाता

कॉर्पोरेट चोरों का लोकतांत्रिक महाभोज

भारत एक लोकतंत्र है—कम से कम संविधान में तो यही लिखा है। लेकिन ज़मीन पर यह लोकतंत्र अब एक कॉर्पोरेट जागीर बन चुका है, जहाँ जनता की संपत्ति पर दो तरह के लोग शासन करते हैं—एक रिफाइंड सूट में, और दूसरा धूल से सने खनन खदानों में।

इन दो प्रतीकों के नाम हैं: मुकेश अंबानी और बेल्लारी बंधु।

1) लूट का सूट-बूट संस्करण: मुकेश अंबानी
कहने को यह ‘उद्यमी’ हैं, लेकिन असल में यह सिस्टम के सेंधमार हैं। सरकार ने जब New Exploration Licensing Policy (NELP) लागू की, तब अंबानी को पेट्रोलियम मंत्रालय की दीवारों के पीछे घुसने का रास्ता मिल गया। ONGC जैसी सार्वजनिक कंपनियों की खोजी गई गैस को “माइग्रेटेड” बता कर अपनी जेब में डाला गया।

Production Sharing Contract ने उन्हें यह सुविधा दी कि वे जो चाहें, उतनी लागत दिखा सकें।
100 करोड़ का काम 1000 करोड़ का बताया गया। यह ‘गोल्ड प्लेटिंग’ केवल फिजूलखर्ची नहीं थी, यह सार्वजनिक धन का योजनाबद्ध हरण था।
जब लागत को दोगुना नहीं, कई गुना दिखाया जा सकता है, तो टैक्स बचाना आसान हो जाता है।

इसी तरह यह काली कमाई शेल कंपनियों, मॉरिशस और केमन द्वीपों के रास्ते गोदामों में बदल दी जाती है।
इन घोटालों की कोई स्पष्ट तस्वीर कभी नहीं बनती—क्योंकि उन्हें “ease of doing business” के पर्दे में छिपा दिया जाता है।
अंबानी की कंपनियाँ बजट नहीं बनातीं, लेकिन हर बजट उन्हीं के लिए बनता है।
वो संसद में नहीं आते, लेकिन हर नीतिगत फ़ैसले के पीछे उनकी परछाईं होती है।

2) लूट का खनन संस्करण: बेल्लारी बंधु

बेल्लारी बंधु, विशेषकर जनार्धन रेड्डी, आधुनिक भारत के खनन माफिया का बेताज बादशाह बन चुका था। इनकी भूतिया मालगाड़ियाँ रात के अंधेरे में निकलती थीं—बिना चालान, बिना अनुमति, बिना इंजन की आवाज़। ये गाड़ियाँ लौह अयस्क नहीं, संविधान की चिता ढो रही थीं।
हर दिन दर्जनों गाड़ियाँ बेल्लारी से निकलती थीं और सरकार सोती नहीं थी—वह चुपचाप हिस्सा लेती थी।

खनन मंत्रालय, वन विभाग, पुलिस, प्रशासन—सब कुछ इनकी मुट्ठी में था।
जब जनार्धन रेड्डी हेलीकॉप्टर से बैंगलोर जाकर नाश्ता करता है, तो यह केवल एक धूर्तता नहीं, एक घोषणा होती है—कि भारत की संपत्ति अब लोकतंत्र की नहीं, कुछ गिने-चुने ठेकेदारों की हो चुकी है।

3) लूट का नया फॉर्मूला

भारत में लूट अब डकैती नहीं, नीति निर्माण से होती है।

सबसे पहले नीति बनती है—NELP जैसी, जिसमें जनता को बहकाने की भाषा होती है, और कंपनियों को लूटने का रास्ता।
फिर लागत को कृत्रिम रूप से बढ़ाया जाता है—गोल्ड प्लेटिंग करके। जनता की जेब से पैसा निकाला जाता है, और मुनाफा छिपाकर टैक्स से बचा लिया जाता है।
फिर विदेशों में शेल कंपनियों के ज़रिए धन को ‘साफ’ किया जाता है।
और अंत में—मीडिया को विज्ञापन और सरकार को चंदा देकर सब कुछ “कानूनी” बना दिया जाता है।

ONGC जैसी सार्वजनिक कंपनियाँ इस लूट की पहली शिकार बनीं।
एक समय देश की संपत्ति मानी जाने वाली ONGC अब सबकी लुगाई बन चुकी है—जिसे जो चाहे, जैसे चाहे इस्तेमाल करता है।

4) कौन ज़िम्मेदार है?

इस लूटतंत्र का पहला बीज अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में बोया गया।
उन्होंने NELP की शुरुआत की—भले ही वह उदारीकरण के नाम पर थी, लेकिन जल्द ही यह कॉर्पोरेट घरानों के लिए एक अघोषित खदान बन गई।

फिर NDA सरकारों ने इस बीज को पानी, खाद, और मीडिया कवरेज देकर विशाल वटवृक्ष बना दिया।

*M5) निष्कर्ष

मुकेश अंबानी और बेल्लारी बंधु भारत की दो आँखों में खंजर की तरह गड़े हैं—एक चमकता है, दूसरा खनकता है।
पर दोनों की धार एक जैसी है—जनता की संपत्ति पर सर्जिकल स्ट्राइक।
ये लुटेरे पुराने ज़माने के डकैत नहीं हैं—ये पॉलिसी के लेखक हैं, चुनावों के फंडदाता हैं, और राष्ट्रवाद के नकली पुजारी हैं।
इनके महलों की नींव में हमारे खेतों का खून है, हमारे बच्चों की भूख है, और संविधान की चुप्पी है।

अगर इस लूट को लूट नहीं कहा जाएगा,
तो आने वाली पीढ़ियाँ यह ज़रूर पूछेंगी—
क्या भारत ने अपने सबसे बड़े चोरों को भगवान बना दिया?

साभार;पिनाकी मोरे

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