यौन शोषण और अत्याचार से क्योंकर पीड़ित, व शिकार है मासूम बच्चे?

रिपोर्टर,

अत्यचार का वास्तव में मासूम बच्चे ठीक तरह से अर्थ भी जानते है या  नही? किन्तु सच तो यह हैं कि वर्तमान   दौर में इस अत्यचार रूपी समस्या ने विकराल रूप  धारण कर लिया हैं।

महिला व बाल विकास मंत्रालय के अध्ययन बताते है कि देश में लगभग 53% बच्चे जीवन में किसी ना किसी पड़ाव पर अत्याचार के शिकार होते है।

लेकिन इनमें सबसे ताज्जुब की बात तो यह है कि इन 53% बच्चो में से  सिर्फ 6% अभिभावक और बच्चे की शिकायत के मामले सामने आते है।

लेकिन दुःख का विषय यह भी है कि इन मामलो में  फैसला आने में काफ़ी समय लगता है।

अत्याचार के शिकार बच्चे आज सबसे अधिक यौन शोषण के शिकंजे में फँसे  है,  और कोमल बचपन को रौंदा जा रहा है, दिन के प्रत्येक क्षण स्वयं की मासूमियत का गला घोंटते देख, बच्चे सहते रहते हे।

देश भर की अदालतों में से अगर सिर्फ  अनुमान के तौर पर लखनऊ की बात की जाए, तो आज 4000 यौन उत्पीड़न के मामले अदालत में इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं,?

उच्च न्यायालय की एक याचिका की सुनवाई से यह खुलासा हुआ है कि वर्ष 2016 में अब तक केवल 449 मामलो का समाधान हो पाया है।

इन सबमे सबसे अधिक दुखदायी बात यह है कि इतनी ढीली व्यवस्था तब है जब बच्चो के लिये विशेष कानून और पास्को का गठन हो चुका है, यह ढीलापन अदालत, सरकारी वक़ील, आयोजक से लेकर लेबोटरी की रिपोर्ट तक आने तक का इंतज़ार रहता है,।

फाइलों में दबे मामले और उनमें दम तोड़ता बचपन हमारी व्यवस्था को शर्मशार करता है।

, देश की राजधानी की दयनीय यह व्यवस्था हमे विचार करने पर बेहद मजबूर करती है कि जब यह राजधानी का हाल है तो किसी अन्य शहर के बारे में सोचना मात्र निरर्थक होगा।

वर्तमान समय में आवश्यकता इस बात की है कि अगरचे हम सच में बच्चो को अत्याचार  से आज़ाद और सुरक्षित रखना चाहते है  , तो बच्चो को अधिक जागरूक करना होगा, उन्हें शिक्षा के माध्यम से यह बताना होगा कि किस प्रकार का स्पर्श अत्याचार है अथवा नही .? ऐसा करके बच्चो को विशेष कर यौन उत्पीड़न से बचा सकते हैं।

सहानुभूति और प्रेम के द्वारा उनके मन से डर को निकाल अपनी बात को अपने शुभचिंतको को बताने के लिये तैयार कर सकते हैं।

इसके अतिरिक्त कड़ी कानून व्यवस्था और अपराधियों को कठोर दण्ड देकर बच्चो के साथ साथ अभिभावको के भय को समाप्त करके बच्चोको एक सुनहरा भविष्य दिया जा सकता है।

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