यूपी सीएम ने किस तरह किया एशिया की पहली पैथोजैन रिडेक्षन मशीन का लोकार्पण अब होगा आसान फेफड़ों से जुड़ी कई गंभीर बीमारियों का इलाज

योगी जी ने किया एशिया की पहली पैथोजेन रिडक्शन मशीन का लोकार्पण

केजीएमयू में स्थापित की गयी एशिया की पहली पैथोजेन रिडक्शन मशीन

अब प्रदेश में आसान होगा फेफड़े से जुड़ी कई गंभीर बीमारियों का इलाज।

लखनऊ। समय आ गया है कि उत्तर प्रदेश के तीन बड़े मेडिकल कॉलेज केजीएमयू, आरएमएल और एसजी पीजीआई को सुपर स्पेशियलिटी फैसिलिटी की दिशा में तेज गति से आगे बढ़ना होगा। हमें समय से दो कदम आगे चलना होगा तभी समाज हमारा अनुकरण करेगा, नहीं तो यही समाज हमें अविश्वसनीय नजरों से देखेगा।

उक्त बातें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) में आयोजित कार्यक्रम के दौरान कही। मुख्यमंत्री ने इस मौके पर थोरेसिक सर्जरी विभाग एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग व ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में एशिया की पहली पैथोजेन रिडक्शन मशीन का लोकार्पण किया। कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक, राज्यमंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह भी मौजूद रहे।

केजीएमयू में थोरेसिक सर्जरी विभाग एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग व ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में एशिया की पहली पैथोजेन रिडक्शन मशीन के लोकार्पण से अब प्रदेश में फेफड़े के कैंसर सहित छाती से जुड़ी बीमारियों की सर्जरी असानी से हो सकेगी। इसके साथ ही नसों से जुड़ी बीमारियों के मरीजों को भी लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।

साथ ही पैरों की नसों में गुच्छे से सेना और सुरक्षा से जुड़ी नौकरियों में नहीं जा पाने वाले युवाओं का सपना भी साकार हो सकेगा। इसके अलावा इन विभागों में नये शोध होंगे, जिससे ज्यादा से ज्यादा विशेषज्ञ भी तैयार होंगे। कार्डियक थोरेसिक और वस्कुलर सर्जरी का अलग अलग विभाग शुरू करने वाला यूपी देश का पहला राज्य है।अपने संबोधन में मुख्यमंत्री ने कहा कि मेरे लिये ये अत्यंत प्रसन्नता का क्षण है कि देश के सबसे बड़े चिकित्सा विश्विवद्यालय में आज हम प्रगति के नये आयाम को जुड़ते हुए देख रहे हैं। केजीएमयू में आज तीन उपलब्धियां क्रमिक रूप से आगे बढ़ रही हैं, जोकि अत्यंत महत्पूर्ण है।

मुख्यमंत्री ने केजीएमयू में दोनों नवगठित विभागों (थोरेसिक सर्जरी विभाग एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग) और ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में एशिया की पहली पैथोजेन रिडक्शन मशीन के लोकार्पण को ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के क्षेत्र में अति महत्पूर्ण कदम बताया। मुख्यमंत्री ने केजीएमयू के थोरेसिक सर्जरी विभाग के प्रो शैलेन्द्र कुमार, वैस्कुलर सर्जरी विभाग के प्रो अम्बरीश कुमार और ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की अध्यक्ष प्रो तुलिका चंद्रा को इस उपलब्धि के लिये बधाई दी। उन्होंने कहा कि आज उत्तर प्रदेश में ऑर्गन ट्रांसप्लांट की सबसे ज्यादा आवश्यक्ता है। हमारे पास इस क्षेत्र में नेतृत्व करने की असीम संभावनाएं हैं।
मुख्यमंत्री ने आश्वस्त करते हुए कहा कि सरकार चिकित्सा के क्षेत्र में होने वाली हर नयी प्रगति के साथ खड़ी है।

अगर आप पूरी ईमानदारी के साथ किसी भी कार्यक्रम को आगे लेकर बढ़ते हैं तो पैसे की कोई समस्या नहीं होगी। हमें मेडिकल साइंस में समय के अनुरूप चलने की आदत बनानी होगी। उसी के अनुरूप अपने कार्यक्रमों को आगे बढ़ाना होगा। उन्होंने कहा कि केजीएमयू, आरएमएल, एसजीपीजीआई को अब सुपर स्पेशियलिटी फैसिलिटी की ओर ही आगे बढ़ना चाहिए। वर्तमान में हम वन डिस्ट्रिक्ट वन मेडिकल कॉलेज बनाने की दिशा में तेजी से अग्रसर हुए हैं।

आज हम हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज दे रहे हैं, तो स्वाभाविक रूप से मरीजों की भीड़ निचले स्तर पर ही छंटनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों चिकित्सा शिक्षा विभाग को इस बारे में निर्देशित किया गया है कि जिलों के मेडिकल कॉलेज से हर पेशेंट को लखनऊ ना भेजा जाए। कोविड काल में हम वर्चुअल आईसीयू के जरिए सफलतापूर्वक टेली कंसल्टेशन कर चुके हैं।

ऐसे में हमें जिलों के मेडिकल कॉलेजों को टेली कंसल्टेशन के माध्यम से गाइड करना होगा। इससे अनावश्यक मरीजों की भीड़ छंटेगी, जिससे केजीएमयू सहित तीनों मेडिकल कॉलेज की क्वालिटी में सुधार होगा।मुख्यमंत्री ने कहा कि केजीएमयू ने मेडिकल साइंस के क्षेत्र में लंबी यात्रा पूरी की है। पांच साल पहले ही इसने अपनी 100 वर्ष की यात्रा पूरी की है। आज भी देश के वरिष्ठ चिकित्सकों में से अधिकतर खुद को केजीएमयू के साथ जोड़कर गर्व की अनुभूति करते हैं। मगर ध्यान दें, कि इस 100 साल में मेडिकल साइंस के क्षेत्र में बहुत प्रगति हुई है। हम इस प्रगति में कहां पर हैं, क्या कहीं ठहराव भी आया है।हमें इसका भी मूल्यांकन करने की आवश्यक्ता है।मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे पास काबिल डॉक्टरों की कोई कमी नहीं है, मगर समस्या ये है कि हम एक भी रिसर्च पेपर नहीं लिख रहे हैं, ना ही कोई अन्तरराष्ट्रीय पब्लिकेशन दे रहे हैं। ऐसे में पेटेंट करने की दिशा में हमारी प्रगति लगभग शून्य जैसी है।

हम नैक के मूल्यांकन की चर्चा करते हैं मगर हमें देखना होगा कि हमारे रिसर्च पेपर्स की स्थिति क्या हैं, हमारे पब्लिकेशन की उपलब्धि क्या हैं। हमने पेटेंट के लिए कितने रिसर्च पेपर को आगे बढ़ाया है। जरूरत इस बात की है कि हमें इसे अपने दैनिक कार्यक्रमों का हिस्सा बनाना होगा। हमें लिखने की आदत डालना चाहिए। इन्टरनेशनल जर्नल में अपने पब्लिकेशन्स छपने के लिए देना चाहिए। अगर हम अभी से इसकी तैयारी करेंगे तो नैक के मूल्यांकन में बहुत अच्छी ग्रेडिंग प्रप्त होगी, इसमें संशय नहीं होगा।

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