कितनी हसीन अदत वाले थे हमारे नबी S AS, खुद भुखे रहकर भी अपने साथियों को पहले खिलाते,तोहफा व गिफ्ट को बखुशी कुबूल फरमाते चाहे वो मामूली गिफ्ट क्यों न हो?
ऐसे थे हमारे नबी s a s
अल्लाह के रसूल सलललाहो अलैहे वसल्लम के साथी उनसे कितनी मोहब्बत करते थे इसे बताने की जरूरत नहीं है एक हल्के से इशारे पर जान कुर्बान करने के लिए तैयार रहते थे।
लेकिन आप सल्ललाहो अलैहे वसल्लम ने इस मोहब्बत का ग़लत फायदा नहीं उठाया कभी किसी पर बोझ नहीं बनें सहाबा के हर काम में हाथ बटाते थे लोग रोकते कहते कि ऐ अल्लाह के रसूल हम कर लेंगे आप आराम करें लेकिन आप अपने हिस्से का काम करते।
गज़वा खंदक में खंदक खोदी जा रही थी तो आप के हाथ में भी कुदाल थी जब सफर पर जाते और रास्ते में खाना पकाने का समय होता तो सबका हाथ बटाते ज्यादा तर लकड़ियां खुद चुन कर लाते ध्यान रहे वह रेगिस्तानी क्षेत्र था जहां लकड़ियां आसानी से नहीं मिलती थीं और लकड़ियां इकट्ठा करना भी एक मुश्किल काम था।
खुद भूखे रह कर भी साथियों को पहले खिलाते तोहफा व गिफ्ट को खुशी खुशी कबूल करते, चाहे वह मामूली गिफ्ट हो इसी तरह रिटर्न गिफ्ट ज़रूर करते अगर उस समय न हो तो बाद में ही सही
सलाम करने में जल्दी करते इस इंतजार में नहीं रहते कि लोग उन्हें सलाम करें?
घर के कामों में पत्नियों के हाथ बटाते थे बच्चों को कभी नहीं डांटते थे साथियों को हमेशा नसीहत करके नहीं थकाते थे किसी के पर्सनल मामले की टोह में रहने को बुरा ख्याल करते थे।
अपनी राय के खिलाफ भी दूसरों की राय पर अमल करते ताकि लोग राय देने में संकोच न करें अक्खड़ स्वभाव के देहाती बदु की बात भी ध्यान से सुनते मेहनत कशों की हिम्मत बढ़ाते।
आज जब हम मजहबी रहनुमाओं पीरों मुर्शिदों और नेताओं के नखरे देखते हैं जो एक तरह से खुदा बने बैठे हैं अपने को मखदूम कहलाना पसंद करते हैं।गिलास उठाकर पानी भी पीना गवारा नहीं करते तो यही सोचते हैं कि इन्हें उस रसूल से क्या निसबत ?
संवाद
मो अफजल इलाहाबाद