आज की पोस्ट नम्बर 1 में सुलतान ए हिंदल वली हज़रत ख्वाजा ग़रीब नवाज़ राजिअल्लाहू अनहो के बारे में क्या है खास?पढ़िए दिल थाम के !

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रिपोर्टर:-

ख्वाजये हिन्द वो दरबार है आला तेरा।
कभी महरूम नहीं मांगने वाला तेरा।
नाम – मोइन उद्दीन हसन ,
लक़ब – हिन्दल वली,गरीब नवाज़
वालिद – सय्यद गयास उद्दीन हसन।
वालिदा – बीबी उम्मुल वरा (माहे नूर),
विलादत- 530 हिजरी,खुरासान
विसाल – 6 रजब 633 हिजरी,अजमेर शरीफ।
वालिद की तरफ से आपका सिलसिलए नस्ब इस तरह है,
मोइन उद्दीन बिन गयास उद्दीन, बिन नजमुद्दीन बिन इब्राहीम बिन ,
इदरीस बिन इमाम मूसा काज़िम बिन इमाम जाफर सादिक़ बिन इमाम बाक़र बिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन बिन सय्यदना इमाम हुसैन बिन सय्यदना मौला अली रिज़वानुल लाहे तआला अलैहिम अजमईन वालिदा की तरफ से आपका नस्ब नामा युं है कि बीबी उम्मुल वरा बिन्त सय्यद दाऊद बिन, अब्दुल्लाह हम्बली बिन, ज़ाहिद बिन मूसा बिन अब्दुल्लाह मखफी बिन हसन मुसन्ना बिन,
सय्यदना इमाम हसन बिन सय्यदना मौला अली रिज़वानुल लाहे तआला अलैहिम अजमईन,
गोया कि आप हसनी हुसैनी सय्यद हैं।

तारीखुल औलिया,सफह 74,

मसालेकस सालेकीन में हैं कि आप और हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु आपस में खालाज़ाद भाई हैं।
वहीं सिर्रूल अक़ताब की रिवायत है कि ख्वाजा गरीब नवाज़ एक रिश्ते से हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के मामू लगते हैं ।

मसालेकस सालेकीन,जिल्द 2,सफह 271 ,
सिर्रूल अक़ताब,सफह 107,

आपकी वालिदा माजिद फरमाती हैं कि जिस दिन से मेरे शिकम में मोइन उद्दीन के जिस्म में रूह डाली गयी उस दिन से ये मामूल हो गया कि रोज़ाना आधी रात के बाद से सुबह तक मेरे शिकम से तस्बीह व तहलील की आवाज़ आती रहती,और जब आपकी विलादत हुई तो पूरा घर नूर से भर गया,
आपके वालिद एक जय्यद आलिम थे। आपकी इब्तेदाई तालीम घर पर ही हुई ।
यहां तक कि 9 साल की उम्र में आपने पूरा क़ुरान हिफ्ज़ कर लिया,
मां का साया तो बचपन में ही उठ गया था और 15 साल की उम्र में वालिद का भी विसाल हो गया ।

मीरुल आरेफीन,सफह 5,

वालिद के तरके में एक पनचक्की और एक बाग़ आपको मिला जिससे आपकी गुज़र बसर होती थी,
एक दिन उस बाग़ में दरवेश हज़रत इब्राहीम कन्दोज़ी आये गरीब नवाज़ ने उन्हें अंगूर का एक खोशा तोड़कर दिया,हज़रत इब्राहीम सरकार गरीब नवाज़ को देखकर समझ गए कि इन्हें बस एक रहनुमा की तलाश है जो आज एक बाग़ को सींच रहा है। कल वो लाखों के ईमान की हिफाज़त करेगा,
आपने फल का टुकड़ा चबाकर गरीब नवाज़ को दे दिया।

जैसे ही सरकार गरीब नवाज़ ने उसे खाया तो दिल की दुनिया ही बदल गयी,
हज़रत इब्राहीम तो चले गए, मगर दिन का जज़्बा ग़ालिब आ चुका था आपने बाग़ को बेचकर गरीबो में पैसा बांट दिया,
खुरासान से समरक़न्द फिर बुखारा इराक पहुंचे और अपने इल्म की तकमील की ।

अहसानुल मीर,सफह 134,

आप एक मुर्शिदे हक़ की तलाश में निकल पड़े और ईरान के निशापुर के क़रीब एक बस्ती है जिसका नाम हारूनाबाद है,
जब आप वहां पहुंचे तो हज़रत ख्वाजा उस्मान हारूनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को देखा और उन्होंने आपको,
मुर्शिदे बरहक़ ने देखते ही फरमाया कि आओ बेटा जल्दी करो मैं तुम्हारा ही इंतेज़ार कर रहा था। अपना हिस्सा ले जाओ।
हालांकि इससे पहले दोनों की आपस में कभी कोई मुलाक़ात नहीं हुई थी, खुद सरकार गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जब मैं उस महफिल में पहुंचा तो बड़े बड़े मशायख बैठे हुए थे मैं भी वहीं जाकर बैठ गया।
तो हज़रत ने फरमाया कि 2 रकात नमाज़ नफ्ल पढ़ो मैंने पढ़ी।
फिर कहा किबला रुख होकर सूरह बक़र की तिलावत करो, मैंने की।

फिर फरमाया 60 मर्तबा सुब्हान अल्लाह कहो, मैंने कहा।
फिर मुझे एक चोगा पहनाया और कलाह मेरे सर पर रखी और फरमाया कि 1000 मर्तबा सूरह इखलास पढ़ो, मैंने पढ़ी,
फिर फरमाया कि हमारे मशायख के यहां फक़त एक दिन और रात का मुजाहदा होता है तो करो मैंने दिन और रात नमाज़ों इबादत में गुज़ारी, दूसरे रोज़ जब मैं हाज़िर हुआ क़दम बोसी की तो फरमाया कि ऊपर देखो क्या दिखता है?
मैंने देखा और कहा अर्शे मुअल्ला फिर फरमाया नीचे क्या दिखता है?
मैंने देखा और कहा तहतुस्सरा!
फरमाते हैं अभी 12000 बार सूरह इखलास और पढ़ो। मैंने पढ़ी,
फिर पूछा कि अब क्या दिखता है? मैंने कहा कि अब मेरे सामने 18000 आलम हैं, फरमाते हैं कि अब तेरा काम हो गया!
उसके बाद भी सरकार गरीब नवाज़ r. a. 20 साल तक अपने मुर्शिद के साथ ही रहें ।

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