डॉक्टर अल्लामा इकबाल उर्दू अदब फलसफा और शायरी में सिर्फ हिंदुस्तान में ही नही बल्कि पूरी दुनिया में एक अहम वो बुलंद मकाम रखते है!

एडमिन

यौमे बिलादत पर एक खास रिपोर्ट


डॉक्टर अल्लामा इक़बाल
अपनी शायरी में ईश्क़-ए-हक़ीक़ी, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की वहदानियत, मुहब्बते व इताअते मुस्तफ़ा ﷺ, क़ौम के उरूज व ज़वाल का वो नक्शा खिंचा है, जो आज भी हमारे लिए नसीहत व सबक का बाब है।
यूँ तो अल्लामा इक़बाल की बहुत सारी नज़्में है, इनमें से तुलु-ए-इस्लाम के कुछ अशआर-व-तशरीह पढ़ते और समझने की कोशिश करते है।
तुलु ए इस्लाम अल्लामा इक़बाल
सरिश्क-ए-चश्म-ए-मुस्लिम में है नैसाँ का असर पैदा ।
ख़लीलुल्लाह के दरिया में होंगे फिर गुहर पैदा।
तशरीह:- अगर मुसलमान अल्लाह के हुज़ूर आजिज़ी और गिर्या-व-ज़ारी करने लगे तो इसके आँसू अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की नज़र में निहायत कीमती साबित हो सकते है,
और हज़रतें इब्राहिम अलैहिस्सलाम की औलाद में फिर से वह क़ुव्वत-ओ-अमल बेदार होने लगी है,
जो कभी इनके असलाफ़ का विरसा हुआ करती थी और जिसके सबब इन्होंने क़लील तादाद के बावजूद दुनिया में फ़तह-व-नुसरत के झंडे गाड़ दिए थे।
मुझे उम्मीद है कि फ़ज़्ल-ए-ईलाही होने वाला है और मुसलमान को दुनिया भर में फिर सरबुलन्दी हासिल होगी। किताब-ए-मिल्लत-ए-बैज़ा की फिर शीराज़ा-बंदी है
ये शाख़-ए-हाशमी करने को है फिर बर्ग-ओ-बर पैदा।
तशरीह:- उम्मत-ए-मुस्लिमा एक बार फिर यकजा व मुत्तहिद होकर बातिल के खिलाफ सफ़ आरा हो रही है, इसके नतीजे में उम्मत-ए-मुहम्मद ﷺ अपनी मंज़िल-ए-मक़सूद की जानिब गामज़न होने को है।
ख़ुदा-ए-लम-यज़ल का दस्त-ए-क़ुदरत तू ज़बाँ तू है ।
यक़ीं पैदा कर ऐ ग़ाफ़िल कि मग़लूब-ए-गुमाँ तू है।
तशरीह:- ऐ मुसलमान! तू इस दुनिया में ला-फ़ानी खुदा का नाईब व खलीफ़ा है, इसलिए तुझ में किसी कद्र अल्लाह तआला की सिफ़ात मौजूद है,
तेरे हाथ क़ुदरत के क़ुव्वतें बाज़ू और तेरी ज़बान से ख़ुदा का फरमान जारी होता है, ऐ ग़ाफ़िल!
तू दिल में यक़ीन पैदा कर, ख़ुदा और रसूले ख़ुदा ﷺ पर ईमान रख और हर तरह के शक-ओ-शुबुहात से अपने आपको बचा ले।” परे है चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम से मंज़िल मुसलमाँ की
सितारे जिस की गर्द-ए-राह हों वो कारवाँ तू है।
तशरीह:- “तेरा नसब-उल-ऐन इस कदर बुलन्द है कि आसमान भी इसके सामने कोई हक़ीक़त नही है,
तू ऐसा काफिला है कि सितारे जिसकी राह की ख़ाक है, मुसलमान सिर्फ दुनियावी मफ़ाद (फ़ायदे) के लिए पैदा नही हुआ।
यह ईश्क़-ए-हक़ीक़ी के जज़्बे से सरशार होकर बहुत बड़ी अज़मत और हयाते जावेद हासिल करने और क़ायनात को तसख़ीर (फ़तह) करने के लिए वजूद में आया है।
मकाँ फ़ानी, मकीं फ़ानी अज़ल तेरा अबद तेरा ,
ख़ुदा का आख़िरी पैग़ाम है तू, जावेदाँ तू है।
तशरीह:- याद रख! ये दुनिया फ़ानी है और इसमें तेरा क़याम (ज़िन्दगी) आरज़ी है।
लेकिन तू अपनी ज़ात के ऐतबार से गैर फ़ानी है और तेरे बाद कोई क़ौम पैदा नही होगी,
चूँकि क़ुरआने मजीद अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का आख़री पैगाम है और तू इसका हामिल है, इसलिए तू भी क़ुरआने करीम से राब्ता-ए-क़ल्बी की बिना पर जावेदांनी है,
इस्लाम ता-क़यामत तक एक मुक़म्मल दीन रहेगा क्यूँकि हुज़ूरे करीम ﷺ आख़री नबी है,
इस मज़हब का हक़ीक़ी और बा-अमल पैरोकार होने के बाइस तू ला-फ़ानी रहेगा। हिना-बंद-ए-उरूस-ए-लाला है ख़ून-ए-जिगर तेरा तेरी निस्बत बराहीमी है मेमार-ए-जहाँ तू है।
तशरीह:- तेरे अन्दर ईश्क़-ए-रसूल ﷺ का जो व्सफ़ (खूने जिगर) पाया जाता है,
इसकी बदौलत तेरी ज़ात क़ायनात की रौनक का सबब बनेगी, तेरा ताअल्लुक़ हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से है जिन्होंने अपने हाथों से ख़ानए-क़ाबा तामीर किया।
जिस तरह इन्होंने ख़ानए-क़ाबा तामीर किया था, तू भी नई (इस्लामी) दुनिया तामीर करे। तेरी फ़ितरत अमीं है मुम्किनात-ए-ज़िंदगानी की, जहाँ के जौहर-ए-मुज़्मर का गोया इम्तिहाँ तो है।
तशरीह:- ऐ मुसलमान! अल्लाह तआला ने तेरी फ़ितरत में तरक़्क़ी की गैर महदूद सलाहिय्यत पैदा फ़रमा दी है।
इसलिए तू अपनी अहमियत का सही शऊर पैदा कर, अगर तूने अपनी सलाहिय्यतों को बर्बाद कर दिया तो ये क़ायनात गोया इम्तिहान में फैल हो जाएगी,
अल्लाह तआला ने इस क़ायनात में बहुत सी नेअमतें मख़्फ़ी (छुपा, पर्दों में) रखी है, अगर तू इन नेअमतों को नही ढूँढेगा तो इस क़ायनात की तख़लीक़ का मक़सद ही फ़ौत हो जाएगा।
जहान-ए-आब-ओ-गिल से आलम-ए-जावेद की ख़ातिर ,
नबुव्वत साथ जिस को ले गई वो अरमुग़ाँ तू है।
तशरीह:- ऐ मुसलमान! तू वो तोहफ़ा है जिसको नबुव्वत इस दुनिया से आलम-ए-जावेद की ख़ातिर अपने साथ ले गई,
अगर क़यामत के दिन अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त सरकारें दो-आलम, हुज़ूर ﷺ से दरयाफ़्त फरमाएगा कि हमनें आप ﷺ को दुनिया में नबी बनाकर भेजा था, आप ﷺ ने वहाँ क्या कार-ए-नुमायाँ अंजाम दिया, तो हुज़ूरे करीम ﷺ बारगाहे ख़ुदा में अर्ज़ करते है कि या अल्लाह! मैंने तेरे मुख़लिस बन्दों की एक जमाअत पैदा कर दी, मसलन:- सिद्दीके अक़बर, फ़ारुके आज़म, उस्माने गनी, अली-ए-मुर्तज़ा।
लिहाज़ा ऐ मुसलमान! तू अपने अन्दर वो ईमान पैदा करले ताकि क़यामत के दिन तेरा शुमार भी इन मुसलमानों में हो सके कि जिन पर हुज़ूरें अकरम ﷺ फ़ख्र करेंगे।
ये नुक़्ता सरगुज़िश्त-ए-मिल्लत-ए-बैज़ा से है पैदा
कि अक़्वाम-ए-ज़मीन-ए-एशिया का पासबाँ तू है।
तशरीह:- ऐ मुसलमान! अगर तू अपने असलाफ़ की तारीख़ का मुताअला करले तो तुझपर ये हक़ीक़त अयाँ हो जाएगी कि एशियाई अक़वाम (क़ौम) की हिफाज़त सिर्फ तू ही कर सकता है,
दीन पर ईमान-ए-क़ामिल और बातिल कुव्वतों के खिलाफ़ तू ही जिहाद करके इन क़ौमों को तबाही से बचा सकता है!
किसी ने अल्लामा इक़बाल से पूछाः अक़्ल की इन्तेहा क्या है?
जवाब मिला – हैरत।
फिर पूछा गयाः हैरत की इन्तेहा ?
जवाब मिला – ईश्क़।
फिर पूछा गयाः ईश्क़ कि इन्तेहा क्या है?
अल्लामा ने फ़रमाया – ईश्क़ ला-इन्तेहा है, इस की कोई इन्तेहा नहीं!
सवाल करने वाले ने कहा – मगर आपने तो लिखा है, “तेरे ईश्क़ की इन्तेहा चाहता हुँ।
ईकबाल ने मुस्कुराकर कहा , दूसरे मिसरे में अपनी ग़लती का ऐतराफ़ भी किया है कि – मेरी सादगी देख क्या चाहता हुँ!
तेरे ईश्क़ की इन्तेहा चाहता हुँ,
मेरी सादगी देख क्या चाहता हुँ?
आज यौम-ए-विलादते इक़बाल”, के मौक़े पर शायर-ए-मशरिक़ को याद करते हुए जिसने कभी मेरे हिंदुस्तान के लिये लिखा था।
मीरे अरब को आई ठंडी हवा जहाँ से
मेरा वतन वो ही है, मेरा वतन वो ही है।
This couplet is based on a Hadees Mubarika. Holy Prophet (PBUH) said, “I feel cool breeze coming from Hind”.
ऐ रब्बुल इज्जत हम सबको हमारा खोया हुआ उरूज़ वो वकार अता फरमाए। आमीन।

साभार;अफजल शेख

SHARE THIS

RELATED ARTICLES

LEAVE COMMENT