कौन है,राजा महेंद्र सिंह पीएम मोदी सरकार क्यो नही करना चाहती उनका ज़िक्र ?
रिपोर्टर.
राजा महेन्द्र प्रताप सिंह मार्क्सवादी थे, इसलिए आईएनए के संस्थापक को नमन करने में मोदी जी को शर्म आती है !
क्योंकि प्रधानमंत्री पढ़ते नहीं कि सबसे पहले आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना किन लोगों ने की थी।
यह जानना नहीं चाहते कि 1957 के लोक सभा चुनाव में मथुरा सीट पर जनसंघ के उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी की ज़मानत किसने जब्त करा दी थी, ये निर्दलीय उम्मीदवार थे राजा महेन्द्र प्रताप सिंह।
राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने “एएमयू” के वास्ते ज़मीन भी दान की थी और सबसे पहले काबुल में राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने अपने दो साथियों के साथ 29 अक्टूबर 1915 को आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना की थी।
1 दिसंबर 1915 को काबुल में राजा महेन्द्र प्रताप सिंह, मौलाना उबैदुल्ला सिंधी, मौलाना बरकतुल्ला से मिल कर भारत की पहली निर्वासित सरकार का एलान किया था ।
राजा महेन्द्र प्रताप सिंह इसके पहले राष्ट्रपति थे, मौलाना बरकतुल्ला प्रधान मंत्री, मौलाना उबैदुल्लाह सिंधी इस सरकार के गृह मंत्री घोषित किये गए !
बाद में राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस को आज़ाद हिन्द फौज़ का सर्वोच्च कमाण्डर नियुक्त करके उनके हाथों में इसकी कमान सौंप दी थी।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जो काम 1943 में किया, उनसे 28 साल पहले काबुल में राजा महेन्द्र प्रताप सिंह और उनके साथियों ने कर दिखाया था!
अफ़सोस कि मोदी सरकार इनकी चर्चा तक करना नहीं चाहती !
लाल क़िले के प्राचीर से एक बार भी आज़ाद हिन्द फौज़ की आधारशिला रखनेवाले राजा महेन्द्र प्रताप सिंह को प्रधानमंत्री ने याद नहीं किया. देश का दुर्भाग्य है !
क्या इससे भी बड़ा सुबूत चाहिए कि भारत के वामपंथियों का देश के स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान था ? इतिहास के साथ कितना खिलवाड़ हुआ है !