उन डॉक्टरों के नाम डॉक्टर वाहिद अब्दुल समद का एक पैगाम जो हराम कमाते है और हराम खा रहे है?
डॉ वहीद अब्दुल समद का एक पैग़ाम उन डॉक्टरो के नाम जो हराम कमाते हैं और हराम खाते हैं,।
यह ख़ियानत है कि डॉक्टर अपने मरीज़ को सिर्फ़ उन कंपनी की दवाई लिख कर दे जो कंपनीयाँ उसे कमिशन, गिफ़्ट, काॅफ़रेंसो मे शिरकत की दावत और तफ़रीही (मनोरंजक) सैर-ओ-सियाहत जैसी मुरा’आत फ़राहम करती हैं। जब कि मार्किट मे दूसरी कंपनीयो की वही दवाई इससे कम क़ीमत पर दस्तियाब है।
यह भी ख़ियानत है कि डॉक्टर अपने मरीज़ को मुख़्तलिफ़ चेकअप और X-ray के लिए महंगे तरीन laboratories की तरफ़ रेफ़र करें, महज़ इस बुनियाद पर कि उसे उन laboratories के अलावा और दूसरो पर भरोसा नही। जब कि हक़ीक़त यह है कि डॉक्टर का उन laboratories के साथ कुछ पर्सेन्ट कमिशन पर इत्तिफ़ाक़ (agreement) होता है। इससे भी ज़्यादा घिनावना अमल यह है कि यही कुछ कमिशन हासिल करने के लिए डॉक्टर मरीज़ को ऐसे चेकअप और एक्स-रे लिख कर देते हैं जिनकी कोई ज़रूरत ही नही होती।
यह भी ख़ियानत है कि डॉक्टर महज़ पैसा कमाने के लिए हामिला औरत को ऑपरेशन के ज़रिए विलादत (delivery) पर मजबूर करे हालांकि नॉर्मल डिलीवरी के इमकानात मौजूद होते हैं।
यह भी ख़ियानत है कि डॉक्टर मरीज़ो का ऑपरेशन जनरल हॉस्पिटल मे न करके अपने प्राइवेट अस्पताल मे करे और ऑपरेशन के लिए इतने पैसो का मुतालबा करे जिस से मरीज़ के घर वालो की कमर ही टूट जाए यहां तक कि कर्ज़ लेने या अपने पास मौजूद क़ीमती चीज़ो को औने पौने दामो पर फ़रोख़्त करने की नौबत आ जाती है। यही नही बल्कि बसा औक़ात इतने पैसे इकट्ठा करने के लिए ज़िल्लत व रूसवाई का बोझ उठाने पर मजबूर हो जाते हैं।
उनकी यह भी ख़ियानत है कि डॉक्टर मरीज़ से नौ-मौलूद (newborn) बच्चे को इज़ाफ़ी निगहदाश्त मे रखने का मुतालबा करे हालांकि उसे अच्छी तरह मालूम है कि उसकी कोई ज़रूरत ही नही लेकिन यह सब कुछ महज़ पैसे कमाने के लिए।
यह भी ख़ियानत है कि एम्बुलेंस ड्राइवर मरीज़ को उस हॉस्पिटल मे ले जाए जहां उसे हर मरीज़ के बदले कुछ कमिशन मिलता हो हालांकि वहां दूसरे उससे सस्ते और अच्छे हॉस्पिटल मौजूद हैं।
ख़ियानत यह भी है कि मरीज़ से पैसे चूसने के लिए उसको ऐसे हॉस्पिटल मे ऐडमिट कर लिया जाए जहां उसकी बीमारी के इलाज के लिए मुनासिब सहूलियात मौजूद न हों और आख़िर मे यह कह कर डिस्चार्ज कर दिया जाए : भाई हमे अफ़सोस है कि मरीज़ की हालत अब बहुत नाज़ुक हो गई है और उसकी किसी स्पेशलिस्ट डॉक्टर की ज़रूरत है हालांकि यह बात उन्हें शुरू ही से मालूम होती है।
और यह भी ख़ियानत है कि एक शक्ल है कि अगर मरीज़ को कहीं दूसरे हॉस्पिटल मे रेफ़र करने की ज़रूरत हो तो उसे महंगे तरीन एम्बुलेंस के ज़रिये रेफ़र किया जाये।
(यह चंद मिसाले हैं वर्ना ख़ियानत और हराम कमाई की और भी दूसरी सूरते और शक्ले राइज हैं जिनसे मरीज़ झूझ रहे हैं)
सवाल यह है कि क्या हम डॉक्टरी इसलिए पढ़ते हैं कि मरीज़ो की ख़िदमत या उनके लिए वहाँ जान और मुसीबत का सामान बनें।
डॉक्टर हज़रात!
तिब (चिकित्सा) एक बुलन्द मक़ाम पैग़ाम और इंसानियत की ख़िदमत करने के लिए एक बहतरीन पेशे का नाम है जिस के अपने उसूल व ज़वाबित और अहद व पैमान हैं जिसे डॉक्टरो को अपनी जेबो मे नही बल्कि अपने दिलो मे ले कर चलना चाहिए।
ज़िन्दा ज़मीरो के मालिक और इंसानियत नवाज़ डॉक्टरो को बहुत बहुत सलाम हो ख़्वाह कही भी हों। वह जिस तारीफ़ और शुक्रिया के मुस्तहिक़ हैं हम उनका हक़ अदा नही कर सकते। यक़ीनन वह ज़रूर इस दुनिया के माल व दौलत से कहीं ज़्यादा अपने रब के पास अज़ीम अज्र-ओ-सवाब के मुस्तहिक़ होंगे।
वाज़े रहे कि इंसान का अपना ज़मीर सबसे बड़ा निगरॉ है। इसलिए अपने ज़मीर को टटोलो कि यही अल्लाह रब्बुल आलमीन के नज़दीक नेक आमाल की क़ुबूलियत का ज़रिया है।
यह मेरा पैग़ाम मेरे अपने मुल्क के तमाम डॉक्टरो की इंसानी ज़मीर के लिए है क्योंकि डॉक्टरो की इन्ही ख़ियानतो और मंफ़ी रवैयो की वजह से बहुत से बेचारे बाशिंदगान वतन (देश मे रहने वाले) ग़ुरूबत व इफ़लास (ग़रीबी) के शिकार हो गये और बहुत सारे लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे।
आप से गुज़ारिश की जाती है कि आप इस पैग़ाम को आम करें ताकि यह पैग़ाम तमाम डॉक्टरो, दवा की तमाम तिजारती कंपनियो, प्राइवेट हॉस्पिटल के मालिको और दीगर laboratories के ज़िम्मेदारो तक पहुँच सके।
संवाद;मो अफजल इलाहाबाद