इस विषय में जानिए क्या है इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला?

इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला,

अपील खारिज कर एक ही आदेश से वादी के अधिकारों की पुष्टि एवं उसे ही अधिकार से वंचित करने का आदेश नहीं दिया जा सकता,
हाईकोर्ट ने कहा यह अधिकार क्षेत्र से बाहर है, कोर्ट ने कहा राजस्व परिषद द्वारा याची के पक्ष में अपर आयुक्त के फैसले सही माना,
उसी के विपरीत उसे ही अधिकार से वंचित करने का फैसला कानून की नजर में सही नहीं है।

कोर्ट ने अपर आयुक्त के फैसले को बरकरार रखा,
जिसके खिलाफ अपील खारिज कर राजस्व परिषद ने याची को जमीन पर अधिकार से वंचित कर दिया था,
हाईकोर्ट ने इस फैसले को सही नहीं माना।

याची गंगा प्रसाद व अन्य की याचिका, गांव सभा ने जमींदारी विनाश अधिनियम की धारा 202के तहत ग्राम पुखरायां, तहसील भोगनीपुर,जिला कानपुर देहात स्थित प्लाट संख्या 322,326,330,व 921पर दावा दाखिल किया,
याची के पिता जिया लाल ने प्लाट संख्या 330 रकबा 5बीघा 18बिस्वा 18बिस्वांसी पर अपना हक जताते हुए आपत्ति की।

राजस्व अदालत द्वारा वाद विंदु तय किया गया,

बहस व दस्तावेजी साक्ष्य लेकर गांव सभा के पक्ष में 31अक्टूबर1991 फैसला हुआ,
एक विपक्षी श्रीकृष्ण गोशाला कमेटी का नाम राजस्व पत्रावली से हटा दिया गया,
इस आदेश के खिलाफ याची के पिता व गोशाला कमेटी ने आयुक्त के समक्ष दो अपीलें की, अपर आयुक्त प्रशासन कानपुर ने दोनों अपीलों की एक साथ सुनवाई की।

अपील मंजूर करते हुए प्लाट संख्या 330पर याची के पिता जिया लाल का भूमिधरी अधिकार घोषित किया,
और गोशाला कमेटी की अपील खारिज कर दी।
जिसके खिलाफ कमेटी ने राजस्व परिषद में द्वितीय अपील दाखिल की।
8 जून 2005 के आदेश से परिषद ने अपील खारिज कर दी थी।

लेकिन कहा कि अपर आयुक्त का याची के पक्ष में फैसला अवैध है,
और याची को प्लाट संख्या 330 पर कोई अधिकार नहीं है,
याची का कहना था कि अपर आयुक्त ने उसके पक्ष में फैसला दिया।

गांव सभा ने फैसले के खिलाफ अपील नहीं की और फैसला अंतिम हो गया,
याची प्लाट संख्या 330का स्वामी हो गया,

उसे सुने बगैर दूसरे की अपील खारिज कर याची के अधिकार छीनने का आदेश कानून की नजर में अधिकार क्षेत्र से बाहर है, जिसे रद्द करने की मांग की गई थी,
जस्टिस चंद्र कुमार राय की Single बेंच ने दिया आदेश।

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