न जाने कोई कैसी है ये ज़िन्दगानी हमारी अधूरी कहानी ! भटक गया देश, ठहर गयी ज़िन्दगी की रफ़्तार ! हर कोई है बेबस ?
रिपोर्टर,
लगभग 4 सप्ताह होंने को है, बिना नकदी, खाली जेब की बैचेनी और पीड़ा में जीते हुए!
हां, कोई भी हो, जीवन अब वह नहीं रहा जो 8 नवंबर 2016 से पहले था! वह, बेखटके वाले रूटिन में बंधा हुआ सहज चलायमान जीवन। उस जीवन में काम था!
खेल-मनोरंजन था, खुशी उत्सव-बेफिक्री थी। वह फिलहाल खत्म है! आज न काम है, न बेफिक्री है और मौजमस्ती तो कतई नहीं?
वक्त को लाइने खा रही है, यदि लाइन में नहीं भी लगे है तो दिमाग लाइन में लगने, बैंक जा कर मालूम करने, लौटने, भटकने में जाया हो रहा है?
सब के सब कामधंधे रूके हुए है, शापिंग काम्पलेक्स, माल्स खाली पड़े हैं? दिल्ली , में चांदनी चौक के गली कूचे भी खाली तो जयपुर , और मुम्बई की छोटी-बड़ी चौपट और उसके बाजार भी सूने। न देशी पर्यटक और न विदेशी। पिजा डिलीवर करने वाले लड़के पड़ौस में आते-जाते नहीं दिखते तो वेबसाइट, एलर्ट में सुर्खिया या तो लाइन के धक्के-मुक्के की या लाइन में लोगों के मरने, शादियों के गम में बदलने जैसी!
लाइने खत्म हो रही है पर हताशा बढ़ रही है। इसलिए कि बैंकों में पैसा कहा जो सामान्य बैंकिग हो? बिना लाइन के, बैंकों से निकलते चेहरों से सर्वत्र यह भड़ास सुनने को मिलेग कि बैंक में पैसा नहीं। बीस निकालने गई थी चार हजार थमा कर चलता किया!
छोटी-छोटी चीजें खरीदना भी दिमाग में यह उलझन लिए होती है कि खरीदे या न खरीदे? सब ठहरे हुए,सहमे हुए, हैरान-परेशान है यह सोचकर कि उनका अपना पैसा, बैंक में जमा पैसा, लेकिन फिर भी किल्लत और चिंता की जिंदगी!
पचास दिन चलेगी, या दो महिने या छह महिने या साल?
हम भारत के नागरिक है। हमारी नागरिकता संविधान प्रदत्त अधिकारों से लैस है! बावजूद इसके किसी नागरिक को पता नहीं बतौर धारक, अपनी कमाई करेंसी उसकी अपनी क्यों नहीं?
और जो आपदा विपदा आई है, उसकी मार कब तक ? देश के सवा सौ करोड़ देशवासी कतई नहीं भूलेंगे 8 नवंबर 2016 की रात को।
आठ नवंबर की रात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का जो चाबुक चलाया वह अप्रत्याशित नहीं था पर अभूतपूर्व था। ट्रंप-बाद (Trump-ed) में सचमुच आज हम एक ऐसे वक्त में है जिसमें हमारे बस में कुछ नहीं है ?
मोदी ने नोटबंदी की तो की, कोई क्या कर सकता है? जीवन ठहरे तो ठहरे आप कुछ नहीं कर सकते?
सत्य यह है कि देश ठहरा हुआ है पर इसे माना नहीं जा रहा। सबकुछ ठहरा, अव्यवस्था, उथलपुथल के देवता को समर्पित मगर हल्ला यह कि यह यज्ञ है। देश सोने की तरह तप बाहर निकलेगा?
क्षण लगा, कुछ सेकेंड लगे नरेंद्र मोदी को भारत की आर्थिकी को अंधेरी सुरंग में धकेलने में! सुंरग अंधेरी है, आखिर में खाई भी है!
इसलिए कि आर्थिकी के जितने जानकार, नामी टिकाकार, अर्थशास्त्री, विदेशी वित्तिय प्रबंधक, एजेंसियों सबने बताया है कि नकदी ने जहां जीवन ठहराया है तो देश की आर्थिकी को भी ठहराएगा?
कोई कहता है 6.8 प्रतिशत से घट विकास दर 3.5 प्रतिशत रह जाएगी तो कोई कहता है भूल जाए अगले दो वर्ष। न आर्थिकी उछाला मारेगी और न नए रोजगार होंगे?
क्या ऐसा होना उन नरेंद्र मोदी के लिए सुखदायी होगा जिन्होंने दर्जनों बार कहा है ’इंडिया फर्स्ट’?
मगर नरेंद्र मोदी आर्थिकी की इन बातों, इन चिंताओं की फिक्र करते दिखलाई नहीं दे रहे है! शायद इसलिए कि उनका सर्वे उन्हे बता रहा है कि 90 प्रतिशत लोग खुश है?
मैं कौतुक में हूं, समझ नहीं आ रहा है कि ये 90 प्रतिशत कौन है? क्या गृहणियां है? किसान है? दुकानों पर बैठे छोटी व्यापारी या बिजनेस् मैन है? क्या दुल्हे या दुल्हन? या उद्यमी है?
जिनसे घर, देश, व्यापार चलता है उनमें से क्या 90 प्रतिशत ने खुशी जाहिर की?
या फिर कही वे तो नहीं जो जिन्हे भाड़े पर जयकारा लगाने के लिए, रैलियों में, सोशल मीडिया पर हल्ला करने के लिए रखने का रिवाज हाल के सालों में बना है?
स्वंय प्रायोजित यह सर्वे वैसे ही समझ में आ रहा है जैसे 4 सप्ताह से किस्म, किस्म की अफवाहों ने नोटबंदी का जादू जनता में फैलाया है।
एक उबेर ड्राईवर ने मुझे सूचित’ किया क़ि दो हजार के नए नोट लोग छुपा कर जमा नहीं रख सकेंगे?
ये ऐसे कागज से बने है कि 3-4 महिने में अपने आप गल जाएगें? दूसरे ने तो और भी कमाल की बात कहीं बताया कि यदि आपके फोन में मोदी एप इन्स्टाल हुआ रहा और आपने 2000 रु के नए नोट का स्केन किया तो पता चल जाएगा कि यह असली है या नकली?
एक बार स्केन हुआ तो नोट की मॉनिटरिंग होती रहेगी!
इन अफवाहों और सर्वेक्षणों का क्या अर्थ निकाले? पता नहीं लोग इन पर कितना विश्वास कर रहे है? लेकिन यदि कर रहे है तो लोगों पर राय बनाए या आज के वक्त पर यह राय कि हम जी रहे है बेहूदगियों (stupidity) के समय में?
कईयों ने नोटबंदी को क्रांतिकारी कहां। कुछ ने इसे हल्के में लिया तो कई भारी गुस्से में है।₹!
यदि आप ब़ॉक्सिंग के बाड़े में, रिंग में है और समर्थक हैं तो राष्ट्रवादी, अच्छा, ईमानदार नागरिक माने जाएंगे! यदि विरोध में हुए तो यह कहते हुए समर्थक पिल पड़ेगे कि आप राष्ट्रविरोधी व कालेधन समर्थक है!
भक्त और चमचों का ऐसा करना अपनी जगह लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद जिस अंदाज में विरोधियों पर हल्ला बोला है वह आगे की दिशा लिए हुए है?
दुखद यह है कि इससे वे अच्छे दिन लिवा लाने का भ्रम पाले हुए है। चश्में के आगे जो है उसे ही देख रहे है!
बड़ी तस्वीर या कि इस हकीकत को देख नहीं पा रहे है कि भारत में आज भी 80 प्रतिशत नकदी में लेन-देन होता है। देश की गति, डायनेमिक नकदी से है, आम आदमी के रोजमर्रा के जीवन की दिहाडी, कमाई का जो अनौपचारिक काम-धंधों, सेवाओं का जो क्षेत्र है वह बैंक खाते से नहीं, चैक से नहीं, प्लास्टीक मनी से नहीं बल्कि जेब में रखे नोटों से चलता है!
इस समाज से जिनके पास बैंक खाता है भी तो उसके लायक दिमाग होना, दिमाग खंपाना संभव नहीं है। न तो सोर्स है न वह कल्चर जिससे वे केसलैश सोसायटी का हिस्सा बन जाए।
तभी यह गुत्थी है कि मोदी के सर्वे वाले 90 प्रतिशत वे कौन थे जिन्होने ‘कैसलैश सोसायटी’ के जुमले को समझ रखा है?
संदेह नहीं, बहुत लोग आनंदित, खुश और इस जश्न की तैयारी में है कि जल्द भारत भ्रष्टाचार मुक्त होगा? ये रोमांचित, थ्रिल में है कि मोदी ने साहस दिखाया?
ऐसा चाबुक मारा कि भ्रष्ट, काले धन वाले त्राहिमाम कर रहे है। तभी अपने पैसे को निकाल न पाने और परेशानियों के बावजूद ये प्रधानमंत्री को पूरा मौका देना चाहते हैं कि वे चाहे जो करें, वे उनके लिए कुरबानी देंगे!
पर कुरबानी तो सबकी है और सबको देनी है। इच्छा और अनिच्छा बेमतलब है!
मोदी की नोटबंदी इतिहास में अनिवार्यतः जगह लिए होगी और उसके साथ सवा सौ करोड़ देशवासियों की कुरबानी भी,
सत्तर साल के इतिहास में पहले ऐसा वक्त कब आया जब सब कड़के हो गए? मोहताज हो गए पैसे के लिए।
पूरे देश की, 125 करोड़ों लोगों की दिनचर्या ही लाइन में लगने, बैंक में भटकने, बाजार में भटकने की बन गई है।
किस देश के इतिहास में ऐसा वक्त आया? और आया तो उसका अंत नतीजा क्या निकला?