22 साल के मुस्लिम IPS की कहानी, जिसकी मां दूसरे के घरों में बनाती थी रोटियां !

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रिपोर्टर.

गुजरात के एक छोटे से गांव को वो गरीब लड़का, जिसने बचपन में एक सपना देखा और फिर उसे हकीकत में बदला मां लोगों के घरों के लिए रोटियां बेलती थीं पिता ठेला लगाते थे, जीवन में अभाव था और थीं ढेर सारी मुश्किलें।

जब यूपीएससी एग्जाम का पहला पेपर था तो ऐसा एक्सीडेंट हुआ कि अस्पताल में कई दिन बीते।
उस हालत में भी गुजरात का युवा मुस्लिम साफिन हसन डटा रहा।
अब वो देश का सबसे युवा आईपीएस है.
साफिन ने जिस तरह से यूपीएससी का एग्जाम पास किया.
फिर अस्पताल से आकर आत्मविश्वास से इंटरव्यू का सामना किया. वो किसी भी युवा को प्रेरणा देने के लिए काफी है !

इस शख्स की कहानी किसी की भी अंधेरी जिंदगी में हौसले की रोशनी जगा सकती है।
टूटी हुई हिम्मत को इस कदर जोश से भर सकती है कि लगेगा कि वाकई ठान लें तो कुछ भी कर सकते हैं।
चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट रखने वाले साफिन की कहानी ऐसी ही है. कहीं दिल को छू लेने वाली तो कहीं उमंग और उत्साह देने वाली।

साफिन सूरत के एक गांव के रहने वाले हैं।
डॉयमंड इंडस्ट्रीज में मंदी के चलते उनके माता-पिता को नौकरियां छोड़नी पड़ीं. फिर मां घरों में रोटियां बेलने का कांट्रैक्ट लेने लगीं।

पिता इलैक्ट्रिशियन थे. साथ में जाड़ों में चाय और अंडे का ठेला लगाते थे.साफिन ने लोकप्रिय प्रोग्राम जिंदगी विद साफिन में बताया कि जब वो छोटे थे तो उन्होंने मां के साथ मिलकर खुद अपना घऱ बनाया।

वो लोग खुद दिनभर के काम के बाद इसके लिए मजदूरी करते थे, क्योंकि उन लोगों के पास मजदूर को देने के लिए पैसे नहीं थे. मां ने कुछ कर्ज भी लिया था।
साफिन बताते हैं कि उन्होंने जब घर में संघर्ष की स्थिति देखी जो खुद को पूरी तरह पढाई पर फोकस कर दिया।
वो स्कूल में पढाकू बच्चे के रूप में जाने जाते थे।

गांव के प्राइमरी और हाईस्कूल की पढाई के बाद पैसा नहीं था कि शहर जाकर इंटर कॉलेज में एडमिशन लें।
तभी गांव में ही प्राइवेट इंटर कॉलेज खुला, जहां उन्हें बहुत रियायती फीस पर दाखिला मिल गया।

जब वो नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग (एनआईटी) में सलेक्ट हुए तो कोई ना कोई उनकी फीस और हास्टल के खर्च में मदद करता रहा. हां, छुट्टियों में वो बच्चों को पढाकर भी फीस जुटाते रहे।

साफीन हमेशा अपने इंटरव्यू में यही कहते हैं कि जो होता है, उसके पीछे बड़ी वजह जरूर होती है, तब हम समझ नहीं पाते. अक्सर ये अच्छे के लिए ही होता है।
क्या आप यकीन करेंगे कि साफीन जब एनआईटी में पढने गए तो उनकी अंग्रेजी तंग थी.।
इसका मजाक भी उड़ता था लेकिन जब वो यूपीएससी में इंटरव्यू देने गए तो उन्होंने अंग्रेजी भाषा ही चुनी।
ऐसा इसलिए हो पाया क्योंकि वो हमेशा से अपनी कमजोर पहलुओं को मजबूत करने के हिमायती रहे हैं।
जब यूपीएससी की तैयारी करने दिल्ली आए तो गांव के ही एक मुस्लिम दंपति ने खर्च उठाया।
जिन्हें यकीन था कि ये लड़का जो ठान लेता है वो करके दिखाता है.।

इसे भी भाग्य का फेर ही कहेंगे कि जब वो यूपीएससी का पहला पेपर देने जा रहे थे तभी उनका गंभीर एक्सीडेंट हुआ. लेकिन दायां हाथ सही सलामत था।
लिहाजा उन्होंने खराब स्थिति के बाद सारे पेपर दिए. उसके बाद जरूर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।
लिखित परीक्षा के बाद जब इंटरव्यू की बारी थी, तब भी वो एक महीने तक अस्पताल में रहे।

वहां से निकलने के एक हफ्ते बाद उनका इंटरव्यू था.कोई और होता तो ऐसे समय में जरूर टूट जाता. ये सोचता कि ये सब मेरे साथ ही क्यों हो रहा है.
तब सफीन ने सोचा, दरअसल उन्हें दो परीक्षाएं देनी हैं-
एक अल्लाह के साथ और दूसरी यूपीएससी-इन दोनों में खरा भी उतरना है।

यूपीएससी के रिजल्ट में उन्हें 175वीं पोजिशन मिली, जिससे उनका आईपीएस में जाना तय हो गया.
जब इस खबर को उन्होंने सबसे मां से बांटा तो ये उनकी आंखों से आंसू आ गए. लेकिन मां-बेटे के लिए ये वो क्षण था, जिसका इंतजार उन्होंने अपनी जिंदगी में अब तक किया था।

जीवन में आई मुसीबतों पर वो मुस्कुराते हुए कहते हैं, “मुसीबतें उसी के कंधे पर आती हैं, जो उसे उठाने लायक हो.” वो ये भी कहते हैं, “मैने कभी फील नहीं किया कि मुसलमान होने के कारण मेरे साथ भेदभाव हुआ.
“वो ये भी कहते हैं, “धर्म कभी खतरे में नहीं पड़ता और ना ही अच्छा और बुरा होता है, ये उसके मानने वाले हैं, जो उसे अच्छा या बुरा बनाते हैं.”वो अब अपनी तरह के जरूरतमंदों की मदद करना चाहते हैं ताकि उनके सपने पूरे कर पाएं।
साफिन को लोगों से मिलना उनकी समस्याओं को दूर करना अच्छा लगता है !

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