आरएसएस की शाखाओं में डॉक्टर आंबेडकर की किताबो की होली जलेगी गर चे इन्हे समय पर रोका गया नही तो?

अगर रोका नहीं गया तो आरएसएस की शाखाओं में डॉ.आंबेडकर की किताबों की होली जलेगी और केजरीवाल सरीखे अवसरवादी ताली बजाएँगे।
मुद्दा दिल्ली सरकार के मंत्री राजेंद्रपाल गौतम का इस्तीफ़ा नहीं है, मुद्दा है कि क्या आरएसएस से इतर विचारधाराओं को मानते हुए सम्मानपूर्वक जीना संभव रहेगा या नहीं?

नफ़रती मीडिया इस बात को आमतौर पर छिपा रहा है लेकिन राजेंद्र पाल गौतम ने जो 22 प्रतिज्ञाएं पढ़ीं वे डॉ.आंबेडकर ने बौद्ध धर्म ग्रहण करते समय अपने अनुयायियों को दिलाई थीं। जबकि संविधान को लागू हुए तब महज़ छह साल हुए थे और उन्होंने सार्वजनिक रूप से धर्म की आज़ादी के अधिकार का इस्तेमाल किया था।

इन प्रतिज्ञाओं का प्रकाशन भारत सरकार के समाज कल्याण मंत्रालय ने किया है। बीजेपी जब इन प्रतिज्ञाओं को ‘हिंदू विरोधी’ बताकर उत्पात करती है तो वह सीधे सीधे संविधान, डॉ.आंबेडकर और उन्हें अपना उद्धारक मानने वाले कोटि-कोटि जनों की बेइज्जती करती है।

कोई ज़रूरी नहीं कि इन सभी प्रतिज्ञाओं से सहमत हुआ जाये, लेकिन इनसे पूरी तरह सहमति का अधिकार ही भारत को ‘भारत’ बनाता है। स्वयं बुद्ध ने वेदों को मानने से इंकार कर दिया था और नास्तिक कहलाये थे। उन्होंंने देवी-देवताओं और मूर्तिपूजा का निषेध किया था लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आज बुद्ध भारत की सबसे बड़ी देन माने जाते हैं।

उधर, आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने वेदों को ही माना। तमाम देवी-देवताओं और मूर्तिपूजा का निषेध किया। उनके तर्क किसी भी मूर्तिपूजक की आस्था को छलनी कर सकते हैं। उन्होंने 1867 के हरिद्वार कुंभ के दौरान ‘पाखंड खंडिनी पताका’ फहराई और बनारस के दुर्गाकुंड के निकट मूर्तिपूजकों से खुला शास्त्रार्थ किया। तो क्या उनकी जगह इस नये भारत में नहीं होगी? कबीर, नानक और रैदास जैसे संतों ने अंधविश्वासों, कर्मकाण्डों और मूर्तिपूजा को बेकार बताया तो क्या इन्हें देश-निकाला मिलेगा?

और हाँ, फाँसी पर झूलने से पहले ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ?’ जैसा लेख लिखने वाले शहीदे आज़म भगत सिंह कहाँ जायेंगे जिनका कहा हर वाक्य आरएसएस और बीजेपी की विचारधारा को ख़ाक करने का आह्वान करता है?
यह कठिन समय है। चुनावी हानि लाभ की परवाह किये बिना आरएसएस के चंगुल से देश को बचाने के लिए, भारत नाम के विचार को बचाने के लिए जूझना होगा।

यह देश की एकता के लिए भी ज़रूरी है। विंध्याचल के पार भी भारत है। जो बीजेपी डॉ.आंबेडकर की 22 प्रतिज्ञाओं को बर्दाश्त नहीं कर पा रही है वह पेरियार से कैसे निपटेगी और इसका परिणाम क्या होगा, समझा जा सकता है।

भारत तभी तक भारत है जब तक यहाँ 22 प्रतिज्ञाओं को मानने और न मानने वालों का सह अस्तित्व संभव है।शाखामृगों के हाथ लगा सत्ता का उस्तरा इसी सह-अस्तित्व को नष्ट कर रहा है, यानी भारत को नष्ट कर रहा है। जो ‘भारत’ से प्रेम करता है, वह ऐसा होने नहीं देगा।

जो हिंदू अपने धर्म को आरएसएस के कुएँ में गिरने से बचाना चाहते हैं उनका फ़र्ज़ है कि वे इस नफ़रती हिंदुत्व के विरुद्ध ‘बंधुत्व’ का झंडा बुलंद करें! नई दुनिया उन्हें सम्मान की नज़र से देखे, इसके लिए उन्हें समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का झंडाबरदार बनना ही होगा!

(Pankaj Srivastava
Worked at vice* *chairman, media and CamnucationCamnucation department UPCC)

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