सर्विस चार्ज पर सरकार ने पैदा किया उपभोक्ताओं और होटल-रेस्टोरेंट मालिकों में लफड़ा? क्या कुछ है खास पढ़िए

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रिपोर्टर.

सर्विस चार्ज वसूलने के मुद्दे पर केन्द्र सरकार ने उपभोक्ताओं और होटल-रेस्टोरेंट मालिकों के बीच टकराव के हालात करवा दिए है।

सरकार की ओर से कहा गया है कि यदि कोई उपभोक्ता होटल-रेस्टोरेंट की सेवाओं से संतुष्ट नहीं है तो उसके लिए सर्विस चार्ज देना बाध्यकारी नहीं है?

यदि कोई होटल-रेस्टोरेंट मालिक जबरन सर्विस चार्ज वसूलता है तो वह उपभोक्ता संरक्षण कानून के दायरे में आएगा?

यानि सर्विस चार्ज दे या न दे, इसका निर्णय उपभोक्ताओं पर छोड़ दिया गया है।

सरकार को यह समझना चाहिए कि शायद ही कोई उपभोक्ता होगा जो सर्विस चार्ज देना चाहेगा। इसी प्रकार शायद ही कोई होटल-रेस्टोरेंट का मालिक होगा जो सर्विस चार्ज नहीं लेना चाहेगा।

सब जानते हैं कि होटलों और रेस्टोरेंटों में सरकार के सर्विस टैक्स के अलावा मालिक सर्विस चार्ज भी वसूलते है।

यह सर्विस चार्ज 5 से लेकर 20 प्रतिशत तक होता है। सर्विस टैक्स और सर्विस चार्ज होटल के निर्धारित किराए अथवा रेस्टोरेंट में खाद्य सामग्री के शुल्क पर वसूला जाता है!

यह माना कि घटिया सेवाओं के बाद भी होटल मालिक सर्विस चार्ज वसूलते हैं? सरकार को चाहिए था कि सर्विस चार्ज के नाम पर हो रही लूट-खसोट को बंद करने का आदेश देती।

जब होटल के कमरे के किराए में सब कुछ वसूल लिया जाता है तो फिर मालिक को सर्विस चार्ज वसूलने का कोई अधिकार नहीं है।

जिन होटलों और रेस्टोरेंटों में 20 प्रतिशत तक सर्विस चार्ज वसूला जाता है उनमें उपभोक्ताओं की परेशानी ज्यादा है।

सरकार पहले ही 15 प्रतिशत से ज्यादा सर्विस टैक्स वसूलती है।

यानि उपभोक्ताओं को कुल किराए के अलावा 35 प्रतिशत राशि अधिक चुकानी पड़ रही है।

सरकार को चाहिए कि सर्विस चार्ज के मुद्दे पर मालिकों और उपभोक्ताओं में टकराव करवाने के बजाए सर्विस चार्ज के प्रावधान को ही समाप्त कर दें।

यदि कोई उपभोक्ता सेवाओं से संतुष्ट होता है तो वह कर्मचारियों को टिप के रूप में नकद राशि दे ही देता है।

मालिकों को यदि सर्विस चार्ज वसूलना है तो वे भी किराए अथवा खाद्य सामग्री के मूल्य में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं !

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