ये मस्जिद दुनिया की आलीशान मस्जिदों में शामिल है,पर नमाजियों से खाली है, खून के आंसू रोने पर मजबूर है!

एडमिन

2 जनवरी 1492 यानी आज से 800 साल पहले उन्दलुस से आख़िरी मुस्लिम सल्तनत ‘गरनाता’ भी हमारे हाथ से निकल गई थी। बल्कि हाथ से निकलना कहना सही न होगा यह कहना सही होगा कि हमने गरनाता को सलीबियों के हवाले कर दिया था।
उन्दलुस की आख़िरी मुस्लिम सल्तनत गरनाता के बुज़दिल सुल्तान अबु अब्दुल्लाह ने 1492 ईस्वी में फरडीनेन्ड के हवाले कर दिया था ।
अलहमरा के बुरूज़ पर अभी तक इस्लाम का परचम लहरा रहा था मगर नहीं ज़्यादा देर तक।अब गरनाता का हिलाली परचम उतार उतारा जा रहा है और उसकी जगह सलीब का झंडा लगाया जा रहा है।
अबु अब्दुल्लाह ने अल बशारत की एक पहाड़ी की चोटी पर पहुंचकर अपना घोडा रोका उस ने आख़िरी बार ग़रनाता की ओर देखा और फूट फूट कर रोने लगा। बहादुर मां ने हिक़ारत भरे स्वर में कहा…
तुम जिस सल्तनत की तामीर के लिए मर्दों की तरह अपना ख़ून न बहा सके अब उस की बरबादी पर औरतों को तरह आंसू बहाने से क्या फ़ायदा?
उन्दलुस में मुसलमानों ने 800 साल तक बा-वक़ार हुक़ूमत की थी मगर बद क़िस्मती से आज वहां मुसलमानों का नाम-ओ-निशां भी बाक़ी नहीं ।
मस्जिद-ए-क़ुर्तुबा जो दुनिया की आलिशान मस्जिदों में शामिल है नमाजियों से खाली है और ख़ून के आंसू रोने पर मज़बूर है।
उन्दलुस में मुसलमान व इस्लाम जिस हरबे व साज़िश का शिकार हुए आज हम हिंदी भी उसी साज़िश के शिकार होते नज़र आ रहें हैं ।
जो क़ौम ज़ुल्म के ख़िलाफ़ लड़ने से गुरेज़ करने लगती है तनज़्ज़ुली उस क़ौम का मुक़द्दर बन जाती है।
अगर हम हिंदी आज मुत्तहिद हो कर ज़ुल्म के ख़िलाफ़ उठ खड़े नहीं हुए तो कहीं तनज़्ज़ुली हमारा भी मुक़द्दर न बन जाए ।
आज भी इस देस में आम है चश्म-ए-ग़ज़ाल
और निगाहों के तीर आज भी हैं दिल-नशीं।
अल्लामा इक़बाल रह०

मुहम्मद साजिद अली उस्मान

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