वो परिंदे जो अल्लामां इकबाल रह. अ,.के दरस ए खुदी का वसीला बने
अल्लामा इक़बाल रह० अलै० ने अपनी शायरी में फितरी मजाहिर, खास तौर पर चरिंद व परिंद की हरकात व सकनात, इनकी कूवत व ताक़त, आदात और खूबियों को मिसाल बनाकर दर्स ए खुदी, मेहनत व मुशक्कत, अजम व इसतकलाल, इत्तेहाद और हमदर्दी का पैगाम दिया। उन्होंने अपनी शायरी में कई परिंदों की सिफात बयान किए और मुसलमानों को फिक्र व अमल पर आमादा करने कि हत्तल इमकान कोशिश की!
जैसे कि
01. शाहीन – अल्लामा इक़बाल की शायरी में एक खुशरंग परिंदा शाहीन है जिसकी बुलन्द परवाज़, कुव्वत व ताक़त और अजम का इज़हार उनके कलाम में यूं मिलता है -: शाहीन कभी परवाज़ से थक कर नहीं गिरता,
पुरदम है अगर तू तो नहीं खतरा अफ्ताद।
02. शहबाज – इक़बाल ने इस परिंदे केे शिकार करने कि सलाहियत, कूवत, परवाज़ और झपटने की तेजी से हमें सबक देते हुए बताया है -: निगाहें इश्क़ दिले जिंदा की तालाश में है, शिकार मुर्दा सजावॉर ए शाहबाज नहीं। एक और शिकारी परिंदे बाज़ का जिक्र भी शाहीन और शाहबाज की तरह इक़बाल के फ़लसफ़ा खुदी को बयान करता है।
03. बुलबुल व ताओस – इक़बाल ने बुलबुल व ताओस को मगरिबी (यूरोपियन) तहज़ीब की चमक – धमक और इसके ज़ाहिर की रानाई व दिलकशी से जोड़ा है और कई मोकामात पर उन्होंने नौजवानों के लिए उसे अपने पैगाम का वसिला बनाया है -: कर बुलबुल व ताओस की तकलीद से तौबा, बुलबुल फकत आवाज है, ताओस फकत रंग।
04. करगस – ये परिंदा मुर्दाखोर, मगर बुलंदपरवाज है, इक़बाल का कहना है कि खुद्दार व बुलंदअजम मोमिन की सिफात करगस जैसी नहीं हो सकती। वह कितनी ही बुलंदी पर क्यों ना परवाज़ करे, मगर उसमे वो अजम और हौसला, हिम्मत व दिलेरी कहां जो शाहीन का वस्फ हैं ही -: परवाज़ है दोनो की एक ही फिजा में, करगस का जहां और है शाहीन का जहां और।
इसी तरह
05. ओकाब – ये भी बुलंदपरवाज़ परिंदा है जिसकी ताक़त को इकबाल ने जवानों में वालवला, हिम्मत और अजम पैदा करने के लिए अपने शेर में यूं पेश किया है जी -: ओकाबी रूह जब बेदार होती है जवानों में, नज़र आती है उनको अपनी मंजिल आसमानों में।
तैगो के सांये में हम पलकर जवां हुएं हैं।
खंजर हिलाल का है, कौमी निशां हमारा।।
Iqbal Day2022
संवाद
मो अफजल इलाहाबाद