किसी औरों ने नही बल्कि उसके अपनों ने ही खामोश कर दिया एक बोलती कलम को! नवजवान पत्रकार विजय गुप्ता की दर्दनाक हत्या, जाने क्या थे हत्या के कारण ?
कानपुर। जब सगा भाई ही जान का दुश्मन हो तो दुनिया का क्या कसूर? वह एक बोलती हुई कलम थी।
रोज़ कम से कम दो खबरों को खुद से कवर करके जनता के सामने प्रस्तुत करना उसका रोज़मर्रा का काम था।
मगर अपनों ने ही इस बोलती नवजवान कलम को ख़ामोशी के अन्धकार में धकेल दिया।
एक मासूम पत्रकार की दर्दनाक मौत देने वाले कोई और नही बल्कि अपने खुद के सगे थे।
कानपुर पत्रकारिता का एक उभरता हुआ नाम विजय गुप्ता अब खामोश हो गया है। विजय गुप्ता की हत्या हो चुकी है।
उन्नाव जनपद के अचलगंज थाना क्षेत्र के बदरका चौकी क्षेत्र के आज़ाद मार्ग पुलिया से पत्रकार विजय गुप्ता की लाश पुलिस ने बरामद कर लिया है।
बताया जा रहा है कि रायपुरवा थाना क्षेत्र का रहने वाला पत्रकार विजय गुप्ता कल से घर नही वापस आया था।
पत्रकार विजय गुप्ता की पत्नी ने इसकी सुचना रायपुरवा थाना प्रभारी ने इस सम्बन्ध में विजय गुप्ता के भाई मनोज गुप्ता से बातचीत किया।
बातचीत में कुछ शक होने पर पुलिस मनोज गुप्ता को लेकर थाने आई।
पहले तो मनोज गुप्ता पुलिस को इधर उधार टालता रहा, मगर जब पुलिस सख्त हुई तो मनोज नर्म पड़ा और टूट गया।
मनोज को साथ लेकर पुलिस उन्नाव जनपद के अचलगंज थाना क्षेत्र के बदरका चौकी स्थित आज़ाद मार्ग पुलिया पहुच कर मनोज के निशानदेही पर पत्रकार विजय की लाश को बरामद करती है।
मौके पर लाश को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा था विजय की मौत 24 घंटे से अधिक समय पहले हो चुकी होगी।
मृतक पत्रकार विजय गुप्ता के शरीर पर गोली लगने का आभास हो रहा था। पुलिस ने लाश को सील करके पोस्टमार्टम हेतु भेज दिया है।
उफ़ रे ज़ालिम भाई ही है भाई का कातिल
पत्रकार विजय गुप्ता का दुश्मन और कोई नही बल्कि उसके खुद के सगे भाई मनोज गुप्ता और रतन गुप्ता ही है।
दोनों भाइयो ने अपने तीसरे सगे भाई का अपहरण करके उसकी हत्या कर दिया।
इस हत्या में कई अन्य भी एक राय संदिग्ध है ऐसा विजय गुप्ता की पत्नी के तहरीर से ज़ाहिर हो रहा है।
हकीकत है जब सांप आस्तीन में हो तो क्या ज़रूरत है किसी और दुश्मनी की। शायद आज विभीषण भी शर्म कर रहा होगा,
उसने तो रावण के अन्याय के खिलाफ न्याय का साथ देते हुवे रामचंद्र का साथ दिया था। यहाँ तो कातिल ही सगा भाई है।
पत्रकार विजय गुप्ता खुद काफी सज्जन और शालीन किस्म का इंसान था। मगर कहते है पांचो उंगलिया एक बराबर नही होती उसी तर्ज पर विजय गुप्ता जितना सभ्य था उसका भाई मनोज उतना ही असभ्य था।
विजय का उठना बैठना सभ्य समाज में था,
जबकि मनोज के अपराधी प्रवित्ति के कारण मनोज का उठना बैठना अपने जैसे अपराधियों के साथ ही था।
दोनों भाइयो का कारोबार एक ही था मगर कारोबार की दुकाने अलग अलग थी।
डिप्टी पड़ाव पर दोनों भाइयो की अगल बगल दुकाने तो थी मगर मनोज के क्रूर स्वभाव और विजय गुप्ता के सभ्य शालीन स्वाभाव का असर दोनों के कारोबार पर भी पड़ता था।
विजय गुप्ता के पास ग्राहक आना पसंद करते थे, जबकि मनोज गुप्ता के दुकान पर नही जाते थे।
इस बात की खुन्नस अपराधी प्रवित्ति के मनोज गुप्ता को काफी दिनों से थी।
दोनों भाइयो में अक्सर इस मुद्दे पर तू तू मैं मैं होती रहती थी।
इसी क्रम में दीपावली के दिन जब विजय गुप्ता पूजा कर रहा था तब भी मनोज गुप्ता उससे झगडा करने लगा।
इस सम्बन्ध में उसी दिन विजय गुप्ता ने लिखित तहरीर अपने जान के खतरे की पुलिस को दिया था।
मगर पुलिस इसको मामूली घरेलु विवाद के नज़र से देख कर खामोश हो गई।
पुलिस अगर पहले चेत जाती तो आज जिंदा होता विजय गुप्ता!
इसको कानपुर के रायपूरवा थाना प्रभारी की हिला हवाली नही तो और क्या कहेगे।
विजय गुप्ता की पत्नी रोली गुप्ता की तहरीर और उसके बताये अनुसार विजय गुप्ता लगातार रायपुरवा थाना पुलिस को इस मामले में शिकायत देता रहता था कि उसकी जान को खतरा है।
मगर आराम तलबी के कारण रायपूरवा थाना प्रभारी कभी इस मामले को लेकर गंभीर नही हुवे।
इसी क्रम में दीपावली वाले दिन भी विजय गुप्ता ने मारपीट और धमकी की तहरीर दिया था।
इस तहरीर को स्थानीय थाना पुलिस ने मामले में हिला हवाली केवल इस कारण किया कि मामला दो भाइयो का है।
इसी तरह दीपावली के दिन भी हुआ जिसकी विजय ने लिखित शिकायत थाना स्थानीय पर किया था।
इस बार की पुष्टि विजय गुप्ता की पत्नी रोली गुप्ता ने लिखित तहरीर में किया है।
मगर पुलिस मामले को हलके में लेकर छोड़ दिया।