क्या है पाक मुकद्दस माहे रमज़ान के रोज़े और इसकी अहमियत ? जानिये !

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रिपोर्टर.

हर इंसान में समानता की भावना जागृत करता है, रोजा रमजान का पवित्र महीना इंसानों में इंसानों के प्रति होने वाले भेदभाव एवं समाज में फैली ऊंच-नीच की भावना को खत्म करने का सबसे बड़ा माध्यम है।

रोजा महज एक व्रत या त्योहार नहीं बल्कि इंसानों में समानता की भावना जगाने का सबसे बड़ा जरिया भी है।
रमजान के दूसरे जुमे कि अजान होते ही नमाजी मस्जिदों की और दौड़ पड़े और पूरे अकीदत के साथ रोजेदारों ने नमाज अदा की।

जामा मस्जिद के इमाम मौलाना इस्तेयाक साहब ने तकरीर करते हुए कहा कि रोजा केवल एक ऐसी तालीम है जो इंसान को जीवन में नैतिकता के उसूलों को सिखाती है।

उन्होंने बताया कि रोजा के माध्यम से हम उन उसूलों एवं तहजीबों को सीखते हैं जिसमें खुद भूखे रहकर किसी दूसरे गरीब एवं जरूरतमंदों को खाना खिलाए जाने की रस्म है।

साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जीवन की कठिनाइयों से जूझने कि हिम्मत देता हैं रोजा: मौलाना साहब ने बताया कि रमजान के महीने में रोजा रखना कई मायनों में महत्वपूर्ण है।

उन्होंने बताया कि रोजा रखने से हमारे अंदर जीवन में आने वाली कठिनाइयों एवं समस्याओं से लड़ने के लिए सकारात्मक शक्ति पैदा होती है।

चूंकि मुकद्दस रमजान में भूखे-प्यासे रहकर रोजा पूरा करना ही नहीं, रोजा के साथ इबादत, तिलावत और परहेजगारी भी जरूरी है।
भूख प्यास की शिद्दत बर्दाश्त कर जो रोजा रखता है, अल्लाह उसे रोजे का बदला भी देता है।

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