आज दो अक्तूबर , राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी और लाल बहादुर शास्त्री जी के साथ उन्हे भी याद करे जिनका आज ही के दिन जन्म दिन है जाने कौन है ये शख्सियत

एमडी डिजिटल न्यूज चैनल और प्रिंट मीडिया
संवाददाता एवं ब्यूरो

गाँधी जी और शास्त्री जी के साथ उन्हें भी याद कर लो जिनका जन्मदिन भी आज ही 2 अक्टूबर को है !

1857 के महान क्रांतिकारी योद्धा शेख भिखारी अंसारी का जन्म सन् 1819 ई० में झारखंड के राँची जिला बुड़मो में हुआ था।
वह सन् 1857 की क्रांति के दूसरे शहीद थे। 1857 की जंग ए आजादी में लड़ने वाले शेख भिखारी का जन्म 1831 ई में रांची जिला के होक्टे गांव में एक बुनकर अंसारी परिवार में हुआ था़।

बचपन से वह अपने खानदानी पेशा, मोटे कपड़े तैयार करना और हाट बाजार में बेचकर अपने परिवार की परवरिश करते थे़। जब उनकी उम्र 20 वर्ष की हुई तो उन्होंने छोटा नागपुर के महाराज के यहां नौकरी कर ली। परंतु कुछ ही दिनों के बाद उन्होंने राजा के दरबार में एक अच्छी मुकाम प्राप्त कर ली, बाद में बड़कागढ़ जगन्नाथपुर के राजा ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने उनको अपने यहां दीवान के पद पर रख लिया़।

बता दें कि शेख भिखारी के जिम्मे में बड़कागढ़ की फौज का भार दे दिया गया।. 1856 ई में जब अंग्रेजों ने राजा महाराजाओं पर चढ़ाई करने का मनसूबा बनाया तो इसका अंदाजा हिंदुस्तान के राजा-महाराजाओं को होने लगा था। जब इसकी भनक ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को लगी तो उन्होंने अपने वजीर पाण्डे गणपत राय, दीवान शेख भिखारी, टिकैत उमराँव सिंह से मशवरा किया। इन सभी ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा लेने की ठान ली और जगदीशपुर के बाबू कुँवर सिंह से पत्राचार किया। इसी बीच में शेख भिखारी ने बड़कागढ़ की फौज में रांची एवं चाईबासा के नौजवानों को भरती करना शुरू कर दिया।

अचानक अंग्रेजों ने सन 1857 में चढ़ाई कर दी। विरोध में रामगढ़ के रेजिमेंट ने अपने अंग्रेज अफसर को मार डाला। नादिर अली हवलदार और रामविजय सिपाही ने रामगढ़ रेजिमेंट छोड़ दिया और जगन्नाथपुर में शेख भिखारी की फौज में मिल गये। इस तरह जंगे आजादी की आग छोटानागपुर में फैल गयी।

रांची, चाईबासा, संथाल परगना के जिलों से अंग्रेज भाग खड़े हुए। इसी बीच उनकी फौज जनरल मैकडोना के नेतृत्व में रामगढ़ पहुंच गयी और चुट्टूपालू के पहाड़ के रास्ते से रांची आने लगे। उनको रोकने के लिए शेख भिखारी, टिकैत उमराव सिंह अपनी फौज लेकर चुट्टूपालू पहाड़ी पहुंच गये । अंग्रेजों का रास्ता रोक दिया। शेख भिखारी ने चुट्टूपालू की घाटी पार करने वाला पुल तोड़ दिया और सड़क के पेड़ों को काटकर रास्ता जाम कर दिया।

शेख भिखारी की फौज ने अंग्रेजों पर गोलियों की बौछार कर उनके छक्के छुड़ा दिये। यह लड़ाई कई दिनों तक चली रही। शेख भिखारी के पास गोलियां खत्म होने लगी तो शेख भिखारी ने अपनी फौज को पत्थर लुढ़काने का हुक्म दिया। इससे अंग्रेज फौजी कुचलकर मरने लगे। यह देखकर जनरल मैकडोन ने मुकामी लोगों को मिलाकर चुट्टूघाटी पहाड़ पर चढ़ने के लिए दूसरे रास्ते की जानकारी ली। फिर उस खुफिया रास्ते से चुट्टूघाटी पहाड़ पर चढ़ गये।

अंग्रेजों ने शेख भिखारी एवं टिकैत उमराव सिंह को छह जनवरी 1858 को घेर कर गिरफ्तार कर लिया और सात जनवरी 1858 को उसी जगह चुट्टूघाटी पर फौजी अदालत लगाकर मैकडोना ने शेख भिखारी और उनके साथी टिकैत उमरांव को फांसी का फैसला सुनाया। आठ जनवरी 1858 को आजादी को शेख भिखारी और टिकैत उमराव सिंह को चुट्टूपहाड़ी के बरगद के पेड़ से लटका कर फांसी दे दी गयी ! ऐसे शहीद जांबाज को एमडी डिजिटल न्यूज चैनल और प्रिंट मीडिया टीम सैंकड़ों

बार सलाम करती है

संवाद; मोहमद अफजल इलाहाबाद

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