रोहिंग्या एक ऐसा नाम है जिनके खून से बर्मा की सड़कें लाल हो चुकी हैं !
रिपोर्टर.
यह सब उस देश की धरती पर हो रहा है जहां दिनरात बुद्धं शरणं गच्छामि और शांति के मंत्र गूंजते हैं।
विभिन्न अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में रोहिंग्या मुसलमानों को दुनिया में सबसे ज्यादा सताए गए लोगों में शामिल किया गया है।
बर्मा में इनके कत्लेआम की भयानक तस्वीरें आ रही हैं।
कोई इन्हें आतंकवादी बता रहा है। लोग कह रहे हैं कि ये बम बनाते हैं और हमला करते हैं!
बर्मा से हजारों तस्वीरें आ चुकी हैं लेकिन मैंने एक भी तस्वीर ऐसी नहीं देखी जिनमें इनके पास कोई हथियार हो।
भूखा पेट, नंगे पांव, नंगा बदन, पेट पिचक चुका है, सिर पर छत नहीं, अपने ही मुल्क में मुहाजिर।
जिनके पास रोटी बनाने के लिए आटा नहीं, वो बम क्या बनाएंगे ?
कोई कहता है कि इन दिनों इनका दिमाग सातवें आसमान पर है, कभी मुस्लिम राष्ट्र बनाने के लिए माथा पीटते हैं तो कभी कहते हैं कि हमें शरीयत चाहिए।
ताज्जुब होता है इस दलील पर। जिनके पास अपना कोई मुल्क नहीं छोड़ा और जो सिर्फ 10 लाख की आबादी है, वे करोड़ों की बौद्ध आबादी वाले देश में शरीयत लागू करने का ख्याल क्यों लाएंगे?
उन्हें तो दो रोटियां मिल जाएं और एक छत, बस वो ही जन्नत है!
अगर कोई रोहिंग्या मुस्लिम बर्मा में अपराध करता है तो उसे वही सजा दी जानी चाहिए.
जो कानून में एक आम अपराधी के लिए तय है, लेकिन उसके बहाने से पूरी बस्ती को आग लगा देने का नाम इन्साफ नहीं है।
रोहिंग्या मुसलमान यहूदी नहीं हैं। अगर होते तो अब तक इजरायल इनके पेट के लिए रोटी और हिफाजत के लिए सबसे घातक कमांडो भेज देता ?
रोहिंग्या …गोरी चमड़ी वाले अमेरिकी ईसाई नहीं हैं। अगर होते तो ट्रंप साहब के एक हुक्म से बर्मा की धरती पर अमेरिकी सेना पहुंच जाती!
रोहिंग्या किसी यूरोपियन देश के निवासी नहीं हैं, अगर होते तो अब तक संयुक्त राष्ट्र ही नहीं पूरी दुनिया इनकी फिक्र करती।
रोहिंग्या मुसलमान रूसी नागरिक भी नहीं हैं, अगर होते तो पुतिन अब तक खामोश नहीं बैठे होते।
वे जो फैसला लेते, उसके लिए दुनिया की परवाह नहीं करते।
मगर रोहिंग्या … तुम तो योग्यता की इन शर्तों में से एक भी शर्त पूरी नहीं करते।
तुम काले, भूखे, नंगे, जख्मी और गरीब हो। जहां जाते हो, मारे जाते हो !
तुम्हारी कीमत तो कुर्बानी के उस जानवर जितनी भी नहीं है जिसे हलाल करने से पहले लोग खूब खिलाते हैं!
तुम्हारी बदहाली, गरीबी और पिचके हुए पेट देखकर तो मुस्लिम देशों ने भी दरवाजे बंद कर लिए हैं !
धन्य हैं महात्मा बुद्ध जो हजारों साल पहले समाधिस्थ हो गए। अगर इस जमाने में पैदा होते तो तपस्या छोड़कर बर्मा की सरकार और उन बौद्ध भिक्षुओं के खिलाफ हथियार उठा लेते जो शांति के नहीं शैतान के पुजारी बन चुके हैं !