ओ चाहे तो एक दिन भी नही लगेगा, मस्जिद ए अक्सा को आजाद कर देने में, पता नही इतने सारे इस्लामिक मुल्कों के होते कहां मर गई है गैरत?
पूरी दुनिया जानती है कि दुनिया में आज भी बरकरार है 56 इस्लामिक मुल्क की ताकत फिर भी कुछ
पता नहीं इन सब मुल्कों के शहेंशाओं को क्या ही गया है। इन सारे लोगों की गैरत कहां मर गई? अगर वो चाहें तो क्या नही हो सकता, एक दिन भी नहीं लगेगा मस्जिद ए अक्सा को आज़ाद करा देने में। कर सकते हैं आजाद लेकिन नही लगता है ये लोग यहूदो नसारा के सब गुलाम बने हुए हैं कभी भी कोई भी इस्लामिक मुल्क फिलिस्तीन के मज़लूम मुसलमानों के लिए आवाज़ नहीं उठाता है हश्र में इनका भी बहुत बुरा हाल होगा इनको भी अल्लाह के सामने हाज़िर होना है!
या अल्लाह फ़िर से किसी सलाहउद्दीन अय्यूबी को पैदा कर जो इन जालिमों से बैतुल मुकद्दस को आज़ाद कराए।
क्या हमारे सीनो मे ये दर्द है??
जो बाबा जान के सीने मे था?
मक़ामाते मुक़द्दस पर हुकूमत हो मुसलमानी!
सलाहुद्दीन ग़ाज़ी सा कोई सुल्तान पैदा कर!
ख़ुदा की क़सम! अगर “सैयदना उमर बिन ख़त्ताब रज़िअल्लाहु तआ़ला अन्हू” इसे देख लेते तो सैहुनियों (صَیہُونوں) के लिए कहीं छुपने की जगह भी न बचती, और अगर ख़ालिद बिन वलीद रज़िअल्लाहु तआ़ला अन्हू देख लेते तो अस्सी तलवारें तोड़ देते तब भी उनका खून ठंडा न होता
अगर सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी रज़िअल्लाहु तआ़ला अन्हू देख लेते तो अपनी मज़लूम बहन के आंचल में गिरे खून के एक एक कतरे के बदले सत्तर-सत्तर लाशें न गिरा लेते तब तक सुकून से नहीं बैठते।
मुसलमानों पे इतना ज़ुल्म ढाया जा रहा और तुम गैरों के साथ मेल जोल रखते हो अमन का दर्स देते हो.और कौन से अमन की बात करते हो.?
वो हमारी आबरू से खेल रहे उसकी.? या वो हमारी मस्ज़िदों मज़ामीरों की गिरा रहे , क़ुरआन जला रहे तुम इस अमन की बात करते हो तुम्हें शर्म नहीं आती.?
ऐ मुसलमानों! क्या तुम्हारे हाथ मफ़्लूज (Paralyzed) हो गए हैं.? या तुम्हारी जुबानें कट गई.? या तुम्हारे रगों का ख़ून ठंडा पड़ गया है? ख़ुदा के लिए अब तो उठ खड़े हों, कबतक ग़फ़लत की नींद सोते रहोगे
मस्जिद-ए अक़्सा
चिश्ती ऊवेशी
संवाद
जमील शेख