कौन है काफ़िर ? क्या है मतलब ?

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रिपोर्टर:-

काफिर एक ऐसा शब्द है जिसके बारे में ना केवल ग़ैर मुस्लमान बल्कि मुसलमानों में भी ग़लतफ़हमी है। इस शब्द का सही अर्थ इसलिए भी जानना ज़रूरी है क्यूंकि हमारे समाज में काफिर शब्द की ग़लत परिभाषा समझने से लोग इस्लाम के बहुत सारे सिद्धांतों की ग़लत व्याख्या करते है ।
अब जब शब्द का अर्थ ही ग़लत समझा गया हो, तो वह शब्द जहाँ जहाँ प्रयोग होगा उससे उत्पन धारणा भी ग़लत होगी।

काफिर शब्द का माद्दा या मूल-धातु है – कुफ्र। जिसके अरबी भाषा में 3 अर्थ होते हैं

1. छिपाने वाला

2. अकृतज्ञ (नाशुक्रा)

3. इनकार करने वाला

हो सकता है आपने काफिर शब्द की ये व्याख्या पहले कभी नहीं सुनी होगी, क्यूंकि जैसा मैंने पहले लिखा है कि अधिकतर मुस्लमान भी इस शब्द का सही अर्थ नहीं जानते ।
इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि मुसलमानों की बड़ी संख्या अरबी भाषा नहीं जानती है।
इसी वजह से वह भी काफिर शब्द का वही मतलब समझते हैं जो आप समझते हैं।
आईये क़ुरआन से कुछ प्रमाण देखते है और फिर फैसला करते हैं कि क्या काफिर शब्द का अर्थ छिपाने वाला, अकृतज्ञ (नाशुक्रा) और इनकार करने वाला ही होता है या कुछ और।

1. छिपाने वाला

क़ुरआन की एक आयत में किसान को भी काफिर कहा गया है,
क्योंकि किसान ख़ेती के लिए धरती में बीज छिपाता है ।

كَمَثَلِ غَيْثٍ أَعْجَبَ الْكُفَّارَ نَبَاتُهُ

सूरह हदीद (57:20)

अर्थात, उसकी मिसाल उस बारिश की तरह है जिससे किसान को उसकी पैदावार अच्छी लगे।

इस आयत में कुफ्फार (कुफ्र करने वाला) शब्द का अर्थ किसान इसलिए लिया है क्योंकि किसान छिपाना वाला है धरती में बीज।

अरबी भाषा का एक मुहावरा है

کَالکَرمِ اِذ نادٰی من الکَافورِ

अर्थात, जैसे अंगूर ग़िलाफ़ से ज़ाहिर होता है।
इस मुहावरे के अनुसार अंगूर के छिलके को काफिर कहा गया है क्योंकि अंगूर का छिलका अंगूर को छिपा लेता है।

अकृतज्ञ (नाशुक्रा)

काफिर शब्द का एक और अर्थ है – अकृतज्ञ (नाशुक्रा)।

क़ुरआन में बहुत सारी आयतों से यह प्रमाण मिलता है कि काफिर शब्द का अर्थ अकृतज्ञ या नाशुक्रा है।
उदाहरण;

إِنَّا هَدَيْنَاهُ السَّبِيلَ إِمَّا شَاكِرًا وَإِمَّا كَفُورًا

सूरह इन्सान (76:3)

निसन्देह हमने उसको हिदायत का रास्ता दिखाया, ।
अब चाहे वह शुक्र गुज़ार हो जाये नाशुक्रा (अकृतज्ञ) हो जाये ।
قالَ هٰذا مِن فَضلِ رَبّي لِيَبلُوَني أَأَشكُرُ أَم أَكفُرُ ۖ وَمَن شَكَرَ فَإِنَّما يَشكُرُ… لِنَفسِهِ ۖ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ رَبّي غَنِيٌّ كَريمٌ

(सूरह नम्ल 27:40)
कहने लगे ये महज़ मेरे परवरदिगार का फज़ल व करम है।
ताकि वह मेरा इम्तेहान ले कि मै उसका शुक्र करता हूँ या नाशुक्री करता हूँ।
जो कोई शुक्र करता है वह अपनी ही भलाई के लिए शुक्र करता है ।
जो शख़्स नाशुक्री करता है तो मेरा परवरदिगार यक़ीनन सख़ी और करम करने वाला है ।

इनकार करने वाला

यहाँ एक सवाल ये उठता है कि किसका इनकार?
इस सवाल का जवाब जानने से पहले ये समझना ज़रूर है कि कोई व्यक्ति किसी भी चीज़ का इनकार तब करता है जब उस तक वह बात पहुँच जाती है और साथ में सिद्ध भी कर दी जाती है।
मुस्लमान अगर ये दावा करते हैं कि इस्लाम शान्ति का धर्म है तो क्या उन्होंने ये बात सिद्ध भी की है कि इस्लाम शान्ति का धर्म और केवल एक परमात्मा के होने और उसके भजन की बात करता है।
बिना किसी बात को सिद्ध करे क्या किसी मुस्लमान के लिए ये उचित है कि वह किसी के लिए ये कह सके कि इन्होने ईश्वर और मिलने वाली शान्ति का इनकार किया।
संसार में हर इंसान शान्ति चाहता है,।
अगर किसी को समझ आजाये कि इस काम या मार्ग से शान्ति प्राप्त होगी तो भला वह उसका इनकार क्यों करेगा?
यह काफिर शब्द के तीन अर्थ हैं – छिपाने वाला, अकृतज्ञ (नाशुक्रा), इनकार करने वाला।
यहाँ दो अर्थ छिपाने वाला और अकृतज्ञ (नाशुक्रा) क्या आज के मुसलमानों पर सही
नहीं बैठते।
आप सोच रहे होंगे वह कैसे? अगर क़ुरआन और मुसलमानों के अनुसार इस्लाम शान्ति है ।
और यह सन्देश हमने लोगों तक इस तरह नहीं पहुंचाया कि उनके समझ में भी आगाया, तो छिपाने वाला कौन हुआ?

अगर मुस्लमान यह समझते हैं कि इस्लाम उनके लिए ईश्वर की ओर से सबसे बड़ी नेमत है, तो इस नेमत की नशुक्रि सबसे ज़्यादा कौन कर सकता है?

काफिर शब्द को लेकर पूरी दुनिया में ग़लतफ़हमी है। इसकी एक वजह मुसलमानो का व्यवहार और क़ुरआन से दूरी है।
और एक वजह ग़ैर मुसलमानो का इस्लाम की आधी-अधूरी बातों पर विश्वास करना।

काफिर का मतलब हिंदी, यहूदी या ईसाई नहीं, ये सब तो क़ौमें है जो क़ुरआन में स्पष्ट रूप से बताई गयी है।
परन्तु काफिर शब्द तीन अर्थ में प्रयोग किया जाता है– छिपाने वाला, अकृतज्ञ (नाशुक्रा), और इनकार करने वाला।
नैतिक बात यह है कि हमें हर बुरी चीज़ का इनकार करना चाहिए।
हर वह बात जो हमारा मार्गदर्शन करे उसे मानना चाहिए।
जैसे क़ुरआन ने कहा कि तुम शैतान के काफिर हो जाओ और ईश्वर के आस्तिक बन जाओ।

لا إِكراهَ فِي الدّينِ ۖ قَد تَبَيَّنَ الرُّشدُ مِنَ الغَيِّ ۚ فَمَن يَكفُر بِالطّاغوتِ وَيُؤمِن بِاللَّهِ فَقَدِ استَمسَكَ بِالعُروَةِ الوُثقىٰ لَا انفِصامَ لَها ۗ وَاللَّهُ سَميعٌ عَليمٌ

(सूरह बक़रा 2:256)

धर्म में किसी तरह की जबरदस्ती नहीं क्योंकि हिदायत गुमराही से (अलग) ज़ाहिर हो चुकी ।
तो जिस मनुष्य ने झूठे ताग़ूत से इंकार किया और ईश्वर पर ईमान लाया तो उसने वो मज़बूत रस्सी पकड़ी है।
जो टूट ही नहीं सकती और ख़ुदा सब कुछ सुनता और जानता है।

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