एक दर्द भरी दास्तां ,बेकसूर निसारुद्दीन अहमद ने 23 साल जेल में गुजारे,जानिए क्या था पूरा माजरा ?

निसार उद्दीन बेक़सूर बरी.केवल 23 साल बाद !

मिलिए निसार उद्दीन अहमद से जिन्होंने अपनी जिंदगी के 23 साल जेल में गुजारे, और सबसे हैरानकुन बात ये हैं कि 23 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हे बेकसूर करार कर दिया!

निसार भाई उन तीन लोगो में से थे जो सुप्रीम कोर्ट के जानिब से बेकसूर साबित कर देने के बाद जयपुर जेल से रिहा होकर लौटे थे , उनकी उम्र कैद की सजा को एक तरफ रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हे 11 मई 2016 को फौरी तौर से रिहाई दे दी थी।

उन पर बाबरी मस्जिद की शहादत के सालगिरह के दिन ट्रेनों में पांच बॉम्ब धमाकों का मुकदमा दर्ज किया गया था जिसमे 2 लोगो की मौत और 8 जख्मी हो गए थे , जब तक निसार जेल में थे पीछे से उनके खानदान वाले उनको बेकसूर साबित करने की दौड़ धूप में बिखर चुके थे।

तमाम इल्जामात से बरी होने बाद निसार ने क्या कहा?

मैने जेल के अंदर अपनी जिंदगी के 8,150 दिन (23 साल) गुजारे है। मेरे लिए जिंदगी खत्म हो चुकी है और जो तुम अब अपने सामने देख रहे हो वो एक जिंदा लाश है !

मैं अभी 20 साल का ही था जब उन्होंने मुझे जेल में डाल दिया , मैं आज 43 साल का हु। मेरी छोटी बहन तब 12 साल की थी जब मैंने आखिरी बार उसे देखा था और अब उसकी बेटी भी 12 साल की हो चुकी है। मेरी भांजी एक साल की है और मेरी चचेरी बहन मुझसे 2 साल छोटी थी आज वो दादी बन गई है , एक नसल पूरी तरह से मेरी जिंदगी से गायब हो चुकी है?

निसार ने अपनी आजादी की पहली रात जयपुर के एक होटल में गुजारी। उसने बताया मैं बिस्तर पर चैन से सो नही सकता था इतने सालो से जेल में मैं फर्श पर एक पतली चादर में सोया था।
15 दिनो बाद मेरा इम्तिहान था। मैं कोलेज की तरफ जा रहा था, वहां पुलिस की गाड़ी मुंतजिर थी उन्होंने मुझे एक पिस्तौल दिखाई और मुझे अंदर आने पर मजबूर किया। कर्नाटका पुलिस को मेरी गिरफ्तारी के बारे में कोई इल्म नहीं था। ये टीम हैदराबाद से आई थी और वो मुझे हैदराबाद ले गए।

निसार के वालिद नूर उल दीन अहमद ने 2006 में अपनी मौत तक अकेले उन्हें बेकसूर साबित करने की जंग लड़ने में लगा दी और अब कुछ भी नहीं बचा था ये जिंदगी का सबसे अफ़सोसनाक सच्चाई हैं जब आप बेकसूर हो और अपनी जिदंगी कीमती 23 साल जेल में गुजार दे।

इस दर्द भरी दास्तां से एक नसीहत मिलती है जब तक इंसान अपने “Comfort zone” में है तभी तक वो खुदा ,आखिरत और इंसाफ के दिन का इनकार कर सकता है। लेकिन जिन्होंने ऐसी सख्त आजमाइश , जुल्म को झेला हो वही बदले के दिन पर हकीकी ईमान रखते है कि एक ऐसा दिन जरूर हो जहां इंसाफ कायम हो।

इरशाद है क़ियामत के दिन हम ठीक-ठीक तौलनेवाले तराज़ू रख देंगे, फिर किसी शख़्स पर ज़र्रा बराबर ज़ुल्म न होगा। जिसका राई के दाने के बराबर भी कुछ किया-धरा होगा, वो हम सामने ले आएँगे, और हिसाब लगाने के लिये हम काफ़ी हैं। (Qur’an 21;47)

संवाद
मो अफजल इलाहाबाद

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