तुम मुझे वोट दो बदले में मै तुम्हे मांस दूँगा, मीट का सेवन करना कोई पाप है क्या? मांस, मीट, गोश्त सियासत का नया अचूक तरीका! जाने पूरी स्टोरी !
रिपोर्टर.
जमाना बदल रहा है, सियासत बदल रही है, अपनाए जाने वाले सियासी हथकंडे भी बदलना लाजिमी है।
शाकाहारी और मांसाहारी के रूप में बँटे दो तबको को भी जरिया-ए-राजनीति बना दिया गया है।
इसकी परीक्षण शाला दादरी को कहा जा सकता है।
जहाँ ईद के ‘गोश्त’ को खुराफाती मांस करार दे दिया गया,
बदले में कुछ शरारती दिमाग लोगों को खुशी तोहफे में मिल गई!
गोश्त मन्डी इन दिनों देश के सबसे बड़े राज्य में भी धूम मचाई हुई है।
वैध और अवैध कत्लखानो के नाम पर जरूरतमंद हैरान हैं, परेशान हैं और व्यथित है?
योग से योग्यता की सीढ़ियां चढ़ते योगी बने आदित्यनाथ ने सरकार पर काबिज होते ही पार्टी की एक लाइन खास पर काम करते हुए जो शुरुआत की है।
वह यूपी के उन लाखों मतदाताओं को आदरान्जलि कही जा सकती है !
जिन्होंने भाजपा को वोट देने के साथ यह विश्वास जताया था कि उन्हें एक स्वच्छ और स्वस्थ सरकार नसीब होगी।
लेकिन यह पैमाना एक दूसरे राज्य केरल तक पहुंचने तक फिर करवट बदल गया।
इसी पार्टी के एक नेता ने नारा उछाला है, तुम मुझे वोट दो, मैं तुम्हें मांस दुगा।
मांस को लेकर एक अघोषित और शीत उथल-पुथल शान्ति के टापू कहे जाने वाले मप्र में भी मची हुई है।
एनजीटी के दिए गए निर्णय के बाद शहरी सीमा से बाहर बनाए जाने वाले स्लाटर हाउस पर सियासत गर्म है ।
अदालती आदेश किसी कोने में सकपकाए, ठिठके और अचम्भित पड़े दिखाई दे रहे हैं।
सरसराते जख्मों पर मिर्च मसाला छिड़कने का एक कुत्सित प्रयास राजधानी भोपाल के नाम लिखने की तैयारी की गई थी,
शहर के बीच स्थित इकबाल मैदान पर एक आग उगलती सभा सजाई जाने वाली थी।
राजनीतिक प्रेशर में काम करने वाले प्रशासन ने इसकी इजाजत भी सहज रूप से दे डाली थी,
ये सब देखने के बावजूद कि सभा के लिए वितरित की जा रही प्रचार सामग्री महा भडकाउ और शहर में आग लगाने के लिए पर्याप्त थी।
ऐन वक्त पर कुछ सामाजिक संगठनों की आपत्ति और खुद मुख्यमंत्री का दखल काम आ गया और यह सभा जगह बदलते-बदलते टलने की स्थिति में पहुँच गई है।
पुछल्ला कबाब के शौकीन तुम ही नहीं!
मांस पर पाबंदी, अवैध बूचड़खाने पर ताला बन्दी का जिक्र आते ही एक कौम खास खुद के साथ अन्याय, सरकारी अत्याचार और सियासी दबिश मानते हुए विरोध में खड़ी दिखाई देने लगती है।
ये बात सिरे से नकारते हुए कि मांस के वे न सबसे बड़े खरीदार हैं और न ही व्यापारी।
बदले दौर में इस कौम को मांस खाने और बेचने वाले की श्रेणी में काफी नीचे धकेल दिया है।
जिन्हें मांस प्रतिबंध से खाने से लेकर इसका एक्सपोर्ट कर तिजोरी भरने में परेशानियां आने वाली हैं, फिलहाल खामोश बैठ कर तमाशा देख रहे हैं।