उप राष्ट्रपति धनकड़ के बाद क्या रिटायर्ड होंगे ये बड़े नेता?
मोदी-शाह में दरार?
लोग कहते हैं कि राजनीति बड़ी कुत्ती चीज है, इसमें पता ही नहीं चलता कि कब कौन पिछवाड़े का माँस काट खाए।
मोहन भागवत द्वारा 75 वर्ष का राग आलापने के साथ ही लोगों के बीच तरह-तरह के कयासों का बाजार गर्म हो गया। दो माह बाद 75 वर्ष पूरे करने वाले नरेंद्र मोदी को लेकर यह सवाल उठता है कि क्या वे राजीखुशी रिटायर होंगे और अगर ऐसा हुआ तो उनकी जगह कौन लेगा? लेकिन मोदी का इरादा तो कुछ और ही लगता है।
अब तक एक ही सिक्के के दो पहलू के तौर पर समझे और काम करते रहे नरेंद्र मोदी और अमित शाह में मतभेद सतह पर आ गया लगता है और इनके बीच एक नया खेल चालू हो गया है। इस खेल की शुरुआत हो चुकी है जिसके चलते नरेंद्र मोदी अमित शाह के बेटे जय शाह की BCCI की नौकरी में फच्चर फँसाने में जुट गए हैं।
यह जगजाहिर है कि जय शाह की सबसे बड़ी योग्यता उनके पिता अमित शाह का देश का गृह मंत्री और उनके मित्र मोदी का देश का प्रधानमंत्री होना है।
अमित शाह जब गुजरात क्रिकेट संघ के अध्यक्ष थे तभी उन्होंने परिवारवाद का कड़ा विरोध करते हुए पहले अपने बेटे को GCA के बोर्ड में घुसा दिया और फिर जॉइंट सेक्रेटरी बनवा दिया।
उसके बाद जब जय शाह का बाप देश के गृह मंत्री बन गया तब परिवारवाद को एक और झटका देते हुए उन्होंने अपने अनपढ़ सपूत को 2019 में BCCI का सेक्रेटरी, 2021 में एशियाई क्रिकेट संघ का अध्यक्ष और 2024 में इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आइसीसी) का अध्यक्ष बनवा दिया। सिर्फ 5 साल में इतनी लंबी छलाँग? गज़ब का स्टेमिना है इस बच्चे में, जो मोदी की तरह टेलिप्रॉम्पटर स्क्रीन पर लिखे को भी ठीक से पढ़ नहीं सकता।
दुनिया के सभी देशों के क्रिकेट संघों में सबसे धनाढ्य और शक्तिशाली BCCI अधिकृत रूप से भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करता फिर भी उसकी सबसे बड़ी ताकत यह है कि उसे देश की जनता को कोई हिसाब-किताब नहीं देना पड़ता। सूचना के अधिकार के तहत उससे जन-सामान्य ही नहीं बल्कि भारत सरकार तक कोई सवाल नहीं पूछ सकती कि तुम्हारे करोड़ों-अरबों रुपए का हिसाब क्या है? जबकि देश के सारे क्रिकेट संघ एक-एक रुपए का हिसाब देते हैं और सरकार भी उनसे माँग सकती है।
अब मोदी की बुरी नजर बीसीसीआइ पर पड़ गई है तो शाह-पुत्र जय को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। इसके लिए इंतज़ाम यह किया गया है कि मोदी सरकार ने ‘नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल’ तैयार किया है जिसके दायरे में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) भी आएगा। इस बिल के पारित होकर कानून बन जाने से BCCI को भी नियम-कायदे का वैसे ही पालन करना पड़ेगा जैसे देश के अन्य राष्ट्रीय खेल महासंघ करते हैं।
हालाँकि जाहिरा तौर पर इसका कारण 2028 के लॉस एंजेलिस ओलंपिक में क्रिकेट का पहली बार शामिल होना बताया जा रहा है। यह जगजाहिर है कि ओलंपिक में भाग लेने के लिए विभिन्न खेलों के खिलाड़ी, कोच, मैनेजर, फिजियो आदि सबकुछ उन खेलों के संघ तय करते हैं। उन खेल संघों के कामकाज पर भारतीय ओलंपिक संघ की भी निगरानी होती है। तमाम खेल संघों के प्रमुख इसके सदस्य होते हैं।
अभी तक इन खेल संघों से परे एक क्लब की तरह एक स्वायत्त संस्था के तौर पर BCCI की अपनी अलग ही दुनिया होती है। यह सरकार से कोई अनुदान नहीं लेता। इसलिए सरकार का BCCI पर कोई नियंत्रण नहीं है और न ही उसे किसी को रिपोर्ट करना पड़ता है लेकिन क्रिकेट के ओलंपिक का हिस्सा बन जाने तथा देश में ‘नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस कानून’ लागू होने के बाद उसे ओलंपिक संघ के साथ-साथ भारत सरकार के प्रति उत्तरदाई होना पड़ेगा।
इसका मतलब यह हुआ कि BCCI को अब दूसरे खेल संघों की तरह ही समय पर अपने सांगठनिक चुनाव कराने से लेकर अपनी का
र्यकारिणी, विभिन्न गतिविधियों और आय-व्यय का ब्यौरा सरकार के सामने रखना होगा।
समय-समय पर BCCI को सरकार के दायरे; में लाने की माँग उठती रही है लेकिन कभी भी इस पर प्रभावी तरीके से अमल की कोशिश तक नहीं हुई।
अब सवाल है कि क्या अमित शाह अपने पुत्र की मौज-मस्ती और BCCI की स्वायत्तता को बचा पाएंगे?
संवाद;पिनाकी मोरे