वाह री पूर्वांचल विधुत वितरण निगम यहां हो रहे करोड़ो रुपयों के घोटाले की जांच अबतक क्यों नही?

वाराणसी
संवाददाता

वाराणसी 24 सितंबर:पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम भले ही कंगाली की मार झेल रहा हो।
जहाँ छोटे ठेकेदारों को अपने काम के भुगतान के लिए आंदोलन करना पड़ रहा हो ।
वही कार्पोरेशन के फरमान पर बड़ी कार्यदायी कम्पनियां इस विभाग को चुना लगाकर दीमक की तरह खोखला करने पर आमादा है।
क्योंकि यह विभाग को कंगाली की ओर ढकेलने में इनका बड़ा योगदान रहा है।
2020 में प्रयागराज में बिलिंग का काम देखने वाली एक कार्यदायी संस्था ने सैकड़ो उपभोक्ताओं के विद्युत बिलको को एक स्थानांतरण हो चुके बाबू की 2019 से निष्क्रिय आईडी से अधिशासी अभियंता के साथ गठजोड़ कर आईडी को सक्रीय कर के विभाग को लगभग एक करोड़ रुपए का चूना लगाया।
मजे की बात तो ये है कि वही कार्यदायी कम्पनी आज भी प्रयागराज में कार्यरत हैं ।
इस घोटाले की पोल खुलने पर जब हंगामा मचा तो एक जांच कमेटी का गठन कर जांच शुरू कर दी गयी।
परन्तु भ्रष्टाचार की जांच अगर भ्रष्टाचारियों द्वारा करायी जाएगी तो परिणाम क्या होगा?
इस घोटाले में घोटाले के समय तैनात अधिशासी अभियंता एवं कम्पनी को बचाने के चक्कर में एक बाबू को जबरन फसा कर मामले को लगभग एक वर्ष से एक बड़ी साजिश के तहत उलझाया जा रहा है।
जबकि सूत्र बताते हैं कि अब तक कि जांच में स्पष्ट तौर पर अधिशासी अभियंता और कार्यदायी कम्पनी द्वारा इस घोटाले को अंजाम देने की बात साफ हो चुकी है।
परन्तु जिन अधिकारियों को इस जांच की जिम्मेदारी सौपी गयी है।
वो खुलकर अधिशासी अभियंता और कार्यदायी तथाकथित कम्पनी को बचाने की साजिश में मशगूल नजर आ रहे है।
यानी बड़ी मछलीयो को बचाने में छोटी मछली को निगलने की पूरी तैयारी को अंजाम देने की साजिश करती जांच कमेटी दिख रही ।
खैर समय के साथ-साथ और भी धोटाले खुलते रहेगे जाँच दिखावे को होती रहेगी।
क्यो कि पावर कार्पोरेशन नामक इस कोयले के कमरे से कोई बेदाग नही निकला!
चाहे वो बडका बाबू हो या सविदा कर्मी इस हमाम मे सब नंगे है जाचे चलती है जिन्दगी भर घोटाले करते है।
सेवानिवृत्त से पहले एक इंक्रीमेंट बैक होता है यानी जिन्दगी भर कार्पोरेशन को लूटा खूब पेट भर के चाँदी का जूता खाया फिर उसमे से थोडा निकाल कर जिम्मेदारो को मारा और निकल लिए यह है सच्चाई पावर कार्पोरेशन के डूबने की । खैर

युद्ध अभी शेष है

साभार:अविजित आनन्द , चन्द्र शेखर सिंह।

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