आखिर कार नोट बंदी मामले में केंद्र सरकार को प सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत, पर जनता में है आक्रोश

संवाददाता

हिसाम सिद्दीकी

नई दिल्ली: नए साल का दूसरा दिन मोदी सरकार के लिए नया हौसला लेकर आया जब सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने वजीर-ए-आजम मोदी के जरिए आठ नवम्बर 2016 को की गई नोटबंदी के फैसले को सही ठहराते हुए कह दिया पांच सौ और एक हजार के नोट बंद करने की कार्रवाई में कोई गड़बड़ी नहीं हुई।

पांच जजों में से चार ने नोटबंदी के हक में फैसला दिया जबकि जस्टिस बी वी नागरत्ना ने चार जजों के मुखालिफ फैसला दिया है। बेंच ने कहा कि मआशी (आर्थिक) फैसलों को पलटा नहीं जा सकता। यह बात तो समझ में आती है कि अदालत को सालों बाद सरकार के मआशी फैसले तब्दील नहीं करना चाहिए। लेकिन ऐसे फैसलों से अवाम ने जो कुछ भुगता उसका क्या हल है? अदालत को कम से कम उन लोगों के लिए तो कुछ जरूर राहत देनी चाहिए थी जिन लोगों की नोट बदलवाने की कतारों में लगे रहने के दरम्यान मौत हो गई या बड़ी तादाद में लोगों के बच्चों की शादियां रूक गई थीं।

फैसले में कहा गया है कि नोटबंदी से पहले रिजर्व बैंक आफ इंडिया से मश्विरा (कंसलटेशन) हुआ था। कायदे से तो रिजर्व बैंक की जानिब से नोटबंदी के लिए सिफारिश (रेकमंण्डेशन) आनी चाहिए थी कंसलटेशन का कोई मतलब नहीं होता। फैसले में यह भी कहा गया है कि नोटबंदी के जो भी मकासिद (उद्देश्य) बताए गए थे वह पूरे हुए या नहीं हुए अब इन बातों का कोई जवाज (औचित्य) नहीं है।

लेकिन जवाज तो हमेशा रहेगा। अदालत के कह देने से ही जवाज खत्म नहीं हो जाता। नोटबंदी के वक्त देश से कहा गया था कि काला धन खत्म हो जाएगा, दहशतगर्दी और माओवादियों को पैसा नहीं मिलेगा तो वह कमजोर होंगे और डिजिटल लेन-देन में इजाफा होगा एक भी मकसद पूरा नहीं हुआ उल्टे देश की मआशी हालत खराब हो गयी इसके बावजूद अगर सुप्रीम कोर्ट के चार फाजिल जज साहबान कह रहे हैं कि मकासिद पूरे हुए या नहीं इस बात का अब कोई जवाज नहीं है तो इसपर क्या कहा जा सकता है।

दो मामलात पेगासस जासूसी और रफाल की खरीद में मोदी सरकार को पहले ही क्लीन चिट सुप्रीम कोर्ट से मिल चुकी है यह तीसरा मामला है। चैथा मामला जम्मू कश्मीर को खुसूसी दर्जा देने वाली संविधान की दफा 370 हटाने का बचा है। उसका फैसला भी सरकार के हक में होने का पूरा यकीन है।
इस केस की सुनवाई करने वाली पांच जजों की बेंच में जस्टिस एस अब्दुल नजीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामसुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल हैं।

इनमें से जस्टिस बीवी नागरत्ना ने नोटबंदी की प्रोसेस पर बाकी चार जजों की राय से अलग फैसला लिखा। उन्होंने कहा कि नोटबंदी का फैसला नोटिफिकेशन की जगह कानून के जरिए लिया जाना था। वजीर-ए-आजम नरेंद्र मोदी ने 2016 में एक हजार और पांच सौ रुपए के नोट बंद करने का एलान किया था। सरकार के इस फैसले के खिलाफ अट्ठावन अपीलें सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थीं।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि किस कानून के तहत एक हजार और पांच सौ रुपए के नोट बंद किए गए थे। कोर्ट ने इस मामले में सरकार और रिजर्व बैंक आफ इंडिया से जवाब तलब किया था। मरकजी सरकार ने पिछले साल नौ नवंबर को दाखिल हलफनामे में कहा था कि पांच सौ और एक हजार के नोटों की तादाद बहुत ज्यादा बढ़ गई थी। इसीलिए फरवरी से लेकर नवंबर तक आरबीआई से तबादला ए ख्याल के बाद आठ नवंबर को इन नोटों को चलन से बाहर करने यानी नोटबंदी का फैसला लिया गया था।

संविधान बेंच की कयादत कर रहे जस्टिस एस अब्दुल नजीर फैसला सुनाने के दो दिन बाद चार जनवरी, 2023 को रिटायर हो गए। इस मामले में अपील करने वालों की दलील थी कि भारतीय रिजर्व बैंक एक्ट की दफा 26 (2) किसी खास कीमत के करेंसी नोटों को पूरी तरह से रद्द करने के लिए सरकार को अख्तियार नहीं देती है। दफा 26 (2) मरकज को एक खास सीरीज के करेंसी नोटों को रद्द करने का अख्तियार देती है, न कि मुकम्मल करेंसी नोटों को।

सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने नोटबंदी के फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि यह जाली करंसी, टेरर फंडिंग, काले धन और टैक्स चोरी जैसे मसायल से निपटने की प्लानिंग का हिस्सा और असरदार तरीका था। यह इकोनामिक पालीसियों में बदलाव से जुड़ी सीरीज का सबसे बड़ा कदम था। मरकजी सरकार ने यह भी कहा था कि नोटबंदी का फैसला रिजर्व बैंक के मरकजी बोर्ड आफ डायरेक्टर्स की सिफारिश पर ही लिया गया था। मरकज ने अपने जवाब में यह भी कहा कि नोटबंदी से नकली नोटों में कमी, डिजिटल लेन-देन में इजाफा, बेहिसाब आमदनी का पता लगाने जैसे कई फायदे हुए हैं।

अकेले अक्टूबर 2022 में सात सौ तीस (730) करोड़ का डिजिटल ट्रांजैक्शन हुआ, यानी एक महीने बारह लाख करोड़ रुपए का लेन-देन रिकार्ड किया गया है। जो 2016 में एक लाख नौ हजार ट्रांजैक्शन, यानी तकरीबन छः हजार नौ सौ बावन (6,952) करोड़ रुपए था।

2016 में विवेक शर्मा ने अपील दाखिल कर सरकार के फैसले को चुनौती दी। इसके बाद सत्तावन (57)और अपीलें दाखिल की गईं। अब तक सिर्फ तीन अपीलों पर ही सुनवाई हो रही थी। अब सब पर एक साथ सुनवाई चली और सभी अपीलें रद्द कर दी गई है। 16 दिसंबर 2016 को ही यह केस संविधान बेंच को सौंपा गया था, लेकिन तब बेंच की तश्कील नहीं हो पायी थी।

15 नवंबर 2016 को उस वक्त के चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने मोदी सरकार के इस फैसले की तारीफ की थी। सुप्रीम कोर्ट में अपील करने वालों के वकीलों ने सरकार की नोटबंदी की स्कीम में कई कानूनी गलतियां होने की दलील दी थी, जिसके बाद 16 दिसंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को पांच जजों की संविधान बेंच के पास भेज दिया था। तब कोर्ट ने सरकार के इस फैसले पर कोई भी इण्टरिम आर्डर देने से इनकार कर दिया था।

यहां तक कि कोर्ट ने तब नोटबंदी के मामले पर अलग-अलग हाईकोर्ट में दायर अपीलों पर सुनवाई से भी रोक लगा दी थी। आठ नवंबर 2016 को पीएम मोदी ने नोटबंदी का एलान किया था। वजीर-ए-आजम नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर 2016 को देश के नाम संदेश में रात 12 से पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट बंद करने का एलान किया था। उस वक्त सरकार को उम्मीद थी कि नोटबंदी से कम से कम तीन-चार लाख करोड़ रुपए का काला धन बाहर आ जाएगा। हालांकि, पूरी कवायद में एक करोड़ तीस लाख करोड़ रुपए का काला धन ही सामने आया।

दरअसल, रिजर्व बैंक आफ इंडिया की 2016-17 से लेकर ताजा 2021-22 तक की सालाना रिपोर्ट्स बताती हैं कि आरबीआई ने 2016 से लेकर अब तक पांच सौ और दो हजार के कुल छः हजार आठ सौ उनचास (6,849) करोड़ करंसी नोट छापे थे। उनमें से एक हजार छः सौ अस्सी (1,680) करोड़ से ज्यादा करंसी नोट सर्कुलेशन से गायब हैं। इन गायब नोटों की वैल्यू नौ लाख इक्कीस हजार करोड़ रुपए है। इन गायब नोटों में वह नोट शामिल नहीं हैं जिन्हें खराब हो जाने के बाद आरबीआई ने बर्बाद कर दिया। कानून के मुताबिक ऐसी कोई भी रकम जिस पर टैक्स न चुकाया गया हो, ब्लैक मनी मानी जाती है। इस नौ लाख इक्कीस हजार करोड़ रुपए में लोगों की घरों में जमा बचत भी शामिल हो सकती है। मगर उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान इत्र कारोबारी पर पड़े छापों से लेकर हाल में पच्छिम बंगाल के वजीर पार्थ चटर्जी के करीबियों के पड़े छापों तक हर जगह बरामद ब्लैक मनी में पनचान्नवे (95) फीसद से ज्यादा पांच सौ और दो हजार के नोटों में ही था।

आरबीआई के अफसरान भी नाम न छापने की शर्त पर तस्लीम करते हैं कि सर्कुलेशन से गायब पैसा भले ही सरकारी तौर पर ब्लैक मनी न माना जाए मगर खदशा इसी का ज्यादा है कि इस रकम का बड़ा हिस्सा ब्लैक मनी है। अफसरान यह मानते हैं कि काला धन जमा करने में सबसे ज्यादा इस्तेमाल बड़े डिनामिनेशन के यानी पांच सौ और दो हजार के नोटों का इस्तेमाल होता है।

शायद इसी वजह से 2019 से दो हजार के नोटों की छपाई ही बंद है। मगर पांच सौ के नए डिजाइन के नोटों की छपाई 2016 के मुकाबले छिहत्तर (76) फीसद बढ़ गई है। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि घरों में इस तरह जमा कैश कुल काले धन का दो-तीन फीसद ही होता है। ऐसे में स्विस बैंक्स में जमा भारतीयों के काले धन पर 2018 की एक रिपोर्ट इस बात का शक बढ़ा देती है कि सर्कुलेशन से गायब नौ लाख इक्कीस हजार करोड़ की रकम ब्लैक मनी ही हो। इस रिपोर्ट के मुताबिक स्विस बैंक्स में भारतीयों का तीन सौ लाख करोड़ का काला धन है।

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