जाने राजधानी दिल्ली से भी छोटे से देश सिंगपुर ने इतना डेवलप कैसे और क्यों किया

विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो

क्या आप बता सकते हैं कि सिंगापोर जैसा पिद्दी सा देश, जो कि दिल्ली से भी छोटा है, आखिर इतना डवलप कैसे और क्यों हो गया?
और हम क्यों नहीं हो पाए?
और इसका कारण जानकार आपको बिलकुल ताज्जुब होगा, कि असली कारण दोनों देशों की पोलिटिकल पार्टियां, सत्ता-शासन नहीं, क्योंकि उन्हें चुनते तो हम ही हैं, नेता कोई और नहीं, हमारा ही तो आईना होता है।

इसलिए इस बात को समझिये, कि असली कारण दोनों देशों की सामाजिक, धार्मिक और राष्ट्रवादी संरचना ही है।
वैसे एक बड़ी बात बताई जाती है कि सिंगापोर में जातिभेद, धर्म-भेद, राष्ट्र्भेद की भावना नाममात्र को भी नहीं और वो भी तब, जब विदेशी लोग,चीनी और मुस्लिम सब यहाँ भरे पड़े हैं।
आपको जानकार आश्चर्य होगा कि तमिल यहाँ की तीसरी भाषा है।

यही है सिंगापोर का वैश्विक उन्नतशील राष्ट्र बनने का सबसे बड़ा कारण। क्योंकि यहाँ के लोग घृणा करना तो जानते ही नहीं, बल्कि सभी का स्वागत मुस्कुराकर करते हैं। इसीलिये तमाम विदेशी कम्पनियां यहाँ अपना व्यवसाय, अपनी ऑफिस खोलने, व्यापार करने में ज़रा भी नहीं हिचकती. और यहाँ की इकोनोमी इसी के बलबूते पर चलती है।

गौर तलब हो कि असली हाल तो ये हैं कि यहाँ के असली सिटिजन तो माइन्योरिटी में हैं, ज्यादत्तर नागरिक प्रायः पूरी दुनिया के देशों से आये लोग रहते हैं। इनमें सबसे ज्यादा चीनी हैं, फिर तमिल भारतीय और अडोस-पड़ोस के गरीब देश के लोग शामिल है।


सबसे ज्यादा धार्मिक विविधता वाले इस देश में बौद्ध, फिर मुस्लिम, ईसाई, हिन्दू और बाक़ी सभी धर्म के लोग यहाँ मिलजुल कर रहते हैं। नास्तिक भी यहाँ कम नहीं. धर्म यहाँ निहायत ही व्यक्तिगत मामला है। सर्वधर्म समभाव की जीती जागती मिसाल है सिंगापोर। भारत को भी इस से सबक लेने की जरूरत है।
वसुधैव कुटुम्बकम की असली मिसाल यदि देखनी हो, तो जिन्दगी में एक बार सिंगापोर अवश्य ही पधारिए

संवाद;पीनांकि मोरे

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