क्या है ईसलामिक तत्वज्ञान चिंतन मालिका – 3 ? जाने !

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रिपोर्टर.

इस्लाम में अल्लाह, ईश्वर का तसव्वुर बेहद रहिम (रहम करनेवाला, दया करनेवाला) और करिम (मदद करनेवाला, सहकार्य करनेवाला) और बन्दोंकी फिक्र करनेवाला, ऊनसे मुहब्बत करनेवाला और सदा हीफाजत करनेवाला हैं ।

इसलिये इस कायनात, निसर्ग, दुनियांमें उसने इंसानों के लिये वो सारी व्यवस्था दी हैं, ज़िसमें वो अपने और अन्यों के लिये खुशियाँ और एक शांतिपूर्ण जिवन व्यतित कर सके !

ईस्लामिक तत्वज्ञान मे सारी चीजें अल्लाह की ओर से कुदरत मे स्थापित है, इंन्सान केवल उसे खोज निकालता हैं!

इंसान निर्मिती कुछ नहीं करता,बल्कि जो पुर्वनिर्मित है, उसे परीभाषित करता हैं. ऊसे नई शक्ल में लाता हैं !

लेकिन उसका मुलतत्व “रूह” पहले से हीं मौजुद होती हैं. और वो खत्म भी नही होती !

खोज इंसान की मेहनत हैं, लेकिन जो खोजता हैं, वो तो पहले से हीं मौजुद हैं !

इसलिये इसलाम किसी खोज को मनाही नहीं करता, बल्कि उसके इस्तेमाल को भलाई के लिये करने का मानव को इशारा देता हैं !

इसलिये इसलामिक फिलासफी कुरआन की ” अन्न्नीसा” मे कहती हैं, “हे मानव (यहां मुसलीमं, गैरमुस्लिम यह संबोधन नहीं है, बल्कि “मानव” यह संबोधन हैं।)

तुझे जो कुछ भी भलाई मिलती हैं, वह अल्लाह, ईश्वर की ओर से कृपा हैं और जो कुछ संकट, मुश्किलें तुझपर बरसती हैं, इसका निर्माता तू खुद हैं !

अल्लाह ने इंसान को अक्ल इसलिये प्रदान की हैं की, दुनियां में मानव खुश रहें और अपनी नीर्मिती का सदुपयोग कर निर्माता के प्रती कृतज्ञ रहें, यह ईस्लामिक अध्यात्म का सार है !

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