आज भी मशहूर है मुहब्बत की रोटी,ख्वानी बेगम ने तैयार की थी,जिस के इश्क में शहर कोतवाल जैनुल भी गिरफ्तार था वजीर का बेटा होने के कारण उन्हें अपनी अकड़ थी पढ़े और भी रोचक स्टोरी
संवाददाता
मो अफजल इलाहाबाद
मुहब्बत की रोटी बाकरख्वानी
एक मिर्ज़ा बाक़र थे ! बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के यहाँ सिपहसलार वग़ैरा थे ! चटगाँव में मुक़ीम थे. चटगाँव अब बांग्लादेश में है ! मिर्ज़ा को मोतीझील की एक रक्क़ासा ख़्वानी बेगम से इश्क़ हुआ।
मोतीझील कई हैं – कानपुर, मुज़फ़्फ़रपुर मुर्शिदाबाद में, लेकिन ये वाला मोतीझील ढाका का खूबसूरत बाज़ार था. भोजपुरी में उसपे एक गीत बना –
“जाके साईकिल से ना,
होss… जाके साइकिल से ना,
पिया मेहंदी लिया द मोती झील से।
ख्वानी बेगम के इश्क़ में शहर कोतवाल ज़ैनुल भी गिरफ़्तार था, वो वज़ीर का बेटा था और उनकी अपनी अकड़ थी ।
दोनों में तन गई और तलवारबाज़ी का मुक़ाबला हुआ जिसमें कोतवाल ज़ैनुल हार गया. उसने अपने वज़ीर बाप को अपने क़त्ल की झूठी खबर भिजवाई तो वज़ीर साहब ने बाक़र को शेर के पिंजरे में डाल दिया। ।
बाक़र और शेर की लड़ाई हुई, हुजूम जमा हो गया और बाक़र ने शेर को मार डाला । वज़ीर को अपने बेटे के झूठ का पता चला । वो शर्मिंदा हुआ लेकिन उसने ख़्वानी बेगम को अगवा कर लिया और बेटे के साथ दक्षिण बंगाल के बरीसाल की तरफ़ भाग निकला पटुआखली में बाक़र ने उन्हें घेर लिया और मार डाला लेकिन ख़्वानी बेगम को बचा नहीं सका ज़ैनुल ने उसे पहले ही क़त्ल कर दिया था ।
बाक़र ने वहीं ख़्वानी बेगम को दफ़नाया, मक़बरा बनवाया और वहाँ शहर बाक़रगंज बसा। मशहूर साहित्यकार असग़र वजाहत की किताब “बाक़रगंज के सैयद” इस शहर की बेहतरीन तस्वीर खींचती है । वहाँ के नानबाई यानी बेकरी वालों ने बाक़र और ख़्वानी बेगम को ख़िराज ए अक़ीदत पेश करते हुए बाक़रख्वानी नाम की रोटी बनाई जो बंगाल से निकलकर बिहार, दिल्ली कश्मीर होती हुई आर्मीनिया इस्तानबुल तक पहुँची । दूध में गूँधी हुई बीसों परत वाली मीठी रोटी में मुहब्बत, अक़ीदत, जाँबाज़ी और क़ुर्बानी की परतें भी शामिल हैं ।
पिछले तीन सौ बरसों में अलग अलग शक्ल अख़्तियार कर चुकी है लेकिन कहते हैं शहर “गया” में उसका असली रूप रंग और स्वाद आज भी मौजूद है. ये रोटी कई दिनों तक ख़राब नहीं होती और लंबे सफ़र में साथ निभाती है ।
बिहारी सीख़ कबाब या लखनवी पसंदे के साथ उसका ज़ायक़ा खिल उठता है। वैसे तो माँ के हाथ की रोटी का कोई मुक़ाबला नहीं है लेकिन बाक़रख़ानी ने हर शादी ब्याह तीज त्योहार में अपना किरदार बख़ूबी निभाया है ! मुस्लिम शादियों में कलेजी के साथ बाराती इसका नाश्ता कर लें तो सराती की सारी ख़ामियाँ माफ़ !
मौका मिले तो एक बार इसका लुत्फ लीजिए।