चिन्ना स्वामी हादसा बनाम पुलवामा और पहलगाम आतंकी हमला एक नजर

विशेष
संवाददाता

चिन्नास्वामी हादसा बनाम पुलवामा-पहलगाम आतंकी हमले: जिम्मेदारी का सवाल और राजनीतिक दोहरा मापदंड

4 जून 2025 को बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में हुए हादसे, जिसमें 11 लोगों की मौत हुई, ने एक बार फिर प्रशासनिक जवाबदेही और सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। कर्नाटक के विपक्षी दल BJP ने इस घटना के लिए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार को जिम्मेदार ठहराया, दावा करते हुए कि यह उनकी “आपराधिक लापरवाही” थी।

लेकिन यह सवाल उठता है कि अगर स्थानीय हादसों के लिए राज्य सरकार को दोषी माना जाता है, तो पुलवामा (2019) और पहलगाम (2000) जैसे आतंकी हमलों में केंद्र सरकार, खासकर प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री, की जिम्मेदारी क्यों नहीं तय की जाती? क्या यह राजनीतिक दोहरे मापदंड का मामला है? आइए, इस मुद्दे को गहराई से समझते हैं।

चिन्नास्वामी हादसा: राज्य सरकार पर आरोप

चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर IPL 2025 की जीत के जश्न के दौरान भगदड़ में 11 लोगों की मौत और 33 से अधिक के घायल होने की घटना ने कर्नाटक सरकार को कटघरे में खड़ा किया। विपक्ष ने इसे प्रशासनिक विफलता का नमूना बताया, जिसमें:

स्टेडियम की क्षमता (35,000) के मुकाबले 2-3 लाख से ज्यादा की भीड़ को नियंत्रित करने की कोई योजना नहीं थी।
अस्थायी स्लैब के ढहने से भगदड़ शुरू हुई, जो निर्माण या रखरखाव में लापरवाही को दर्शाता है।
सुरक्षा व्यवस्था के लिए तैनात 5,000 पुलिसकर्मी अपर्याप्त साबित हुए।

BJP नेताओं, जैसे अमित मालवीय और भास्कर राव, ने इसे मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की “प्रचार की भूख” का परिणाम बताया, क्योंकि सरकार ने आयोजन को रद्द करने के बजाय इसे राजनीतिक मंच के रूप में इस्तेमाल किया। X पर

जैसे उपयोगकर्ताओं ने सवाल उठाया कि “इतने बड़े आयोजन की अनुमति किसने दी?” इस तरह, स्थानीय नेताओं को सीधे जिम्मेदार ठहराया गया।
पुलवामा और पहलगाम आतंकी हमले: केंद्र की भूमिका

14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में CRPF के काफिले पर हुए आतंकी हमले में 40 जवान शहीद हुए। इस हमले में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी आदिल अहमद डार ने विस्फोटक से भरी कार को काफिले से टकराया। इसी तरह, अगस्त 2000 में पहलगाम में अमरनाथ यात्रियों और सुरक्षाकर्मियों पर हुए हमले में 30 लोग मारे गए। इन दोनों घटनाओं में खुफिया और सुरक्षा चूक की बात सामने आई थी।

पुलवामा: जांच में पता चला कि खुफिया एजेंसियों को संभावित हमले की चेतावनी थी, लेकिन समय पर कार्रवाई नहीं हुई। विपक्ष ने तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाए, दावा करते हुए कि केंद्र ने खुफिया जानकारी को नजरअंदाज किया और जवानों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की। X पर उस समय कई पोस्ट्स में पूछा गया, “क्या यह सुरक्षा चूक नहीं थी?”

पहलगाम: इस हमले में भी स्थानीय खुफिया तंत्र की नाकामी सामने आई थी। तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी पर विपक्ष ने सुरक्षा व्यवस्था में कमी का आरोप लगाया।
इन दोनों मामलों में केंद्र सरकार की जवाबदेही पर सवाल उठे, लेकिन जिम्मेदारी सीधे तौर पर प्रधानमंत्री या गृह मंत्री पर तय नहीं की गई। इसके बजाय, जांच कमेटियां बनीं, और दोष खुफिया एजेंसियों या स्थानीय प्रशासन पर डाला गया।

जिम्मेदारी का दोहरा मापदंड?

चिन्नास्वामी हादसे में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को सीधे जिम्मेदार ठहराने की तुलना में, आतंकी हमलों में केंद्र सरकार को वैसी कठोर आलोचना का सामना नहीं करना पड़ा। इसके कुछ कारण हो सकते हैं:

घटना की प्रकृति:
चिन्नास्वामी हादसा एक स्थानीय आयोजन से जुड़ा था, जिसके लिए राज्य सरकार की सीधी जिम्मेदारी थी। आयोजन की अनुमति, भीड़ प्रबंधन, और सुरक्षा व्यवस्था राज्य के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
इसके विपरीत, पुलवामा और पहलगाम आतंकी हमले राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े थे, जहां खुफिया जानकारी, सीमा सुरक्षा, और आतंकवाद-निरोधी नीतियां केंद्र सरकार के अधीन हैं। इनमें कई स्तरों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया शामिल होती है, जिससे जिम्मेदारी का ठीकरा शीर्ष नेतृत्व पर सीधे नहीं फोड़ा जाता।

राजनीतिक रणनीति:

चिन्नास्वामी हादसे में विपक्ष ने इसे कांग्रेस सरकार की नाकामी के रूप में पेश किया, क्योंकि यह स्थानीय स्तर पर हुआ और इसका दोष सीधे सत्तारूढ़ दल पर डाला जा सकता था।
आतंकी हमलों में, केंद्र सरकार ने इसे “राष्ट्रीय सुरक्षा” का मुद्दा बनाकर जवाबदेही को व्यापक कर दिया। उदाहरण के लिए, पुलवामा के बाद भारत की बालाकोट एयरस्ट्राइक को सरकार ने अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया, जिससे आलोचना को दबाया गया।

मीडिया और जनमत:

स्थानीय हादसों में जनता का गुस्सा सीधे स्थानीय नेताओं पर उतरता है, क्योंकि प्रभाव तत्काल और स्थानीय होता है। X पर चिन्नास्वामी हादसे को लेकर लोगों ने सिद्धारमैया को “लापरवाह” तक कहा।
आतंकी हमलों में, जनता का गुस्सा अक्सर आतंकियों और पड़ोसी देशों (जैसे पाकिस्तान) की ओर मोड़ दिया जाता है। सरकार इसे “राष्ट्रीय एकता” का मुद्दा बनाकर जवाबदेही से बचती है।

क्या केंद्र को जिम्मेदार ठहराना चाहिए?

पुलवामा और पहलगाम जैसे हमलों में केंद्र सरकार की जिम्मेदारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। खुफिया तंत्र, जो रॉ (RAW) और IB जैसे केंद्रीय संगठनों के अधीन है, को समय पर कार्रवाई करनी चाहिए थी। CRPF के काफिले की सुरक्षा और अमरनाथ यात्रियों के लिए व्यवस्था केंद्र सरकार की नीतियों पर निर्भर थी। फिर भी, इन मामलों में जिम्मेदारी अक्सर निचले स्तर के अधिकारियों या खुफिया एजेंसियों पर डाल दी जाती है।
उदाहरण के लिए, पुलवामा के बाद तत्कालीन जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने खुलासा किया था कि CRPF ने हवाई यात्रा की मांग की थी, लेकिन गृह मंत्रालय ने इसे मंजूरी नहीं दी। क्या यह गृह मंत्री या प्रधानमंत्री की जवाबदेही नहीं बनती? X पर कुछ उपयोगकर्ताओं ने इसे “सुरक्षा नीति की विफलता” बताया, लेकिन मुख्यधारा में यह मुद्दा दब गया।

कानूनी और संवैधानिक दृष्टिकोण

संवैधानिक रूप से, कानून-व्यवस्था और स्थानीय आयोजनों की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है, जबकि राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद-निरोधी नीतियां केंद्र के अधीन हैं। लेकिन जवाबदेही तय करने में यह अंतर धुंधला हो जाता है:

चिन्नास्वामी जैसे हादसों में, मुख्यमंत्री और गृह मंत्री (जो कर्नाटक में सिद्धारमैया खुद हैं) सीधे जवाबदेह माने जाते हैं, क्योंकि स्थानीय पुलिस और प्रशासन उनके नियंत्रण में है।

आतंकी हमलों में, केंद्र सरकार की नीतियां और खुफिया एजेंसियां शामिल होती हैं, लेकिन जिम्मेदारी अक्सर “सामूहिक” करार दी जाती है, और शीर्ष नेतृत्व पर व्यक्तिगत दोष कम ही लगता है।
निष्कर्ष: दोहरा मापदंड या परिस्थितियों का अंतर?

चिन्नास्वामी हादसे और पुलवामा-पहलगाम आतंकी हमलों की तुलना से स्पष्ट है कि जवाबदेही का निर्धारण परिस्थितियों, राजनीतिक माहौल, और घटना की प्रकृति पर निर्भर करता है। स्थानीय हादसों में राज्य सरकार को आसानी से निशाना बनाया जाता है, क्योंकि प्रभाव स्थानीय और तत्काल होता है। वहीं, आतंकी हमलों में केंद्र सरकार जिम्मेदारी को खुफिया एजेंसियों या बाहरी ताकतों पर डालकर बच निकलती है।
यह दोहरा मापदंड नहीं, बल्कि प्रशासनिक ढांचे और राजनीतिक रणनीति का परिणाम हो सकता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या जवाबदेही केवल निचले स्तर के अधिकारियों पर थोपी जानी चाहिए, या शीर्ष नेतृत्व को भी अपनी भूमिका स्वीकार करनी चाहिए? चिन्नास्वामी हादसे की मजिस्ट्रेट जांच और पुलवामा जैसे हमलों की जांच के नतीजे शायद इस सवाल का जवाब दे सकें। तब तक, जनता को यह तय करना होगा कि जवाबदेही का पैमाना एक समान होना चाहिए, चाहे वह स्थानीय हादसा हो या राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल।

स्रोत:

[चिन्नास्वामी हादसा: न्यूज़18, टाइम्स ऑफ इंडिया, 4 जून 2025]

[पुलवामा हमला: द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस, 2019]

[पहलगाम हमला: BBC, 2000]
[X पोस्ट्स:

साभार;पिनाकी मोरे

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