क्या ये सच है नेहरू जी ने संविधान के बुनियादी ऊसूल की ही उड़ाई थी धज्जियां?
धारा 341के अंतर्गत ही दलितों को रिज़र्वेशन मिलता है, सरसरी तौर पर देखने से इस धारा मे मज़हबी पाबंदी का कहनी ज़िक्र नहीं मिलता,
लेकिन ज़ब आप इसके संदर्भ की गहराई मे जायेंगे तो नेहरू सरकार ने इस पर दो ऐसी पाबंदिया लगा दी है
जिस से मज़हबी आज़ादी ही नहीं बल्कि संविधान के बुनियादी उसूल की ही धज्जिया उड़ा कर रख दी है।
10 अगस्त 1950 को पहला सरकारी आडर नेहरू जी ने रिज़र्वेशन पाने के लिये हिन्दू होना लाज़मी शर्त करार दिया,
और दलील ये दी के जात बिरादरी केवल हिन्दुओ मे ही पाया जाता है।
जबकि जात पात तो भारतीय समाज के कल्चर का ही एक हिस्सा है ।
इसकी जड़े इतनी मज़बूत है के यहाँ की आबादी का कोई भी हिस्सा इससे अछूता नहीं रहा सकता, चाहे मज़हब जो भी धारण कर लें ।
धारा 341 पर लगाई गई इस शर्त का निशाना केवल मुसलमान और ईसाई ही है,
क्योंकि मुसलमानो और ईसाई की एक बड़ी तादाद बुनियादी तौर पर दलित है,
जिसको रिज़र्वेशन से वंचित रखने के लिये ही नेहरू जी ने अपनी काबीना ने इस आडर को लागु करवाया था जिस पाबंदी की वजह से मुसलमान आज भारत मे ऐसे हाशिये पर खड़ा है मानो दूसरे दर्जे का नागरिक हो,
लेकिन इससे भी ज़्यादा खतरनाक आडर 23 जुलाई 1959 मे नेहरू जी की ही अगुआई मे लाया गया,
जिसके ज़रिये धारा 341 पर ये शर्त लगाई गई के, धर्म परिवर्तन करके हिन्दू धर्म अपनाने पर ये रिज़र्वेशन की सुविधा फिर से मिलने लगेगी।
अर्थात ऐसे दलित जो किसी ज़माने मे धर्म बदल कर दूसरे मज़हब, इस्लाम, सिख, ईसाई, बौद्ध, हो गए थे।
अगर वो फिर से हिन्दू धर्म स्वीकार करते है तो उनको दलित रिज़र्वेशन का लाभ मिलने लगेगा ।
अब ये दोनों शर्ते केवल लोकसभा या उच्च न्यायालय ही हटा सकता है,
अब आप खुद सोचिये के इन शर्तो का मकसद क्या है ?
कुच्छ समय बाद बौद्धों और सिखों से इस पाबंदी को हटा लिया गया,
लेकिन मुसलमानो और ईसाइयो पर आज भी लागू है l