हुकूमते अंग्रेज़ की ये देन है ,जो हर मुल्क की बुनियाद में कभी न भरने वाला ऐसा एक नासूर !
रिपोर्टर.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब अंग्रेज़ हुकूमत ने मुल्कों को आज़ाद करना शुरू किया।
तो हर मुल्क की बुनियाद में एक कभी न भरने वाला नासूर छोड़ दिया ,ताकि वह मुल्क कभी भी स्टेबल न रह सकें और आभाषीय आज़ादी के साथ गुलामी के तौक खुद ही खुशी से पहने रहें ।
सीरिया को जब आज़ाद किया तो सुन्नी बाहुल सीरिया में राफ़ज़ी पपेट को हुकूमत दे दी ।
फ़िलिस्तीन के सीने पर यहुदिओं को बिठा दिया और मसला हल किये बिना देश छोड़ गए ।
हिंदुस्तान पकिस्तान के बटवारे की बुनियाद कभी न खत्म होने वाली नफ़रत पर रखी गयी ।
और वह नफरत खत्म भी हो जाती लेकिन पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान करके इस अक्लमंदी से बटवारा किया कि वह जो हुआ (युद्ध) , वही उसका एक मात्र विकल्प था !
इतने पर भी संसाधनों से भरे देश भारत मे स्टेबिल्टी आ सकती थी ,
लेकिन मैन पॉवर और संसाधनों का ईस्तेमाल ही न हो सके।
इसके लिए उन्होंने बाबरी के रूप में एक ऐसा साम्प्रदायक मुद्दा खड़ा कर दिया जो मुस्लिमो की आन से जुड़ा था और हिंदुओं की आस्था से ।
1853 ई. में अंग्रेज़ हुकूमत ने पहला पोलिटिकल दंगा मस्जिद की आड़ ले कर कराया और सौहार्द पर पहला वार किया !
बाबरी को लेकर यह प्रचारित किया गया कि यही राम मंदिर था ,और हिन्दू समाज को प्रयोग किया गया , एक लांग टर्म मिशन दे दिया गया कि राम लला को आज़ाद कराना है?
आज तक भगवा वर्ग उस फेक मिशन चुसकी को चूसता रहा है ।
बाबरी कंट्रोवर्सी उस वक़्त हिन्दू मुस्लिम एकता को तोड़ने की पोलटिकल संजीवनी थी ।
1859: ब्रिटिश सरकार ने मामले की संवेदनशीलता को देख तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दी ,।
एक लांग टर्म नफरत की बुनियाद रख दी गयी ।
1885: विवाद कोर्ट पहुंचा।
महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की।
23 दिसंबर 1949: तक़रीबन 50 हिंदुओं ने मस्जिद में कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख नियमित पूजा आरम्भ कर दी।
इसके बाद मुसलमानों ने वहां नमाज पढ़ना बंद कर दिया।
यह आज़ाद मुल्क की पहली नाइंसाफी थी अकलियत के साथ ।
5 दिसम्बर 1950: महंत परमहंस रामचंद्र दास ने पूजा पाठ जारी रखने और मस्जिद में राम की मूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया। मस्जिद को यहीं से ‘ढांचा’ नाम मिला।
कहने की ज़रूरत नही कि मुल्क की बागडोर ब्राह्मण नेहरू और उस वक़्त की भगवा पोलिटिकल पार्टी कांग्रेस के हाथ मे थी ।
9 नवम्बर 1989: तत्कालीन पीएम राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी।
न सिर्फ इजाज़त दी बल्कि गैर लोकतांत्रिक तरीके से मस्जिद का ताला खुलवा कर उसमें मूर्तियों को प्लांट करवाने का काम तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने किया।
और बीएचपी को प्रोत्साहित किया गया कि वह हार्ड स्टेप्स लें!
1992 में पीबी नरसिम्हा राव और राज्य में कल्याण सिंह की सरकारों ने न सिर्फ लॉय अन ऑर्डर का कत्ल किया , बल्कि लोकतंत्र की हत्या खुले आम कर दी गयी ?
सरकार और विपक्ष दोनो को ही अपने मौजूदा न्याय व्यवस्था पर यकीन ही नही था , जो यकीन होता तो यह विध्वंस न होता बल्कि न्यायिक प्रणाली से यह फैसला हल करने की इच्छा शक्ति कार सेवकों के पास न सही पर सरकारों के पास होती।
जिस कंट्रोवर्सी को अंग्रेजों ने अन स्टेबिल्टी के मकसद से इंडिया में प्लांट किया था ,, तब के अंग्रेज़ की औलादें और उनके चाटुकार कांग्रेसी और आरएसएस दोनो ने अपने बाप अंग्रेजों की ताज़ीम में आज तक कोई कसर नही छोड़ी है।
अब हालात बदल गए हैं ,,
कॉंग्रेस अब टोपी पहनती पहनाती है , जबकि भगवा बिर्गेड तिलक तिरशूल पर कॉपीराइट लेकर सत्ता में है ,,
सरकार या तो गंगाधर की रही है या शक्तिमान की ।।
तीसरा कोई विकल्प भारतीय लोकतंत्र में मजबूत नही होने दिया गया !
जस्टिस जब तक खुद जस्टिफाई नही कर सकता जब तक बाबरी को रीबिल्ड नही किया जाता ।
न्याय व्यवस्था से बाबरी रीबिल्ड की उम्मीद रखना एक मजाहिका ही है ।
अगर यह मज़ाक है तो फिर भारतीय मुस्लिमो को तैयार रहना चाहिये , बनारस की ज्ञानबापी मस्जिद , हैदराबाद की चारमीनार मस्जिद और मथुरा की मस्जिद की शहादत के लिए !
न सिर्फ इन मस्जिदों की शहादत के लिए बल्कि कुतुब मीनार मस्जिद और वक़्फ़ धरोहर ताजमहल की शहादत के लिए भी !