ब्रिगेडियर मोहमद उस्मान को क्यों कहा जाता है नौशेरा का शेर क्या है इस शख्सियत की ख़ासियते ? जानिए !

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रिपोर्टर.

ब्रिगेडियर उस्मान के नाम से कांपता है PAK, पाक के 100 सैनिक मारे-भारत को वापस दिलाया कश्मीर!

हम आज एक ऐसे शख्स़ के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जिसने आज़ादी के बाद हुई पहली भारत-पाकिस्तान जंग में भारत के लिए लड़ते हुए जान दे दी।

ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान नाम की यह शख्सियत किसी परिचय का मोहताज नहीं है।
नौशेरा घाटी में हुई लड़ाई में शहीद हुए ब्रिगेडियर उस्मान 1948 की उस जंग में शहीद सबसे बड़े भारतीय सैनिक अफसर थे।

उनकी शहादत को 69 वर्ष पूरे हो गए।
भारतमाता का यह सपूत 3 जुलाई 1948 को पाकिस्तानी सेना से लड़ते हुए शहीद हो गया था।
ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जन्म 15 जुलाई, 1912 को आज़मगढ़ जनपद (अब मऊ) के बीबीपुर नामक गांव में हुआ था।

आज़ादी के बाद आर्मी के अफ़सरों को यह चुनने की आज़ादी दी गई कि वे हिन्दुस्तान में रहें या पाकिस्तान चले जाएं, लेकिन ब्रिगेडियर उस्मान ने हिन्दुस्तान को चुना।
ब्रिगेडियर उस्मान ने 1935 में भारतीय सेनाकी 10वी बलूच रेजिमेंट से अपने सैन्य करियर की शुरुआत की।

ठुकरा दिया था पाकिस्तान का आर्मी चीफ बनने का ऑफर :
कहा जाता है कि पाकिस्तानी नेताओं मोहम्मद अली जिन्ना और लियाकत अली खान ने उन्हें उनके मुसलमान होने की दुहाई देते हुए पाकिस्तान की सेना में शामिल होने के लिए कहा।

ब्रिगेडियर उस्मान को लालच दिया गया कि यदि वे पाकिस्तानी आर्मी ने शामिल होते हैं तो उन्हें जनरल बना दिया जाएगा, लेकिन उस्मान नहीं माने।
उन्होंने भारतीय सेना में ब्रिगेडियर रहना ही पसंद किया।
इसकी वजह से उनका ट्रांसफर बलूच रेजिमेंट से डोगरा रेजिमेंट में कर दिया गया।

जब ब्रिगेडियर उस्मान बने ‘नौशेरां के शेर’ : पाकिस्तानी घुसपैठियों ने 25 दिसंबर 1947 तक झनगड़ नाम के इलाके को कब्जे में ले लिया था।
लेकिन यह ब्रिगेडियर उस्मान की बहादुरी थी कि मार्च 1948 में नौशेरां और झनगड़ फिर भारत के कब्जे में आ गए।

उस्मान ने नौशेरां में इतनी जबर्दस्त लड़ाई लड़ी थी कि पाकिस्तान के 1000 सैनिक घायल हुए थे और लगभग इतने ही सैनिक मारे गए थे!

जबकि भारत की तरफ से 33 सैनिक शहीद और 102 सैनिक घायल हुए थे। अपने नेतृत्व क्षमता की वजह से ही ब्रिगेडियर उस्मान को नौशेरां का शेर’ कहा जाता है।

पाकिस्तान ने रखा था 50,000 रुपये का इनाम , नौशेरां की घटना के बाद पाकिस्तानी सरकार ने ब्रिगेडियर उस्मान के सिर पर 50,000 रुपये का इनाम रखा था,
जो कि उस समय के लिहाज से एक बहुत बड़ी रकम थी।
ब्रिगेडियर उस्मान ने कसम खाई थी कि जबतक झनगड़ भारत के कब्जे में नहीं आएगा, तब तक वह जमीन पर चटाई बिछाकर ही सोएंगे।

आखिरकार उस्मान ने झनगड़ पर भी कब्जा जमा ही लिया, लेकिन 3 जुलाई को झनगड़ में मोर्चे पर ही कहीं से तोप का एक गोला आ गिरा, और उस्मान इसकी चपेट में आ गए। इस तरह नौशेरा के शेर ने दुनिया से विदाई ली।
और नौशेरा के शेर उस्मान को मिला महावीर चक्र: !

ब्रिगेडियर उस्मान के  अंतिम संस्कार में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनकी कैबिनेट शामिल हुई थी।
आज तक यह सम्मान किसी भी भारतीय सैनिक को नहीं मिला है।
ब्रिगेडियर उस्मान आज भी जंग के दौरान शहीद हुए सबसे ऊंचे सैनिक अफसर हैं।
उस्मान को मरणोपरांत महावीर चक्र से नवाजा गया।

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