आगे खाई और पीछे कुआं की हालत में पहुंच चुकी है देश की वीदेश नीति

विशेष
संवाददाता
पिनाकी मोरे

ऑयल से मनीलाॅडंरिंग

अमरीकी ट्रेड एडवाइजर पीटर नावार्रो ने भारत सरकार पर रशिया के ऑयल मनीलाॅडंरिंग करने का आरोप लगाया है।

भारत सरकार लगातार रशिया से हथियार खरीद रही और अमेरिका से मांग कर रही है कि अमेरिकन हथियारों के संबंध में संवेदनशील टेक्नालॉजी ट्रांसफर करे ताकि वह भारत में हथियार बनाने के लिए उद्योग स्थापित कर सके।

“यदि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और आशा करता है कि वह यूनाइटेड स्टेटस का स्ट्रेटजिक पार्टनर बने तो उसे वैसा व्यवहार भी करना होगा।” पीटर नावार्रो ने कहा।
नावार्रो, जो अमेरिका का ट्रेड और मैन्यूफैक्चरिंग का वरिष्ठ काउंसिलर है, लगातार भारत पर निशाना साध रहा है। इसकी वजह से ही भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ पर नेगोसिएशन और दूसरे परस्पर सहयोग में बाधा उत्पन्न हुई है।
भारत की ऑयल लाबी ने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को दुनिया के सबसे बड़े ऑयल रिफाइनिंग अड्डे में बदल दिया है और उससे हो रही डाॅलर में कमाई को रशिया से सस्ता तेल खरीदने में इस्तेमाल कर रहा है।

दूसरी ओर ओएनजीसी के चेयरमैन अरूण कुमार सिंह का कहना है कि जब तक भारत को रशिया से तेल खरीदने में लाभ होगा, तब तक वह तेल की आख़िरी बूंद तक खरीदता रहेगा।
एचपीसीएल, एमआरपीएल दोनों की कुल रिफाइनिंग क्षमता 40 मिलियन टन प्रति वर्ष है। एचपीसीएल मित्तल एनर्जी के साथ मिलकर 11.3 मिलियन टन प्रति वर्ष है जो कुल मिलाकर 258 mtpa है। भारतीय ऑयल रिफाइनिरीज़ रशियन क्रूड ऑयल की सबसे बड़ी खरीदार शायद इसीलिए
अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लगा दिया है। अमेरिका का मानना है कि इस कमाई का इस्तेमाल रशिया यूक्रेन के साथ युद्ध करने में कर रहा है, जो क्षेत्र में शान्तिपूर्ण माहौल बनाने में बाधक है।

अब अगर भारत अमेरिकी दबाव में ड्यूटी कम करने के फैसले करता है, जो वह कुछ हद तक कर भी रहा है। इससे तो वह एएनएम नाॅन एलिंयांइड मोमेंट, ग्रुप निरपेक्षता की नीति से विमुख हो जायेगा तो उसे अमेरिका का पिछलग्गू बन कर रहना होगा और यदि वह रशियन खेमे में जाता है तो यहां लोकतांत्रिक व्यवस्था ख़तरे में पड़ जाएगी।

कुल मिलकर ऐसे महसूस हो ने लगा है कि
भारतीय विदेश नीति “आगे कुआं, पीछे खाई” की स्थिति में पहुंच गई है।

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