अगर जल ही जीवन है तो उस जीवन को बचाने में लिए हम क्या कर रहे ?

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रिपोर्टर :-

सरकारें अपना कर्तव्य निभाएंगी,साथ ही हमें भी अपने कर्तव्य निभाने पड़ेंगे।
हम अपने अधिकार को तो जानते हैं,पर कर्तव्य की अनदेखी कर देते।

महात्मा गांधी ने कहा था कि प्रकृति हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकती है, लेकिन लालच की नहीं।
जल तो मनुष्य की ही नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कहा भी जाता है कि जल ही जीवन है।
इस सूक्ति को अगर हम जीवन में धारण करेंगे तो जल का संरक्षक अपने आप हो जाएगा।
यह प्रश्न तो उठेगा ही कि अगर जल ही जीवन है तो उस जीवन को बचाने में लिए हम क्या कर रहे है?
जल ही जीवन है, यह केवल कहने के लिए न रह जाए।

वर्तमान में जल संसाधन पर आए संकट को देखे तो ऐसा लगता है कि यह केवल कहने की बात है।
यह मानवजनित संकट है और इसका समाधान मनुष्य ही कर सकता है।
इतिहास गवाह है कि अनेक सभ्यताओं का पतन जल संकट के कारण हुआ है और अगर हम इसका समाधान नहीं करते है तो हमारा अस्तित्व भी संकट में आ सकता है।
कहा जाता है कि अगर कभी तीसरा विश्व युद्ध होगा तो वह जल के लिए ही होगा, क्योंकि जल के बिना सब कुछ सूना-सूना हो जाएगा।

तो हमें जल के महत्त्व को देखते हुए उसके संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाना पड़ेगा।
कानून बनाने के साथ-साथ उसका अच्छे से क्रियान्वयन किया जाना चाहिए! साथ ही जनभागीदारी भी आवश्यक है।

इसके अभाव में सब कुछ अधूरा रह जाता है। सरकारें अपना कर्तव्य तो निभाएंगी ही, हमें भी अपने कर्तव्य निभाने पड़ेंगे।यह केवल सरकार का काम नहीं है, बल्कि हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम जल संरक्षण के लिए अपने कर्तव्य का पालन अच्छे से करें। वैसे भी जीवन के अधिकार के अनुसार स्वच्छ जल प्राप्त करना, यानी अच्छे पर्यावरण का अधिकार हमारा मौलिक अधिकार है।
लेकिन हम अपने अधिकार को तो जानते हैं,
पर कर्तव्य की अनदेखी कर देते है। जबकि प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना हमारा मौलिक कर्तव्य है।

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