ऐसे गुरु सिर्फ पतन की राह पर ले जा सकते है परमात्मा की ओर नही ?

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रिपोर्टर.

ऐसे गुरु, जो कि स्वयं सांसारिक भोगों में लगे हुए हैं, वे हमसे हमारा संसार व परिवार तो छुड़ा देते हैं परन्तु स्वयं के संसार के साथ हमें बाँध लेते हैं ।

ऐसे कई कथित गुरुओं को देखा है गया है जो शिष्यों से उनके परिवार से दूर कर व्यसनी तक बना डालते हैं ।
नशे का व्यसन उन्हें तत्काल ही एक प्रकार की शांति प्रदान अवश्य कर देता है परन्तु यह शांति नशे के व्यसन के कारण छद्म होती है।

यह शांति मस्तिष्क में उत्पन्न हुई संवेदन शून्यता की शांति है,
वास्तविक शांति तो मस्तिष्क के पूर्ण जाग्रत हो जाने पर ही मिलती है ,मस्तिष्क पूर्ण जाग्रत होता है, ज्ञान से ।
अतः जो गुरु किसी को उसके परिवार से अलग कर अपने संसार के साथ बाँध लेता है, उससे बचें ।
यह तो वैसे ही हुआ जैसे एक व्यक्ति इधर कुएं से निकलकर उधर जाकर खड्ड में गिर जाये।
ऐसे गुरु पतन की राह पर ही ले जा सकते हैं, परमात्मा के रास्ते पर नहीं।

वास्तविक शांति तो संसार व परिवार से जुड़े रहते हुए भी वास्तविक गुरु ज्ञान देकर उपलब्ध करा सकता है । परमात्मा के लिए संसार छोड़ना आवश्यक नहीं है ।
अपने संसार को स्वयं के भीतर से निकाल कर बाहर करना होता है ।
साथ ही ऐसा उपाय करना होता है कि ऐसा संसार आपके भीतर पुनः प्रवेश न कर सके।
ज्ञानीजन इस उपाय को बाड़ लगाना कहते हैं ।
इतना सब एक ज्ञानी गुरु ही संभव कर सकता है ।

संत कबीर सच्चे गुरु की प्रशंसा में यहाँ तक कह गए हैं कि
गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काके लागूं पांय
बलिहारी गुरु आपकी, गोविन्द दियो बताय
कबीर कहते हैं कि सच्चा गुरु वही है, जिसने आत्म-ज्ञान करा दिया, जिसने परमात्मा को पाने का रास्ता दिखा दिया ।

ऐसे गुरु पर बलिहारी हूँ जिसने गोविन्द को बता दिया अर्थात गोविन्द को कैसे पाया जा सकता है, उसका रास्ता दिखा दिया ।

ऐसे गुरु को कबीर ने गोविन्द से भी उच्च स्थान दिया है ।
परमात्मा सर्वोच्च शक्ति है’, यह हम सभी जानते है, परन्तु हमारे में से कितने व्यक्तियों ने इस वाक्य को जिव्हा से ह्रदय में उतारा है ?

इसी वाक्य को आत्मसात केवल गुरु ही करवा सकता है ।
इस वाक्य को आत्मसात करते ही हम स्वयं गोविन्द में ही स्थित है ।
जो हमें स्वयं का ज्ञान करा दे, ऐसे में हमसे बड़ा हमें ज्ञान कराने वाला ही हुआ न . इसीलिए कबीर ने गोविन्द से गुरु को बड़ा कहा है!

 

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