एक मुस्लिम युवक ने जब राहुल गांधी से सवाल किया कि देश भर में आए दिन मुसलमानों पर हमले हो रहे है हमे खुलकर दिल से बात करने का मंच नही मिलता आप अगर सत्ता में आए तो क्या करेंगे ?जानिए इन सब सवालों का उन्हों ने क्या कुछ जवाब दिया?
एमडी डिजिटल न्यूज चैनल और प्रिंट मीडिया
ब्यूरो
राहुल गांधी लद्दाख़ में
मुस्लिम युवा ने राहुल गांधी से अंग्रेज़ी में पूछा, “हम अपनी मुस्लिम पहचान को लेकर निडर रहे हैं. हमें कारगिल के होने का भी गर्व है. हमें मुसलमान होने पर भी उतना ही गर्व है. हम अपनी ये पहचान मज़बूती से रखते हैं और ये हमारे लिए प्यारा भी है. हम अपने देश के युवाओं को मामूली अपराधों के लिए, स्पीच देने के लिए सज़ा पाते देखते हैं. अगर आप सत्ता में आए तो क्या उन हालात को बदलेंगे जो भारतीय मुसलमान झेल रहे हैं?”
युवा ने कहा, हमें दिल से बात करने का कोई मंच नहीं मिलता. हम अपनी समस्याओं के बारे में बात नहीं कर सकते क्योंकि हम नहीं चाहते कि लोग या सरकार हमें निशाना बनाए. हम सरकारी नौकरियां चाहते हैं। आप सत्ता में आए तो क्या करेंगे?
इसके जवाब में राहुल गांधी ने कहा, आप सच कह रहे हैं, भारत में मुसलमानों पर हमले हो रहे हैं. ये शिकायत ग़लत नहीं है. लेकिन आपको ये भी समझना होगा कि भारत में और भी लोग हैं, जिन पर हमले हो रहे हैं।
मणिपुर में जो हो रहा है, चार महीनों से मणिपुर जल रहा है। आपको ये नहीं सोचना चाहिए कि केवल मुसलमानों पर हमले हो रहे हैं। ये मुसलमानों, दूसरे अल्पसंख्यकों, दलितों और आदिवासियों के साथ हो रहा है।
हम इस मुद्दे पर लड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं और इस संघर्ष में, मैं और कांग्रेस सबसे आगे हैं।. आप किसी भी धर्म से हों, किसी भी समुदाय से हों, देश के किसी भी कोने में आपको ख़ुद को सुरक्षित महसूस करना चाहिए. यही भारत के संविधान का आधार है।
राहुल गांधी के जवाब पर युवा ने पलटकर सवाल किया कि क्या वो उन मुसलमानों को आज़ाद करेंगे जो जेल में हैं?
इसके जवाब में राहुल गांधी ने कहा, “दोस्त, हम कोर्ट की बात मानते हैं. कोई भी क़ानून के दायरे से बाहर जा कर काम नहीं कर सकता। मैं संविधान के तहत काम करूंगा, मेरे पास इसका कोई विकल्प नहीं है। अगर सुप्रीम कोर्ट ने मेरी सदस्यता फिर से बहाल नहीं की होती, मुझे फ़ैसला मानना होता।. एक राजनेता के तौर पर हमारे पास यही रास्ते हैं।. लेकिन आप जो कह रहे हैं, वो सही है, हम किसी ख़ास समुदाय, समूह, धर्म, जाति और भाषा के आधार पर हो रहे पक्षपात के प्रति संवेदनशील हैं। ये बात सच है।
संवाद; मो अफजल इलाहाबाद