मरीज ही नहीं चिकित्सक की आत्म मर गई
विशेष
संवाददाता
मरीज़ ही नहीं; चिकित्सक की आत्मा भी मर गई!
जब ऑपरेशन थियेटर के बाहर गैलरी में बेचैनी से टहल रहे परिजनों से शल्य चिकित्सक ने कहा, “बधाई हो आपको, आपरेशन कामयाब रहा. मगर मरीज़ मर गया?
आप कहेंगे कि यह कैसी अजीब बात है कि जब ऑपरेशन के दौरान मरीज़ ही मर गया तो वह कामयाब कैसे हुआ? बधाई। किस बात की?
थोड़ा रुकिए और सोचिए कि देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी.वाइ. चंद्रचूड़ के ये कुछ ऐसे फैसले हैं जिन पर देश के भीतर उत्सुकता भरी बहुत बेचैनी थी और वह देश की मरणासन्न न्याय व्यवस्था के स्वस्थ होने की कामना करते हुए इसके मेन ऑपरेशन थियेटर यानी सुप्रीम कोर्ट की ओर आशा भरी निगाहों से टकटकी लगाए देख रहा था कि तभी मुख्य चिकित्सक महोदय ने कहा, “हमने बड़ी कोशिश की, मगर भगवान को यही मंजूर था।”
ईश्वरीय प्रेरणा से फैसले लिखने वाले जस्टिस डी.वाइ. चंद्रचूड़ के ऐसे ही विवादास्पद कुछ फैसलों पर विचार करने की जरूरत है।
1) बाबरी मस्जिद विध्वंस को आपराधिक मामला कहा मगर अपराधियों को छोड़ दिया। यह इतिहास का ऐसा फैसला है जिसमें अपराध तो सिद्ध हुआ मगर अपराधियों को सज़ा सुनाना तो दूर, उनकी पहचान तक नहीं हुई!
2) बाबरी मस्जिद के विध्वंस को गैरकानूनी कहा, वहाँ राम के जन्म को नहीं माना, बाबरी मस्जिद में मूर्तियाँ रखना गैरकानूनी कहा और मंदिर पक्ष की सभी दलीलों को नकारते हुए भी बाबरी मस्जिद की ज़मीन उन्हीं को दे दी।
3) षड्यंत्रपूर्वक रातों-रात सत्ता पर काबिज़ हुई महाराष्ट्र की सरकार को अवैध कहा लेकिन उस अवैध सरकार को अपना कार्यकाल पूरा करने का मौका दिया।
4) इलेक्टोरल बॉन्ड्स घोटाले को असंवैधानिक करार दिया मगर गैरकानूनी तरीके से षड्यंत्रपूर्वक इकट्ठा किये गये धन को उसके सभी लाभार्थियों के पास ही रहने दिया।
5) चंडीगढ़ मेयर के चुनाव में पीठासीन अधिकारी अनिल मसीह को लोकतंत्र का लुटेरा कहा परंतु उस लुटेरे को कोई सज़ा नहीं दी।
ऐसे और भी कई उदाहरण हैं जिन्हें “आपरेशन कामयाब रहा, मगर मरीज़ ही नहीं बल्कि चिकित्सक की आत्मा भी मर गई” वाली श्रेणी में रखा जाएगा।
संवाद;सज्जाद अली नयानी